वोहरा समिति की रिपोर्ट में बताई गई "आपराधिक-राजनीतिक सांठगांठ" की लोकपाल की निगरानी में जांच हो : सुप्रीम कोर्ट में याचिका
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें वोहरा समिति की रिपोर्ट में बताई गई "आपराधिक-राजनीतिक सांठगांठ" की लोकपाल की निगरानी में जांच की मांग की गई है।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में राष्ट्रीय जांच प्राधिकरण, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, खुफिया ब्यूरो, एसएफआईओ, रॉ, सीबीडीटी, एनसीबी द्वारा जांच की निगरानी के लिए लोकपाल की मांग की गई है।
यह कहते हुए कि कार्रवाई का कारण तब हुआ जब वोहरा समिति ने आपराधिक- राजनीतिक सांठगांठ पर अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी थी।
"समिति ने राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों-राजनीतिज्ञों-नौकरशाहों के बीच सांठगांठ की समस्या की जांच की। इसमें आपराधिक नेटवर्क पर केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की गई गंभीर टिप्पणियां शामिल हैं, जो वास्तव में समानांतर सरकार चला रहे थे । इसमें आपराधिक गिरोह के बारे में भी चर्चा की गई, जिन्होंने राजनेताओं और लोक सेवकों का हाथ और संरक्षण का आनंद लिया है। इससे पता चलता है कि राजनेता गिरोहों के नेता बन गए हैं ..... हालांकि, केंद्र ने उचित कदम नहीं उठाए हैं, इसलिए, अभी तक एक भी राजनेता-लोक सेवक-अपराधी पर मुकदमा नहीं चलाया गया है। "
यह कहते हुए कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हुई है, जहां जनता की चोट बहुत बड़ी है, उपाध्याय ने तर्क दिया कि इनमें से कुछ "कानून तोड़ने वाले" राजनेता लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्य हैं और केंद्र ने उन्हें पद्म पुरस्कार भी प्रदान किए हैं।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह केंद्र को निदेशक एनआईए, सीबीआई, ईडी, आईबी, एसएफआईओ, रॉ, सीबीडीटी, एनसीबी को व्यापक जांच के लिए अनुलग्नक और लिखित साक्ष्य (जो वोहरा समिति के समक्ष रखे गए) के साथ पूर्ण वोहरा रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दे।
वैकल्पिक रूप से, न्यायालय एनआईए,सीबीआई, आईबी, एसएफआईओ, रॉ, सीबीडीटी, एनसीबी द्वारा जांच की निगरानी के लिए भारत के लोकपाल को निर्देश दे सकता है। न्यायालय लोकपाल को सीआरपीसी के तहत वैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार दे सकता है और यह घोषणा कर सकता है कि वह आईपीसी और अन्य कानूनों के तहत अपराधों के लिए एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर राजनेताओं-नौकरशाहों-अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने में सक्षम होगा।
याचिका में दलील दी गई है कि सत्ता के पृथक्करण के तहत सर्वोच्च न्यायालय को शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को भंग किए बिना राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और राजनीतिक प्रणाली की प्रणालीगत समस्या के समाधान के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश पारित करने से नहीं रोका जा सकता है।
यह दलील दी गई है कि प्रस्तावित दिशानिर्देश महत्वपूर्ण है क्योंकि विधायकों/ सासंदों द्वारा किए गए कार्य लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं और कोई कारण नहीं है कि उन्हें न्यायाधीशों या भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की तुलना में कम मानकों पर समझा जाए।
याचिकाकर्ता ने कहा,
"उच्चतम अदालतोँ या भारतीय प्रशासनिक सेवा की उम्मीदवारों के लिए निश्चित रूप से विचार नहीं होगा, अगर उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित है, गंभीर अपराधों के लिए आरोप तय किए जाने पर उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है। वास्तव में, विधायक/ सांसद न केवल लोक सेवक होते हैं बल्कि कानून बनाने वाले भी होते हैं इसलिए उन्हे उच्च आजार विचार और नैतिकता का पालन करना चाहिए।"
यह कहा गया है कि यह बड़े सार्वजनिक हित में काम करेगा और यह कानून अनुच्छेद 14 के तहत तर्कसंगत वर्गीकरण परीक्षा भी उत्तीर्ण करेगा क्योंकि जिन उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, वो उस वर्ग से बिल्कुल अलग हैं जिनके खिलाफ ये नहीं है और ये वर्गीकरण राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के बड़े उद्देश्य के साथ एक तर्कसंगत गठजोड़ है।