Partnership Act पार्टनरशिप बिजनेस का कानून

Shadab Salim

17 Sept 2025 10:03 AM IST

  • Partnership Act पार्टनरशिप बिजनेस का कानून

    भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 साझेदारी से संबंधित समस्त प्रावधानों को अधिनियमित करता है। साझेदारी व्यापार को नियंत्रित करने हेतु यह अधिनियम उपयोगी अधिनियम हैं। आज भी भारत की अर्थव्यवस्था साझेदारी उद्योग धंधों से संचालित हो रही है क्योंकि कंपनी संचालित कर पाना इतना सरल नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में या तो एकल व्यवसाय किया जा रहा है या फिर भागीदारी व्यवसाय किया जा रहा है। अधिकांश उद्योग व्यापार एकल या साझेदारी के आधार पर ही संचालित हो रहे है। इस प्रकार के उद्योगों को संचालित करने के लिए राज्य पर भी इन व्यापारों को संचालित करने के लिए प्रमुख दायित्व उठ जाता है। इस आधार पर भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 महत्वपूर्ण हो जाता है जो व्यापार के संचालन तथा भागीदारों के बीच होने वाले समझौतों को अधिनियमित करता है उनके बीच होने वाले विवादों का निपटारा करता है।

    भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 जिसे अंग्रेजी में इंडियन पार्टनरशिप एक्ट 1932 कहा जाता है। अधिनियम पार्टनरशिप से संबंधित कानूनों को संकलित करता है तथा भागीदारी के व्यापार और वाणिज्य को निश्चितता प्रदान करता है। कोई भी व्यापार जो किसी विशेष अनुबंध के अंतर्गत 1 से अधिक व्यक्तियों द्वारा संचालित किया जा रहा है इस प्रकार का व्यापार भागीदारी व्यापार कहलाता है।

    समझौता

    साझेदारी का जन्म समझौते के बाद ही होता है। भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत पहले करार होता है। करार क्या होता है यह जानने के लिए करार संबंधित आलेख संविदा विधि सीरीज के अंतर्गत पढ़े जा सकते हैं।

    भागीदारी के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच भागीदारी का करार होना चाहिए परंतु यह आवश्यक नहीं कि करार लिखित अथवा अभिव्यक्त हो यह आचरण द्वारा सृजित हो सकता है। भागीदारी के लिए स्वैच्छिक प्रकृति का करार होना चाहिए। अगर करार स्वेच्छा से नहीं किया जाता है तो यह भागीदारी का रूप धारण नहीं कर सकता। जिस प्रकार करार होने के लिए संविदा विधि के अंतर्गत जो आवश्यकताएं हैं वही आवश्यकता साझेदारी अधिनियम के अंतर्गत साझेदारी समझौता होने के लिए मान्य होती है।

    किसी करार के बाद ही भागीदारी का जन्म होता है। भारतीय साझेदारी अधिनियम किसी भी साझेदारी के लिए करार की आवश्यकता पर बल देता है। ऐसा करार मौखिक भी हो सकता है या आचरण द्वारा भी हो सकता है। इस प्रकार के करार होने के लिए कोई लिखित करार होना ही आवश्यक नहीं है।

    बिजनेस

    साझेदारी अधिनियम के अंतर्गत कोई भी करार किसी व्यापार को करने के उद्देश्य से किया जाता है। किसी व्यापार का उद्देश्य लाभ कमाना होता है। कोई भी काम लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जा रहा है तो वह व्यापार होता है। इस प्रकार का व्यापार इस साझेदारी के अंतर्गत किया जा रहा है तो भागीदारी व्यापार माना जाएगा।

    भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 2 (ख) के अंतर्गत कारोबार की परिभाषा दी गई है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यापार, पेशा कोई वृत्ति से है। इस परिभाषा से कारोबार का अर्थ स्पष्ट नहीं होता है बल्कि इससे कारोबार का गणात्मक स्वरूप स्पष्ट हो रहा है। वास्तव में कारोबार को परिभाषित करना एक तत्व का प्रश्न है फिर भी साथ कार्य करने में समय धन को परिश्रम जुटाना पड़े और लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाए कारोबार कहलाएगा।

    विश्वनाथ नमक चंद एआईआर 1955 के प्रकरण में न्यायाधीश वेंकटरमन ने अपने निर्णय में कहा कि साझेदारी वहां हो सकती है जहां कोई व्यापार किया जाता है जहां करने के लिए कोई व्यापार ही न हो वहां साझेदारी का प्रश्न ही नहीं उठता है।

