सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

6 Oct 2024 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (30 सितंबर, 2024 से 04 अक्टूबर, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    S. 389 CrPC | अभियुक्त के खिलाफ एक और ट्रायल लंबित होने के कारण सजा के निलंबन से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट कहा कि अभियुक्त के खिलाफ एक मामले में मुकदमा लंबित होना उसे सजा के निलंबन का लाभ देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए अभियुक्तों को राहत दी। उक्त अभियुक्तों को हाईकोर्ट द्वारा सजा के निलंबन का लाभ देने से इनकार किया गया था।

    केस टाइटल: जितेन्द्र और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    अभियुक्त के प्रति कोई पूर्वाग्रह उत्पन्न नहीं होने पर मजिस्ट्रेट को एफआईआर अग्रेषित करने में देरी अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं होगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर को क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट को अग्रेषित करने में केवल देरी अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक नहीं होगी, जब तक कि अभियुक्त द्वारा यह साबित न कर दिया जाए कि देरी से उसके मामले में पूर्वाग्रह उत्पन्न हुआ है।

    न्यायालय ने कहा, “इस न्यायालय ने राजस्थान राज्य बनाम दाउद खान (2016) में इस विषय पर केस लॉ की जांच की और माना कि जब एफआईआर को क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट को अग्रेषित करने में देरी होती है। अभियुक्त उसी के बारे में कोई विशिष्ट तर्क देता है तो उन्हें यह प्रदर्शित करना चाहिए कि इस देरी ने उनके मामले को किस प्रकार प्रभावित किया है। केवल देरी ही अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज करने और उस पर विश्वास न करने के लिए पर्याप्त नहीं है।”

    केस टाइटल: रमा देवी बनाम बिहार राज्य और अन्य

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    Tirupati Laddu Row | घी में मिलावट के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया

    सुप्रीम कोर्ट ने तिरुमाला तिरुपति मंदिर में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू बनाने में मिलावटी घी के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। यह कहते हुए कि एक स्वतंत्र निकाय विश्वास जगाएगा, कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गठित SIT को प्रतिस्थापित कर दिया।

    SIT में केंद्रीय जांच ब्यूरो (SBI) के दो अधिकारी शामिल होंगे, जिन्हें CBI निदेशक द्वारा नामित किया जाएगा। आंध्र प्रदेश राज्य पुलिस के दो अधिकारी जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाएगा और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के सीनियर अधिकारी शामिल होंगे।

    केस टाइटल: डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 622/2024 (और संबंधित मामले)

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    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का विरोध किया

    भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं में केंद्र सरकार ने प्रारंभिक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि विवाहित महिलाओं को यौन हिंसा से बचाने के लिए कानून में वैकल्पिक उपाय पहले से ही मौजूद हैं। विवाह संस्था में "बलात्कार" के अपराध को लाना "अत्यधिक कठोर" और असंगत हो सकता है।

    केंद्र का दावा है कि आईपीसी की धारा 375 और धारा 376बी के अपवाद 2 और साथ ही धारा 198बी सीआरपीसी की संवैधानिकता तय करने के लिए सभी राज्यों के साथ उचित परामर्श के बाद एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल: ऋषिकेश साहू बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य। एसएलपी(सीआरएल) संख्या 4063-4064/2022 (और संबंधित मामले)

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    सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद हत्या मामले में सुनाया फ़ैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में आरोपी मुन्ना शुक्ला (पूर्व बिहार विधायक) और मंटू तिवारी की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी। कुल 8 आरोपियों में से, जबकि दो की ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि बरकरार रखी गई, कोर्ट ने 6 अन्य को संदेह का लाभ दिया और पटना हाईकोर्ट द्वारा उन्हें बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।

    जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने हत्या के मामले में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला और अन्य को बरी करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। इस मामले में 22 अगस्त को आदेश सुरक्षित रखा गया था।

    केस टाइटल: रमा देवी बनाम बिहार राज्य और अन्य, सीआरएल.ए. नंबर 2623-2631/2014 (और संबंधित मामला)

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    TOLA ने इनकम टैक्स पुनर्मूल्यांकन की समयसीमा बढ़ाई; पुरानी व्यवस्था के तहत 2021 के बाद भी जारी किए जा सकेंगे नोटिस : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (3 अक्टूबर) को हाईकोर्ट के उन निर्णयों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया कि कराधान और अन्य कानून (कुछ प्रावधानों में छूट और संशोधन अधिनियम) (TOLA) 2021 इनकम टैक्स एक्ट के तहत पुनर्मूल्यांकन के लिए नोटिस जारी करने की समयसीमा नहीं बढ़ाएगा।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट द्वारा पारित विभिन्न आदेशों के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा दायर 727 अपीलों को स्वीकार करते हुए निर्णय सुनाया।

    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम राजीव बंसल सी.ए. नंबर 8629/2024 और 726 संबंधित मामले

