सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान और परिजनों की जमानत के खिलाफ दायर उत्तर प्रदेश सरकार की अपील को रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जन्म प्रमाणपत्र के कथित फर्जीवाड़े के मामले में समाजवादी पार्टी सांसद आजम खान, उनकी पत्नी और बेटे को दी गई जमानत के खिलाफ दायर उत्तर प्रदेश सरकार की तीन अलग-अलग अपीलों को खारिज कर दिया।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 13 अक्टूबर 2020 को दायर अपील को खारिज करते हुए कहा, "विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं। हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस आदेश में किए गए किसी भी अवलोकन का ट्रायल पर कोई भी असर नहीं होगा क्योंकि यह केवल जमानत के संबंध में है।"
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश हुए।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले साल 13 अक्टूबर को कहा था कि जन्म प्रमाण पत्र में गलत उम्र दिखाने के कारण मोहम्मद अब्दुल्ला आजम खान की विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराने का उसका फैसला, इस प्रकार के झूठ के कारण पैदा हुए आपराधिक मामले में जमानत आवेदन पर विचार करने के उद्देश्य से निर्णायक नहीं है।
जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने कहा, "सार्वजनिक प्रकृति का फैसला ऐसा होना चाहिए, जो किसी व्यक्ति की स्थिति को घोषित, परिभाषित या अन्यथा निर्धारित करता है, या उस व्यक्ति का दुनिया से आम तौर पर कानूनी संबंध होता है। चुनाव याचिका में जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 100 के तहत उपलब्ध आधार पर तीसरे आवेदक (अब्दुल्ला आजम खान) के विधान सभा के चुनाव को वैधानिक चुनौती दी गई थी।
यह तीसरे आवेदक की स्थिति स्थापित करने के लिए एक कार्रवाई नहीं थी। यह राज्य द्वारा शुरू किए गए तीसरे आवेदक की स्थिति या आमतौर पर दुनिया के लिए उसके कानूनी संबंध की स्थिति के लिए शुरू की गई कार्रवाई नहीं थी। चुनाव याचिका किसी व्यक्ति की स्थिति का फैसला करने के लिए सामान्य प्रकृति या प्रतिनिधि कार्रवाई का मुकदमा नहीं है। इसलिए इसे साक्ष्य अधिनियम की धारा 42 के अनुसार सार्वजनिक प्रकृति का निर्णय नहीं माना जा सकता है।"
अब्दुल्ला आजम खान, पूर्व कैबिनेट मंत्री मो आजम खान और डॉ तंजीन फातिमा के बेटे हैं और रामपुर से समाजवादी पार्टी के विधायक थे। उन्हें राज्य विधान सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, क्योकि चुनाव की तारीख तक वह 25 वर्ष से कम उम्र के थे।
अदालत ने पाया था कि अब्दुल्ला आजम खान के माता-पिता ने चुनाव के मकसद से उनके जन्म प्रमाण पत्रों में हेरफेर किया था और वह अन्यथा, पद धारण करने के लिए अयोग्य था। इस पृष्ठभूमि में, परिवार के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 467, 468, 471 आईपीसी के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी।
यह आरोप लगाया गया कि आरोपी के पास दो स्थानों से जारी किए गए दो जन्म प्रमाण थे। पहले जन्म प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि को 01.01.1993 दर्ज थी, जिसका इस्तेमाल पासपोर्ट आदि बनाने के लिए किया गया, और विदेश यात्रा में इसका दुरुपयोग किया गया। दूसरे प्रमाण पत्र में उनकी जन्म तिथि 30.09.1990 दर्ज थी, जिसका सरकारी दस्तावेजों में दुरुपयोग किया गया, और जिसकी सहायता से विधान सभा चुनाव लड़ा गया।
वर्तमान आदेश खान और परिवार द्वारा दायर जमानत याचिका से संबंधित है। यह देखते हुए कि अब्दुल्ला आजम ने दस्तावेजों को बनाया नहीं था, बल्कि वो "केवल लाभार्थी" थे, अदालत ने उन्हें जमानत की अनुमति दे दी।
"तीसरे आवेदक ने हालांकि विधान सभा का चुनाव फर्जी दस्तावेज के आधार पर लड़ा और जीता है, फिर भी इसे नगर निगम, लखनऊ में हलफनामा देकर जारी कराने में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी। वह केवल इस कृत्य से लाभ पाने वाला है, जिसे। अन्य दो आवेदकों द्वारा किया गया है।
बेंच ने सीआरपीसी की धारा 437 (1) के तहत सुश्री फातिमा को रिहा करने की भी अनुमति दी। बेंच ने कहा, "यह अदालत का विचार है कि चूंकि तीसरे आवदक ने नगर निगम, लखनऊ को जन्मतिथि बदलने के लिए कोई हलफनामा नहीं दिया है, बल्कि आवेदक एक और दो यानी ताजीन फातिमा और मोहम्मद आजम खान ने यह किया है। इसलिए वह जमानत पर रिहा होने का हकदार है। पहले आवेदक को धारा 437 (1) सीआरपीसी का महिला होने का लाभ दिया जाना चाहिए और उसे जमानत दी जाएगी।"
जबकि, पूर्व कैबिनेट मंत्री को मुखबिर का बयान दर्ज होने की तारीख को ही जमानत पर रिहा किया जाएगा।