राजस्व हमेशा समान नहीं रह सकता, हर चरण में लक्ष्य बदलते रहें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिटेंशन ऑर्डर रद्द किया

Update: 2023-12-28 06:04 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि डिटेंशन ऑर्डर में राजस्व द्वारा अपनाए गए रुख को माल की समान हिरासत से उत्पन्न होने वाली कार्यवाही में बाद के कारण बताओ नोटिस में नहीं बदला जा सकता।

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस शेखर बी. सराफ की खंडपीठ ने डिटेंशन ऑर्डर और परिणामी कार्यवाही रद्द करते हुए कहा,

“यह घिसा-पिटा कानून है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आधार पर तय किया गया कि राजस्व इधर-उधर नहीं घूम सकता और प्रत्येक चरण में लक्ष्य बदलता नहीं रह सकता। एक बार जब राजस्व ने विशेष रुख अपना लिया तो उसे पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता और/या किसी अलग कारण या आधार से पूरक नहीं बनाया जा सकता।

जब याचिकाकर्ताओं को हिरासत में लिया गया तो वे अपना सामान पटना से अलीगढ़ ले जा रहे थे। हिरासत आदेश में उल्लिखित एकमात्र आधार यह था कि सामान के साथ वैध दस्तावेज नहीं है।

हालांकि, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में ऐसे कोई कारण नहीं है, जैसा कि कारण बताओ नोटिस में बताया गया। कारण बताओ नोटिस इस आधार पर जारी किया गया कि याचिकाकर्ता के चार आपूर्तिकर्ताओं का रजिस्ट्रेशन या तो निलंबित कर दिया गया या रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि हिरासत आदेश में उल्लिखित कारणों के संबंध में पूरी तरह चुप्पी है।

एफ.एस. एंटरप्राइज़ बनाम गुजरात राज्य में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले और मैसर्स गोबिंद तंबाकू विनिर्माण कंपनी और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यदि जब्त किए गए सामान वैध दस्तावेजों की फोटोकॉपी द्वारा समर्थित हैं तो सामान को रोकना अवैध है।

इसके अलावा, मोहिंदर सिंह गिल और अन्य मामले बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त, नई दिल्ली एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया गया, जिसमें यह माना गया कि किसी प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश को उसमें उल्लिखित कारणों से उचित ठहराया जा सकता है। किसी आदेश को पारित करने के कारणों को हलफनामे या अन्यथा द्वारा पूरक नहीं किया जा सकता।

डिटेंशन ऑर्डर और उसके बाद कारण बताओ नोटिस का बचाव करते हुए प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि जीएसटी एक्ट में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मैसर्स के पैन फ्रेगरेंस प्रा. लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह तर्क दिया गया कि जीएसटी एक्ट के तहत पारगमन में माल के साथ वैध दस्तावेजों को ले जाना आवश्यक है।

न्यायालय ने पाया कि कारण बताओ नोटिस में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि सामान के साथ वैध दस्तावेज नहीं है।

न्यायालय ने कहा,

“हालांकि, जब कारण बताओ नोटिस जारी किया गया तो किसी भी तरह के अमान्य दस्तावेज़ की कोई बात नहीं थी। वास्तव में रुख राजस्व द्वारा पूरी तरह से बदल दिया गया और इस बदले हुए चेहरे को इस न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता।''

न्यायालय ने माना कि माल को रोके रखने से निर्धारिती पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। न्यायालय ने माना कि हिरासत अवैध है और परिणामी कारण बताओ नोटिस निष्प्रभावी है।

तदनुसार, हिरासत आदेश और परिणामी कारण बताओ नोटिस रद्द कर दिया गया। हालांकि न्यायालय जुर्माना लगाने के लिए इच्छुक था, लेकिन प्रतिवादी वकील की प्रार्थना पर ऐसा नहीं किया गया।

केस टाइटल: जितेंद्र कुमार बनाम यूपी राज्य और अन्य [रिट टैक्स नंबर- 1425/2023]

याचिकाकर्ता के वकील: आदित्य पांडे

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