नए किरायों में वृद्धि से जुड़ा कानून: राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7

Himanshu Mishra

17 March 2025 3:56 PM

  • नए किरायों में वृद्धि से जुड़ा कानून: राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7

    राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7 (Section 7) उन मकानों या परिसरों (Premises) पर लागू होती है, जो इस अधिनियम के लागू होने के बाद किराए पर दिए गए हैं। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि मकान मालिक (Landlord) को किराए में उचित वृद्धि (Fair Rent Increase) मिले, लेकिन किराएदार (Tenant) पर अचानक बहुत अधिक आर्थिक बोझ न पड़े।

    धारा 7 के तहत, मकान मालिक हर साल किराए में 5% की वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन यह वृद्धि हर साल अलग से लागू नहीं होगी। इसे 10 वर्षों के बाद मूल किराए (Base Rent) में जोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा, यह कानून यह भी कहता है कि अगर किराया बढ़ाने को लेकर कोई अनुबंध (Agreement) 5% वार्षिक वृद्धि से अधिक का प्रावधान करता है, तो वह अमान्य (Void) होगा।

    इस प्रावधान को पूरी तरह समझने के लिए धारा 6 की तुलना करना भी जरूरी है, क्योंकि धारा 6 पुराने किरायों में वृद्धि (Existing Tenancy Rent Revision) से संबंधित है। जबकि धारा 6 उन मकानों पर लागू होती है, जो अधिनियम लागू होने से पहले किराए पर दिए गए थे, धारा 7 केवल नए किरायों (New Tenancies) के लिए लागू होती है।

    धारा 7 की लागू होने की स्थिति (Applicability of Section 7)

    धारा 7 उन सभी मकानों या परिसरों पर लागू होती है, जो इस अधिनियम के लागू होने के बाद किराए पर दिए गए हैं। इसका मतलब यह है कि यदि किसी मकान को अधिनियम लागू होने की तारीख के बाद किराए पर दिया गया है, तो इस धारा के तहत किराए में वृद्धि होगी।

    यह प्रावधान मकान मालिकों और किराएदारों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे मकान मालिक यह समझ सकते हैं कि वे अपने किराए में हर साल कितनी वृद्धि कर सकते हैं, और किराएदारों को यह पता रहता है कि उनके किराए में कितनी बढ़ोतरी होगी, जिससे वे आर्थिक योजना (Financial Planning) सही तरीके से बना सकें।

    वार्षिक किराया वृद्धि (Annual Rent Increase) का नियम

    इस कानून के तहत मकान मालिक हर साल किराए में 5% की वृद्धि कर सकते हैं। लेकिन यह वृद्धि तुरंत लागू नहीं होगी। इसके बजाय, यह 10 वर्षों तक जोड़ी जाती रहेगी और फिर एक साथ मूल किराए में मिला दी जाएगी।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी मकान का किराया ₹10,000 प्रति माह तय हुआ है, तो अगले दस वर्षों में इसमें 5% की दर से बढ़ोतरी होगी, लेकिन इसे हर साल अलग से नहीं जोड़ा जाएगा। इसके बजाय, दस वर्षों के बाद बढ़ी हुई राशि को मूल किराए में शामिल कर दिया जाएगा।

    किराया वृद्धि का उदाहरण (Illustration of Rent Increase)

    यदि 10 वर्षों की अवधि के लिए मकान का मूल किराया ₹10,000 प्रति माह है, तो किराया वृद्धि की गणना इस प्रकार होगी:

    • पहले वर्ष का किराया: ₹10,000

    • दूसरे वर्ष का किराया: ₹10,500 (₹10,000 का 5% जोड़कर)

    • तीसरे वर्ष का किराया: ₹11,025 (₹10,500 का 5% जोड़कर)

    • चौथे वर्ष का किराया: ₹11,576.25 (₹11,025 का 5% जोड़कर)

    • दसवें वर्ष का अनुमानित किराया: लगभग ₹16,289

    दस वर्षों के बाद, यह बढ़ा हुआ किराया मूल किराए में मिला दिया जाएगा, और अगले दस वर्षों के लिए किराया वृद्धि की गणना इसी नए किराए पर होगी।

    जब तक किरायेदारी (Tenancy) जारी रहेगी, किराया बढ़ता रहेगा

    धारा 7 का एक और महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि 10 वर्षों के बाद भी किराए में वृद्धि का यह चक्र (Cycle) चलता रहेगा। जब एक बार 10 साल की वृद्धि मूल किराए में जुड़ जाती है, तो अगली अवधि के लिए 5% की दर से वृद्धि जारी रहती है।

