KWA Service | असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में नियुक्त होने के बाद पदोन्नति के लिए डिग्री या डिप्लोमा कोटा चुनने का अधिकार खुला रहता है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-03-27 10:58 GMT
KWA Service | असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में नियुक्त होने के बाद पदोन्नति के लिए डिग्री या डिप्लोमा कोटा चुनने का अधिकार खुला रहता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केरल जल प्राधिकरण (KWA) के 'सीधे भर्ती' और 'पदोन्नत' असिस्टेंट इंजीनियर के बीच सीनियरिटी विवाद पर केरल हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया। न्यायालय ने माना कि केरल लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी अधीनस्थ सेवा नियम, 1966 (अधीनस्थ सेवा नियम) और केरल लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी सेवा विशेष नियम, 1960 (विशेष नियम) पूरी तरह से अलग-अलग कैडर को नियंत्रित करते हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि विशेष नियमों का नियम 4(बी) असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में नियुक्ति के बाद ही लागू होता हैय़ इसे निम्न पदोन्नति के लिए लागू नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

केरल जल प्राधिकरण (KWA) के छह कर्मचारियों को शुरू में ड्राफ्ट्समैन के रूप में नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नत किया गया। उनमें से चार 2005 और 2014 के बीच शामिल हुए और 2015-2018 के बीच असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नत हुए। दो निजी प्रतिवादी - अनूप वी.एस. और बिंदु एस. - क्रमशः 2005 और 2017 में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में सीधे शामिल हुए।

KWA द्वारा जारी की गई सीनियरिटी सूची में मूल ड्राफ्ट्समैन को सीधे भर्ती किए गए दो असिस्टेंट इंजीनियर से सीनियर दिखाया गया था। इसे केरल हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। दो निजी प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि अन्य कर्मचारियों को 'डिप्लोमा कोटा' के तहत पदोन्नत किया गया और वे बाद में 'डिग्री कोटा' के तहत लाभ का दावा नहीं कर सकते।

हाईकोर्ट के एकल जज ने KWA और निजी प्रतिवादियों के पक्ष में फैसला सुनाया। यह माना गया कि विशेष नियमों के नियम 4(बी) के तहत पदोन्नत इंजीनियरों को अपनी पदोन्नति के समय डिप्लोमा या डिग्री कोटा में से किसी एक को चुनना आवश्यक है। डिवीजन बेंच ने इस फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि डिप्लोमा कोटा के माध्यम से प्रवेश करने वाले कर्मचारी बाद में आगे की पदोन्नति के लिए डिग्री कोटा में नहीं जा सकते। व्यथित, सजीथभाई और इसी तरह की स्थिति वाले अन्य कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दिए गए तर्क

सजीताभाई का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील निखिल गोयल ने तर्क दिया कि असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर पदोन्नति के चरण में विशेष नियमों के नियम 4(बी) को लागू करने में हाईकोर्ट ने गलती की। उन्होंने तर्क दिया कि असिस्टेंट इंजीनियर की नियुक्तियां केवल अधीनस्थ सेवा नियमों द्वारा शासित होती हैं, जो सीधे प्रवेश (60%) और पदोन्नति (40%) के माध्यम से भर्ती का प्रावधान करती हैं। इस योजना के तहत सीधी भर्ती कोटे का 6% इंजीनियरिंग डिग्री वाले सेवारत ड्राफ्ट्समैन के लिए आरक्षित है। उन्होंने तर्क दिया कि 6% कोटे के लिए अर्हता प्राप्त करने के बावजूद, सजीताभाई को 40% कोटे के तहत पदोन्नत किया गया।

इसके अलावा, गोयल ने प्रस्तुत किया कि विशेष नियम केवल असिस्टेंट इंजीनियर से असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर तक की पदोन्नति पर लागू होते हैं। नियम 4(बी) और इसके प्रावधान असिस्टेंट इंजीनियर को आगे की पदोन्नति की मांग करने का विकल्प देते हैं, लेकिन यह निर्धारित नहीं करते कि कोई व्यक्ति असिस्टेंट इंजीनियर कैसे बनता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि हाईकोर्ट की व्याख्या उन मेधावी उम्मीदवारों को अनुचित रूप से नुकसान पहुंचाएगी, जिनके पास डिप्लोमा और डिग्री दोनों हैं, क्योंकि यह जूनियर डिप्लोमा-धारक को बाद में डिग्री प्राप्त करने का मौका देगा, जो एक सीनियर से आगे निकल जाएगा।