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    कैदियों को जाति के आधार पर काम देने की प्रथा समाप्त की जाए, जेल रजिस्टर में जाति का कॉलम हटाया जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव और श्रम विभाजन की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कई राज्यों के जेल मैनुअल के उन प्रावधानों को खारिज किया, जिनके अनुसार जेलों में उनकी जाति के आधार पर काम दिए जाते थे। कोर्ट ने कहा कि वंचित जातियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम और उच्च जाति के कैदियों को खाना पकाने का काम देना जातिगत भेदभाव और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने यूपी जेल मैनुअल के उन प्रावधानों पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया कि साधारण कारावास में जाने वाले व्यक्ति को तब तक नीच काम नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक कि उसकी जाति ऐसे काम करने के लिए इस्तेमाल न की गई हो।

    केस टाइटल: सुकन्या शांता बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1404/2023

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    निर्माण लागत पर GST इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया जा सकता, यदि भवन निर्माण किराए पर देने जैसी सेवाओं की आपूर्ति के लिए आवश्यक है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि भवन का निर्माण किराए पर देने जैसी सेवाओं की आपूर्ति के लिए आवश्यक है तो यह CGST Act की धारा 17(5)(डी) के "प्लांट" अपवाद के अंतर्गत आ सकता है, जो यह प्रावधान करता है कि अचल संपत्ति निर्माण के लिए निर्माण सामग्री (प्लांट या मशीनरी के अलावा) के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा, “यदि भवन का निर्माण किराए पर देने या लीज पर देने जैसी सेवाओं की आपूर्ति या भवन या उसके भाग के संबंध में अन्य लेन-देन की गतिविधि को अंजाम देने के लिए आवश्यक था, जो CGST Act की अनुसूची 2 के खंड 2 और 5 के अंतर्गत आते हैं तो भवन को प्लांट माना जा सकता है। यह तय करने के लिए कि भवन प्लांट है या नहीं, कार्यक्षमता परीक्षण लागू करना होगा।”

    केस टाइटल- केंद्रीय माल और सेवा कर के मुख्य आयुक्त और अन्य बनाम मेसर्स सफारी रिट्रीट्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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    सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को स्कूल सुरक्षा और संरक्षा पर केंद्र के दिशा-निर्देशों को लागू करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र सरकार द्वारा जारी “स्कूल सुरक्षा और संरक्षा पर दिशा-निर्देश, 2021” को लागू करने का निर्देश दिया, जिससे बच्चों को प्राकृतिक आपदाओं, स्वास्थ्य संबंधी खतरों, दुर्व्यवहार, हिंसा और दुर्घटनाओं से बचाने के लिए स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी तय की जा सके।

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, “परिणामस्वरूप, राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे दिशा-निर्देशों को अपनाएं और आवश्यकतानुसार उपयुक्त संशोधनों के साथ उन्हें लागू करें। प्रतिवादी नंबर 2 (NCPCR) को भी ऊपर उल्लिखित दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी के उद्देश्य से संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय करना चाहिए।”

    केस टाइटल- बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ और अन्य।

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    सरकारी आदेश में किए गए बदलावों को स्थापित वरिष्ठता रैंकिंग में बदलाव के लिए पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी प्रतिष्ठान में किसी कर्मचारी की वरिष्ठता तय करने वाले सरकारी आदेश (जी.ओ.) में बाद में संशोधन करके प्रतिष्ठान में काम करने वाले पूरे कैडर की सीनियरिटी को प्रभावित नहीं किया जा सकता। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि जी.ओ. (जिसके आधार पर किसी प्रतिष्ठान में वरिष्ठता निर्धारित की गई) में किए गए संशोधन को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से पूरे कैडर की वरिष्ठता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।

    केस टाइटल: वी. विंसेंट वेलंकन्नी बनाम भारत संघ और अन्य, सिविल अपील नंबर 8617/2013

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    S. 173(8) CrPC | यदि आवेदन बिना किसी नए साक्ष्य के दाखिल किया गया तो आगे की जांच का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच का अनुरोध करने वाले पक्ष ने अपने साक्ष्य में कुछ भी नया नहीं बताया और बिना नए साक्ष्य के आगे की जांच के लिए अपने आवेदन को आधार बनाया तो अदालतों को आगे की जांच का आदेश देने से बचना चाहिए।

    “जहां नए साक्ष्य सामने आते हैं, जो पहले से आरोपी नहीं रहे व्यक्तियों को फंसा सकते हैं या पहले से आरोपी व्यक्तियों को दोषमुक्त कर सकते हैं या जहां जांच एजेंसी के संज्ञान में आता है कि किसी अपराध के लिए पहले से आरोपी व्यक्ति के पास अच्छा बहाना है तो जांच एजेंसी का यह कर्तव्य हो सकता है कि वह उसकी वास्तविकता की जांच करे और अदालत को रिपोर्ट प्रस्तुत करे। हालांकि, जब पुलिस ने पहले ही आरोप-पत्र दाखिल कर दिया है और आगे की जांच के लिए आवेदक, इस मामले में प्रतिवादी संख्या 1, ने अपने साक्ष्य में कुछ भी नया नहीं बताया, जैसा कि अब आवेदन में कहा जा रहा है, तो आगे की जांच को भटकावपूर्ण जांच करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    केस टाइटल: के. वदिवेल बनाम के. शांति और अन्य।

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