    अगर 10 वर्षों के बाद किराया ₹16,289 हो जाता है, तो अब अगले 10 वर्षों तक इस नई राशि पर 5% वार्षिक वृद्धि होगी।

    • ग्यारहवें वर्ष का किराया: ₹17,103 (₹16,289 का 5% जोड़कर)

    • बीसवें वर्ष का अनुमानित किराया: इस प्रक्रिया के तहत किराया बढ़ता रहेगा और 20 वर्षों के बाद इसे फिर से जोड़ा जाएगा।

    इसका लाभ यह है कि मकान मालिक को हर साल थोड़ी-थोड़ी वृद्धि मिलती है, लेकिन किराएदार पर अचानक कोई भारी बोझ नहीं पड़ता।

    किराए में अत्यधिक वृद्धि (Excessive Rent Increase) पर रोक

    धारा 7(2) यह स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई अनुबंध वार्षिक 5% से अधिक की वृद्धि की अनुमति देता है, तो वह उस सीमा तक अमान्य होगा।

    इसका अर्थ यह है कि यदि मकान मालिक और किराएदार 10% वार्षिक वृद्धि पर सहमत हो जाते हैं, तो यह प्रावधान कानूनन अमान्य (Illegal) होगा।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मकान मालिक किराएदारों पर अनुचित आर्थिक बोझ न डालें। यदि इस तरह का कोई विवाद होता है, तो Rent Tribunal (किराया न्यायाधिकरण) उस अनुबंध को 5% की अधिकतम सीमा तक संशोधित कर सकता है।

    धारा 6 (पुराने किरायों में वृद्धि) और धारा 7 (नए किरायों में वृद्धि) की तुलना

    धारा 7 को पूरी तरह समझने के लिए इसे धारा 6 से तुलना करना जरूरी है।

    • धारा 6 उन मकानों पर लागू होती है जो अधिनियम लागू होने से पहले किराए पर दिए गए थे। इसमें किराए को 1950 से गणना कर एक जटिल गणना पद्धति (Complex Calculation Formula) के तहत बढ़ाया जाता है।

    • धारा 7 उन मकानों पर लागू होती है जो अधिनियम लागू होने के बाद किराए पर दिए गए हैं। इसमें किराए की वृद्धि 5% प्रति वर्ष की सरल दर से होती है।

    धारा 6 में मकान मालिकों को किराए की पुरानी गणना (Retrospective Calculation) के आधार पर वृद्धि करनी पड़ती है, जबकि धारा 7 में नए किराए पर एक सीधी और स्पष्ट वृद्धि (Straightforward Rent Increase) लागू होती है।

    धारा 7 के प्रभाव (Practical Implications of Section 7)

    मकान मालिकों के लिए (For Landlords)

    • मकान मालिकों को एक निश्चित और अनुमानित किराया वृद्धि (Predictable Rent Increase) मिलती है।

    • उन्हें यह चिंता नहीं होती कि किराया वर्षों तक स्थिर रहेगा और उनकी आय पर प्रभाव पड़ेगा।

    • कानून की वजह से मकान मालिक अनुचित और अचानक वृद्धि (Arbitrary Rent Increase) नहीं कर सकते, जिससे कानूनी विवाद कम होते हैं।

    किराएदारों के लिए (For Tenants)

    • किराएदारों को यह सुनिश्चित रहता है कि उनका किराया एक निश्चित और प्रबंधनीय दर (Manageable Rate) से बढ़ेगा।

    • वे आर्थिक योजना (Financial Planning) सही तरीके से बना सकते हैं।

    • उन्हें अनुबंध में अत्यधिक किराया वृद्धि के प्रावधानों से सुरक्षा (Protection from Excessive Rent Hikes) मिलती है।

    किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) के लिए

    • अगर कोई विवाद होता है, तो न्यायाधिकरण यह तय कर सकता है कि क्या किराया वृद्धि वैध (Valid) है या नहीं।

    • यदि कोई अनुबंध 5% से अधिक वृद्धि की अनुमति देता है, तो न्यायाधिकरण उसे अमान्य घोषित कर सकता है।

    राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 7 नए किरायों में वृद्धि के लिए एक पारदर्शी (Transparent) और संतुलित (Balanced) प्रक्रिया प्रदान करती है। यह मकान मालिकों को एक स्थिर आय देती है और किराएदारों को अत्यधिक किराया वृद्धि से बचाती है।

    इस प्रकार, यह कानून मकान मालिकों और किराएदारों के हितों के बीच संतुलन (Balance of Interests) बनाए रखता है और राजस्थान में किराया बाजार को स्थिर (Stable) बनाए रखने में मदद करता है।

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