    विकी चंद्र बनाम हरिश्चंद्र एआईआर 1940 नागपुर 211 के मुकदमे में अभिनिर्धारित किया गया है कि दो व्यक्ति मिलकर रुई की सौ गांठे खरीदते हैं और संयुक्त रूप से बेचने का करार करते हैं। यह करार कारोबार है और कारोबार में दोनों भागीदार भी हैं तो यहां पर यह भागीदारी है। भागीदारी के लिए कारोबार आवश्यक होता है, कारोबार के लाभ में से अंश पाने के लिए भागीदार भागीदारी का संबंध स्थापित करते हैं।

    सरलतापूर्वक कहा जा सकता है कि जहां एक से अधिक व्यक्ति मिलकर लाभ कमाने के उद्देश्य से कोई व्यापार वाणिज्य पेशा कर रहे हैं इस प्रकार का कारोबार साझेदारी कारोबार कहलाता है।

    जैसे कि दो स्वामी अपनी संपत्ति को साजे में रखकर संयुक्त रूप से उठाकर भागीदारी का निर्माण कर सकते हैं उसी प्रकार दो डॉक्टर या दो वकील रोगियों की चिकित्सा करने के लिए या अपने मुवक्किलों का मुकदमा लड़ने के लिए भागीदारी का निर्माण कर सकते हैं। कारोबार क्या है यह केवल तत्व का प्रश्न है जिसका उत्तर किसी मामले के विशिष्ट तत्वों के संदर्भ में दिया जाएगा। केवल एक कार्यक्रम या धन उधार देने का अकेला एक कार्य कारोबार नहीं हो सकता और वह उस कारोबार के अंतर्गत नहीं आता जिसका उल्लेख भागीदारी अधिनियम की धारा 4 में है।

    कुछ ऐसे भी होते हैं जो लाभ में अंश प्राप्त करने के बाद भी साझेदार नहीं होते हैं तथा फर्म में उन्हें साझेदार नहीं माना जाता वह निम्न व्यक्ति हो सकते हैं-

    संयुक्त हित रखने वाले व्यक्ति

    संपत्ति से प्राप्त लाभों का कुल प्रत्ययगमों का उस संपत्ति में संयुक्त सामान्य हित रखने वाले व्यक्तियों द्वारा लाभ का अंश प्राप्त करना ऐसे व्यक्तियों को फर्म का भागीदार नहीं बना देता है। उदाहरण के लिए जहां संयुक्त स्वामी दान से प्राप्त संपत्तियों का किराया एकत्रित करते हैं तथा कोई कारोबार नहीं चलाते हैं तो वह भागीदार की सृष्टि नहीं करते हैं।

    धन उधार देने वाले व्यक्ति द्वारा कारोबार के लाभों में अंश प्राप्त करना

    किसी व्यापार में लाभ के अंश को प्राप्त करना ही स्वयंमेव फर्म का भागीदार नहीं बनाता है। ठीक उसी प्रकार से धन उधार देने वाला व्यक्ति जो कि कारोबार के लाभ में अंश प्राप्त करता है वह भागीदार नहीं हो जाता है।

    सेवा के अभिकर्ता द्वारा लाभों का अंश प्राप्त करना

    किसी सेवा के अभिकर्ता द्वारा पारिश्रमिक के रूप में लाभों के अंश की प्राप्ति उसको स्वयंमेव फार्म में भागीदार नहीं बना देता है। यदि किसी सेवक को पारिश्रमिक के रूप में लाभ में से कुछ अंश दिया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में पारिश्रमिक प्राप्त करके व सेवक फर्म का भागीदार नहीं बन जाता है।

    मृत्यु प्राप्त हुए भागीदार के बच्चे या उसकी विधवा

    किसी साझेदारी फर्म में किसी साझेदार की मौत हो जाने पर उसकी किसी विधवा या बच्चों द्वारा वार्षिक के रूप में लाभों में अंश के प्राप्ति उनको फर्म का भागीदार नहीं बनाती है। कभी-कभी साझेदारी संलेख में यह समझौता होता है कि किसी भागीदार की मृत्यु के बाद उसकी विधवा व उसके बच्चों को कोई मौद्रिक सहायता दी जाएगी ऐसी स्थिति में इस प्रकार दी जा रही मौद्रिक सहायता को भागीदारी में अंश प्राप्त करने के बावजूद भी भागीदार नहीं माना जा सकता।

    ख्याति बेचने वाला

    कारोबार की किसी परिधि में स्वामी भागीदार द्वारा उस कारोबार में गुडविल के विक्रय के प्रतिफलस्वरूप लाभ के अंश की प्राप्ति उस व्यक्ति को फर्म का भागीदार नहीं बना देती है।

    यह सभी लोग किसी भी फर्म में लाभ में अंश प्राप्त करते हैं तथा ऐसा लाभ में अंश प्राप्त करने के उपरांत भी यह व्यक्ति भागीदार नहीं होते हैं इसलिए संपूर्ण रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी लाभ में अंश प्राप्त करने वाले व्यक्ति ही किसी फर्म के भागीदार होंगे।

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