हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
3 Nov 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (28 अक्टूबर, 2024 से 01 नवंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
महाराष्ट्र के कॉलेजों में पदोन्नति के लिए UGC Ph.D की आवश्यकता को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस मंगेश एस. पाटिल और जस्टिस शैलेश पी. ब्रह्मे की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर पदोन्नति के लिए 2018 में शुरू की गई यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (UGC) Ph.D की आवश्यकता भविष्य में लागू होगी। इससे उन शिक्षकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जो पहले के नियमों के तहत योग्य हैं। महाराष्ट्र राज्य को 2016 के नियमों के आधार पर याचिकाकर्ताओं के पदोन्नति आवेदनों की समीक्षा करने का निर्देश दिया गया।
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पार्टनरशिप एक्ट की धारा 69 के तहत लगाया गया प्रतिबंध आर्बिट्रेशन कार्यवाही पर लागू नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने माना कि पार्टनरशिप एक्ट (Partnership Act) की धारा 69 का प्रतिबंध धारा 69(3) में प्रयुक्त “अन्य कार्यवाही” के अंतर्गत नहीं आता। इसलिए धारा 69 के तहत लगाया गया प्रतिबंध आर्बिट्रेशन कार्यवाही पर लागू नहीं होता।
केस टाइटल: हरिओम शर्मा बनाम सौमन कुमार चटर्जी और अन्य
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S.139 NI Act | शिकायतकर्ता के यह साबित कर देने पर कि चेक आरोपी द्वारा ऋण चुकाने के लिए जारी किया गया तो इसका भार आरोपी पर आ जाता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) की धारा 139 के तहत साक्ष्य भार में महत्वपूर्ण बदलाव को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर एडं लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब शिकायतकर्ता यह साबित कर देता है कि चेक आरोपी द्वारा ऋण चुकाने के लिए जारी किया गया था तो धारा 139 के अनुसार साक्ष्य भार आरोपी पर आ जाता है।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने स्पष्ट किया, इसके बाद आरोपी को यह साबित करना होता है कि चेक किसी देनदारी के निपटान के लिए जारी नहीं किया गया और जब तक आरोपी द्वारा साक्ष्य भार का निर्वहन नहीं किया जाता है, तब तक शिकायतकर्ता से आगे कुछ भी करने की अपेक्षा किए बिना ही अनुमानित तथ्य को सत्य मानना होगा।"
केस टाइटल: चौधरी पियारा सिंह बनाम सतपाल
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Hindu Marriage Act के तहत विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका पर रोक: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act (HMA) की धारा 14 के अनुसार विवाह की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर तलाक के लिए याचिका प्रस्तुत नहीं की जा सकती। केवल पति या पत्नी को हुई असाधारण कठिनाई के मामले में ही विचार किया जा सकता है।
यह माना गया कि धारा 14 के तहत पति या पत्नी द्वारा विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए आवेदन दायर किया जाना चाहिए। विवाह के 12 महीनों के भीतर तलाक पर विचार करने के कारणों के साथ इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
केस टाइटल: अलका सक्सेना बनाम श्री पंकज सक्सेना [प्रथम अपील नंबर - 239/2015]
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मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियमों के तहत समीक्षा की शक्ति का प्रयोग छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने विभागीय जांच में रिटायर उप मंडल मजिस्ट्रेट की दोषमुक्ति की राज्य द्वारा की गई देरी से समीक्षा को अमान्य करार दिया। न्यायालय ने माना कि मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के नियम 29(1) के तहत समीक्षा की शक्ति का प्रयोग छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए। इस अवधि से परे कोई भी समीक्षा अवैध है। न्यायालय ने रोके गए रिटायरमेंट लाभों को 8% ब्याज के साथ जारी करने का आदेश दिया।
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निजता के मौलिक अधिकार में पति-पत्नी की निजता भी शामिल, कानून पति-पत्नी द्वारा जासूसी की अनुमति नहीं दे सकता: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार में पति-पत्नी की निजता भी शामिल है। न्यायालय ने कहा कि कानून पति-पत्नी द्वारा दूसरे पति-पत्नी की जासूसी की अनुमति नहीं दे सकता या उसे प्रोत्साहित नहीं कर सकता। इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि साथी की निजता का उल्लंघन करके प्राप्त किए गए साक्ष्य न्यायालय में अस्वीकार्य हैं।
न्यायालय ने कहा, "कानून इस आधार पर आगे नहीं बढ़ सकता कि वैवाहिक कदाचार आदर्श है। यह एक पति-पत्नी द्वारा दूसरे पति-पत्नी की जासूसी की अनुमति नहीं दे सकता या उसे प्रोत्साहित नहीं कर सकता। निजता के मौलिक अधिकार में पति-पत्नी की निजता भी शामिल है। इस अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त किए गए साक्ष्य अस्वीकार्य हैं।"
केस टाइटल: आर बनाम बी