सीनियर वकील वी. चिताम्बरेश ने केरल जल प्राधिकरण और निजी प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने तर्क दिया कि एक बार जब कर्मचारी डिप्लोमा कोटे के तहत पदोन्नत होना चुन लेते हैं तो वे बाद में अपनी डिग्री योग्यता के आधार पर सीनियरिटी का दावा नहीं कर सकते। उन्होंने चंद्रावती पी.के. बनाम सी.के. साजी (2004 आईएनएससी 101) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि एक बार जब कोई कर्मचारी किसी विशेष कोटे का विकल्प चुन लेता है तो वे बाद में पदोन्नति के लिए डिप्लोमा और डिग्री स्ट्रीम के बीच स्विच नहीं कर सकते।

न्यायालय का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले स्पष्ट किया कि अधीनस्थ सेवा नियम और विशेष नियम रोजगार के विभिन्न चरणों को नियंत्रित करते हैं। अधीनस्थ सेवा नियम असिस्टेंट इंजीनियर तक की भर्ती और पदोन्नति पर लागू होते हैं, जबकि विशेष नियम इस रैंक से आगे की पदोन्नति को नियंत्रित करते हैं। न्यायालय ने माना कि असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में नियुक्तियों पर नियम 4(बी) को लागू करने में हाईकोर्ट ने गलती की, क्योंकि यह नियम केवल उच्चतर पदोन्नति के लिए प्रासंगिक है।

दूसरे, न्यायालय ने माना कि नियम 4(बी) असिस्टेंट इंजीनियर (प्रवेश के उनके तरीके की परवाह किए बिना) को असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर पदोन्नति के लिए डिग्री या डिप्लोमा कोटा में से चुनने का विकल्प देता है। न्यायालय ने हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया कि सीनियरिटी के उद्देश्य से सीधी भर्ती और पदोन्नत व्यक्तियों को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाना चाहिए। इसके बजाय, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक बार जब कोई व्यक्ति असिस्टेंट इंजीनियर बन जाता है तो उसके भविष्य की पदोन्नति एक समान ढांचे द्वारा शासित होती है।

तीसरा, न्यायालय ने चंद्रावती पी.के. पर निर्भरता को भी खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि उस मामले में मुद्दा वर्तमान मामले से संबंधित नहीं था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चंद्रावती पी.के. पदोन्नति के लिए पात्रता निर्धारित करने में पूर्व-डिग्री सेवा के लिए वेटेज से निपटता है, जबकि वर्तमान मामला नियम 4 (बी) की प्रयोज्यता के बारे में है।

अंत में न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट की व्याख्या एक मनमाना भेद पैदा करेगी, जो मेधावी उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाएगी। न्यायालय ने उदाहरण दिया कि पदोन्नति के बाद डिग्री प्राप्त करने वाला जूनियर डिप्लोमा-धारक सीनियर डिप्लोमा-डिग्री धारक से आगे निकल सकता है, जिससे बेतुके परिणाम सामने आते हैं।

के.पी. वर्गीस बनाम आईटीओ (1981 आईएनएससी 160) का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि वैधानिक व्याख्या को ऐसे तर्कहीन और अनपेक्षित परिणामों से बचना चाहिए।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के निर्णयों को रद्द कर दिया। मूल रूप से प्रकाशित सीनियरिटी लिस्ट बहाल करते हुए न्यायालय ने माना कि पदोन्नत असिस्टेंट इंजीनियर अपने प्रारंभिक कोटा चयन से बंधे नहीं हैं और नियम 4(बी) के तहत अपना विकल्प चुन सकते हैं। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह केवल असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर पदोन्नति की मांग करते समय लागू होता है।

केस टाइटल | सजीथाभाई एवं अन्य बनाम केरल जल प्राधिकरण एवं अन्य।

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