न्यायालय की अवमानना, दंड प्रक्रिया और माफी – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 386, 387 और 388

Himanshu Mishra

13 March 2025 12:51 PM

  • न्यायालय की अवमानना, दंड प्रक्रिया और माफी – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 386, 387 और 388

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में न्यायालय (Court) की अवमानना (Contempt) से संबंधित विभिन्न प्रावधान शामिल हैं।

    धारा 384 और 385 में न्यायालय के सामने हुए अपमानजनक व्यवहार (Contemptuous Behavior) या न्यायालय के आदेश की अवहेलना (Disobedience of Court Order) पर त्वरित कार्रवाई (Immediate Action) और मामले को मजिस्ट्रेट (Magistrate) के पास भेजने की प्रक्रिया (Procedure for Forwarding) का उल्लेख किया गया है। धारा 386, 387 और 388 इन प्रावधानों को और विस्तृत करते हैं।

    ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायालय की गरिमा बनी रहे और लोग न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में सहयोग करें। साथ ही, इनमें यह भी प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति अपने व्यवहार के लिए क्षमा याचना (Apology) करता है या आदेश का पालन करता है, तो उसे दंड (Punishment) से छूट मिल सकती है।

    धारा 386 – जब रजिस्ट्रार (Registrar) या सब-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) को सिविल न्यायालय (Civil Court) माना जाएगा

    धारा 386 के अनुसार, यदि राज्य सरकार (State Government) निर्देश देती है, तो रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के तहत नियुक्त रजिस्ट्रार (Registrar) या सब-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) को धारा 384 और 385 के अंतर्गत सिविल न्यायालय (Civil Court) माना जाएगा।

    इसका अर्थ यह है कि यदि किसी रजिस्ट्रार या सब-रजिस्ट्रार के समक्ष कोई व्यक्ति अपमानजनक व्यवहार करता है, कार्यवाही में बाधा डालता है, या उनके किसी वैध निर्देश (Valid Order) का पालन करने से इंकार करता है, तो उनके पास न्यायालय की तरह कार्रवाई करने की शक्ति होगी। वे या तो धारा 384 के अंतर्गत त्वरित दंड (Immediate Punishment) दे सकते हैं या फिर धारा 385 के अंतर्गत मामले को मजिस्ट्रेट को भेज सकते हैं।

    उदाहरण (Illustration) – धारा 386

    रामू अपनी संपत्ति (Property) का बिक्री विलेख (Sale Deed) रजिस्टर करवाने सब-रजिस्ट्रार कार्यालय जाता है। सब-रजिस्ट्रार उससे कुछ दस्तावेज़ों (Documents) की माँग करता है, लेकिन रामू न केवल दस्तावेज़ देने से मना करता है, बल्कि गाली-गलौज करने लगता है और धमकियाँ देता है।

    यदि राज्य सरकार ने सब-रजिस्ट्रार को यह अधिकार दिया है, तो वह धारा 384 के अंतर्गत तत्काल दंडित कर सकता है या फिर मामला मजिस्ट्रेट के पास धारा 385 के तहत भेज सकता है।

    धारा 387 – अपराधी (Offender) द्वारा आदेश मानने या माफी मांगने पर दंड से मुक्ति (Discharge from Punishment)

    धारा 387 उन व्यक्तियों को राहत (Relief) प्रदान करता है, जिन्हें धारा 384 के अंतर्गत दंडित किया गया है या धारा 385 के तहत मजिस्ट्रेट को भेजा गया है।

    यदि अपराधी अपने किए पर पछतावा जताता है और -

    1. न्यायालय के आदेश का पालन करता है, जिसे पहले उसने मानने से मना किया था।

    2. न्यायालय से उचित तरीके से माफी मांगता है और न्यायालय इसे स्वीकार करता है।

    तो न्यायालय अपने विवेकाधिकार (Discretion) का प्रयोग करते हुए अपराधी को मुक्त (Discharge) कर सकता है या उसका दंड (Punishment) समाप्त कर सकता है।