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Factories Act की धारा 92 के तहत अपराध शुरू होने पर IPC की धारा 304A के तहत अभियोजन की अनुमति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया है कि किसी कारखाने के मालिकों/प्रबंधक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304-A (लापरवाही से मौत) के तहत अभियोजन शुरू करना तब अनुमेय है जब पहले से ही FACTORIES ACT, 1948 की धारा 92 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियोजन शुरू किया जा चुका है।
जस्टिस मोहम्मद नवाज की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता को जीवी प्रसाद और एक अन्य द्वारा दायर याचिका की अनुमति दी और आईपीसी की धारा 304-A के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया।
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PMLA | ED को पूर्ववर्ती अपराध में क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देने का पूरा अधिकार: हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बार धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत शिकायत दर्ज होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) को पूर्ववर्ती अपराध में दाखिल क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देने का पूरा अधिकार है, यदि इसके परिणामस्वरूप न्याय में चूक होती है।
न्यायालय ने कहा, "PMLA के तहत शिकायत के लंबित रहने के दौरान, यदि पूर्ववर्ती अपराध बंद हो जाता है तो वर्तमान मामले में इसके परिणामस्वरूप न्याय में चूक होती है, ED को न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिका दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष तथ्य रखने का पूरा अधिकार है।"
केस टाइटल: सहायक निदेशक बनाम राज्य और अन्य
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विदेश यात्रा का अधिकार एक बुनियादी मानव अधिकार, लंबित जांच के कारण यात्रा की अनुमति से इनकार करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की है कि विभागीय जांच का लंबित होना कर्मचारियों को विदेश यात्रा की अनुमति देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है। अनुमति की इस तरह की अस्वीकृति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार छोड़कर छीना नहीं जा सकता है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने सरकारी विभाग में आवेदन देकर अपने बेटे से मिलने के लिए कुछ दिन के लिए सिंगापुर जाने की अनुमति मांगी थी।
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मुस्लिम पत्नी तलाक दिए जाने पर विवाद किए जाने पर विवाह विच्छेद के लिए न्यायिक घोषणा प्राप्त करना पति पर निर्भर: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब पत्नी मुस्लिम पति द्वारा तलाक जारी करने पर विवाद करती है तो विवाह विच्छेद के लिए न्यायिक घोषणा प्राप्त करना पति पर निर्भर करता है। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों के तहत तलाक में निश्चित प्रक्रिया शामिल है, जिसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि यदि पति ने पत्नी को तलाक देने का दावा किया। पत्नी द्वारा उस पर विवाद किया जाता है तो पति के लिए एकमात्र उचित और कानूनी रूप से स्वीकार्य तरीका यह होगा कि वह विवाह विच्छेद के लिए न्यायिक घोषणा प्राप्त करे।
केस टाइटल: एबीसी बनाम एक्सवाईजेड
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सम्मान के साथ जीने के अधिकार में सप्तपदी समारोह के दौरान जीवनसाथी के प्रति लिए गए वैवाहिक वचनों को पूरा करने में सक्षम होना शामिल: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 21 में एक इंसान के रूप में सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है, जिसमें हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार सप्तपदी समारोह के दौरान लिए गए वैवाहिक वचनों के संदर्भ में एक अच्छे पति के रूप में कार्य करना भी शामिल है।
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी से संबंधित धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराधों के लिए कई एफआईआर के संबंध में पिछले 2 वर्षों से न्यायिक हिरासत में था।
केस टाइटल: अमर सिंह राठौर बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
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वेतन निर्धारण में प्रशासनिक गलती के कारण रिटायरमेंट के बाद ब्याज सहित वसूली नहीं हो सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की एकल पीठ ने रिटायर सूबेदार से ब्याज सहित अतिरिक्त भुगतान की मांग करने वाले वसूली आदेश रद्द किया। न्यायालय ने माना कि रिटायर सरकारी कर्मचारियों से अतिरिक्त भुगतान की वसूली खासकर जब कोई गलत बयानी या धोखाधड़ी न हो, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के नियम 9(4) सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के तहत रिटायरमेंट के चार साल बाद अस्वीकार्य है।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मूल राशि की पुनर्गणना की जा सकती है लेकिन प्रशासनिक गलतियों के कारण किए गए अतिरिक्त भुगतान पर ब्याज लगाना खासकर कम आय वाले रिटायर लोगों के लिए कठोर और अनुचित है।