Specific Relief Act के प्रावधान

Shadab Salim

18 Sept 2025 4:03 PM IST

  • Specific Relief Act के प्रावधान

    यह अधिनियम किसी विशेष व्यक्ति के विरुद्ध अनुतोष के संबंध में उल्लेख कर रहा है, यदि कोई अधिकार प्रभुसत्ता द्वारा व्यक्ति को दिया जाता है तो इस अधिकार के साथ में उस अधिकार के लिए उपचार भी दिए जाते हैं। यदि केवल अधिकार दे दिया जाए उपचार नहीं दिया जाए तो ऐसी स्थिति में उस अधिकार का कोई महत्व नहीं रह जाता है। सिविल अधिकार जब दिए जाते हैं तो उस अधिनियम में उस अधिकार के उपचार से संबंधित प्रावधानों का भी उल्लेख किया जाता है जैसे कि भारत के संविधान के अंतर्गत भाग 3 में मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है तथा भारत के नागरिकों और अन्य व्यक्तियों को मूल अधिकार प्रदान किए गए, अब इन मूल अधिकारों के संबंध में उपचार भी इस ही भाग तीन में उपलब्ध किए गए।

    संविधान के भाग- 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 32 में व्यक्तियों को मिले हुए मूल अधिकारों के उपचार के संबंध में उल्लेख किया गया है। जब भी संविधान में दिए गए किसी अधिकार का अतिक्रमण होता है तो इस अधिकार के प्रवर्तन के लिए अनुच्छेद 32 के अंतर्गत भारत के नागरिक एवं व्यक्ति भारत के सुप्रीम कोर्ट में जाकर न्याय पा सकते हैं।

    इसी प्रकार व्यक्तियों को अनेकों सिविल अधिकार प्राप्त होते हैं, इस प्रकार के प्राप्त होने वाले अधिकारों के संबंध में उपचार की व्यवस्था भी दी जाती है परंतु कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि केवल प्रतिकर ही उपचार नहीं होता है केवल नुकसान की क्षतिपूर्ति ही उपचार नहीं होता है अपितु उपचार के लिए पूर्ण न्याय करना होता है और इस प्रकार के पूर्ण न्याय के लिए एक विशेष अधिनियम की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का निर्माण किया गया है।

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 संविदा, अपकृत्य तथा अन्य मामलों में अनुतोष प्रदान करने के लिए पारित किया गया है। उदाहरण के लिए भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत संविदा के भंग होने पर केवल प्रतिकार का ही उपबंध किया गया है ऐसी परिस्थिति हो सकती है जहां संविदा भंग होने पर केवल प्रतिकर प्रदान करने से न्याय नहीं होता है वरन संविदा के विनिर्दिष्ट पालन से ही न्याय हो सकता है परंतु संविदा अधिनियम में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है।

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में विनिर्दिष्ट पालन के अनुतोष का उपबंध है इसी प्रकार अपकृत्य तथा अन्य मामलों में यद्यपि प्रतिकर सामान्य अनुतोष है परंतु अतिक्रमण या उल्लंघन कभी-कभी ऐसी प्रकृति का है कि केवल प्रतिकर प्रदान करने से पूर्व न्याय नहीं हो सकता है तथा वादी के साथ न्याय तभी हो सकता है जब प्रतिवादी अतिक्रमण से बाज़ आए अर्थात वह ऐसे अतिक्रमण से दूर हो जाए तथा इस प्रकार का अतिक्रमण करना बंद कर दें जिससे वादी के अधिकारों को क्षति नहीं पहुंचे।

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम व्यादेश के अनुतोष का भी प्रावधान करता है। इसी प्रकार संपत्ति के कब्जे का प्रत्युध्दरण, लिखतों की परिशुद्धि, घोषणात्मक डिक्रियों आदि अनुतोष का भी विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में प्रावधान है। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 कोई नई विधि निर्मित या प्रतिपादित नहीं करता है जैसा कि अधिनियम की प्रस्तावना में स्पष्ट किया गया है कि अधिनियम कतिपय अधिकारों के विशिष्ट अनुतोष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के लिए पारित किया गया है, यह अधिनियम कतिपय प्रकारों को विनिर्दिष्ट अनुतोष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के उद्देश्य से पारित किया गया है। इस प्रकार यह अधिनियम विनिर्दिष्ट अनुतोष के सभी पहलुओं को समाविष्ट नहीं करता है परंतु जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने धारित किया है जिन मामलों को यह परिभाषित करता है उन मामलों में पूर्ण है।

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का विस्तार किसी समय जम्मू कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर था परंतु जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के आने के बाद इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर हो गया है। इस अधिनियम में प्रावधान है कि यह अधिनियम उस तिथि से प्रवत होगा जिसे शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केंद्र सरकार नियत करें केंद्र सरकार ने उक्त तिथि 1 मार्च 1964 नियुक्त की तथा उसी दिन से यह अधिनियम प्रवृत्त हो गया।

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