    उदाहरण (Illustration) – धारा 387

    सीता एक गवाह (Witness) के रूप में न्यायालय में उपस्थित होती है, लेकिन वह जानबूझकर किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देती। न्यायालय इसे न्यायालय की अवमानना मानते हुए धारा 384 के तहत उसे ₹1000 का जुर्माना (Fine) लगा देता है। लेकिन कुछ घंटों बाद, सीता न्यायालय से माफी मांगती है और सवालों के जवाब देने को तैयार हो जाती है। न्यायालय उसकी माफी को स्वीकार कर धारा 387 के अंतर्गत उसका दंड समाप्त कर सकता है।

    धारा 388 – न्यायालय में साक्ष्य (Evidence) देने या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने से इनकार करने पर दंड

    धारा 388 उन मामलों से संबंधित है, जब कोई गवाह (Witness) या कोई अन्य व्यक्ति, जिसे अपराध न्यायालय (Criminal Court) द्वारा साक्ष्य देने (Testimony) या कोई दस्तावेज़ (Document) प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता है, वह ऐसा करने से इंकार कर देता है और उसके पास इसके लिए कोई उचित कारण (Reasonable Excuse) नहीं होता।

    इस स्थिति में, न्यायालय निम्नलिखित कदम उठा सकता है:

    1. सरल कारावास (Simple Imprisonment) की सजा दे सकता है, यदि व्यक्ति उचित अवसर दिए जाने के बाद भी सहयोग नहीं करता।

    2. व्यक्ति को न्यायालय अधिकारी (Court Officer) की हिरासत में सात दिनों तक रख सकता है, जिसे मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश के हस्ताक्षरित वारंट (Warrant) द्वारा लागू किया जाएगा।

    3. यदि व्यक्ति इस दौरान अपनी गलती मान लेता है, तो उसे तुरंत रिहा किया जा सकता है।

    4. यदि व्यक्ति सात दिनों के बाद भी नहीं मानता, तो न्यायालय उसे धारा 384 या 385 के तहत दंडित कर सकता है।

    उदाहरण (Illustration) – धारा 388

    मोहन से न्यायालय एक केस में उसके दुकान के CCTV फुटेज की माँग करता है, जो अपराधी के खिलाफ अहम सबूत हो सकता है। लेकिन मोहन इसे देने से इनकार कर देता है और कोई ठोस कारण नहीं देता। न्यायालय उसे धारा 388 के तहत सात दिनों के लिए हिरासत में भेज देता है। लेकिन तीन दिन बाद, मोहन अपना फैसला बदलता है और CCTV फुटेज सौंपने को तैयार हो जाता है। इस स्थिति में, न्यायालय उसे तुरंत रिहा कर सकता है।

    धारा 386, 387 और 388 का धारा 384 और 385 से संबंध

    1. धारा 386 यह स्पष्ट करता है कि कुछ स्थितियों में रजिस्ट्रार और सब-रजिस्ट्रार भी सिविल न्यायालय का दर्जा रखते हैं, जिससे वे भी न्यायालयी अवमानना (Contempt of Court) के मामलों पर कार्रवाई कर सकते हैं।

    2. धारा 387 दोषी व्यक्ति को अपनी गलती सुधारने का मौका देता है, जिससे न्यायालय का उद्देश्य सजा देना नहीं बल्कि सही व्यवहार को प्रोत्साहित करना बनता है।

    3. धारा 388 सुनिश्चित करता है कि गवाह या अन्य व्यक्ति न्यायालय की कार्यवाही में बाधा न डालें और जरूरत पड़ने पर दस्तावेज़ या साक्ष्य प्रस्तुत करें।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 386, 387 और 388 न्यायालय की गरिमा बनाए रखने और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

    • धारा 386 न्यायालयी शक्तियाँ रजिस्ट्रार और सब-रजिस्ट्रार को सौंपने से संबंधित है।

    • धारा 387 उन व्यक्तियों को राहत देता है जो अपनी गलती सुधारने के लिए तैयार हैं।

    • धारा 388 उन लोगों को दंडित करने की प्रक्रिया बताती है जो न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करते।

    ये प्रावधान न्यायालय की सख्ती और लचीलेपन (Strictness and Flexibility) के बीच संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे लोग न्यायपालिका (Judiciary) का सम्मान करें और सही समय पर साक्ष्य और जानकारी प्रस्तुत करें।

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