Specific Relief Act के तहत पालन करवाए जा सकने वाले कॉन्ट्रैक्ट
Shadab Salim
23 Sept 2025 9:41 AM IST

Specific performance के कुछ मूल महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिन्हें न केवल स्वीकार किया गया वरण सामान्यता कोर्ट ने लागू करते हैं। सर्वप्रथम महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि Specific Performance की डिक्री पारित करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। दूसरा मौलिक सिद्धांत यह है कि Specific Performance का अनुतोष उन मामलों में लागू किया जाता है जहां प्रतिकर एक यथायोग्य नहीं अनुतोष है। तीसरा भली-भांति स्थापित सिद्धांत यह है कि कोर्ट उन मामलों में भी विनिर्दिष्ट अनुतोष प्रदान नहीं करते हैं जिनमें कोर्ट द्वारा पर्यवेक्षण निगरानी आवश्यक होती है तथा कोर्ट से सुविधाजनक रूप से नहीं कर सकते हैं।
यह सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि कोर्ट कोई ऐसा आदेश है डिक्री पारित नहीं करते हैं जिसे वह प्रवर्तन न करा सकें। 1963 के अधिनियम के पूर्व यह भी एक सिद्धांत था कि Specific Performance का अनुतोष उन मामलों में प्रदान नहीं किया जाता था जहां संविदाओं में पारस्परिकता नहीं होती थी। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के द्वारा इस सिद्धांत को समाप्त कर दिया गया।
संविदाओं के Specific Performance के संबंध में उपबंध विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के भाग 2 के अध्याय 2 में दिए गए हैं। इस अध्याय की पहली धारा अर्थात धारा 9 संविदा पर आधारित अनुतोष के वादों में प्रतिरक्षाओं से संबंधित है। धारा 9 में स्पष्ट किया गया है कि जहां किसी संविदा के बारे में किसी अनुतोष प्राप्त करने हेतु दावा इस अध्याय के अधीन किया जाए तो सिवाय इसके कि कोई अन्यथा उपबंध हो वहां वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध उक्त अनुतोष का दावा किया जाए तो वह किसी भी ऐसे आधार का अभिवचन प्रतिरक्षा के तौर पर कर सकता है जो उसे संविदा से संबंधित किसी भी विधि के अधीन उपलब्ध हो।
संविदा के विरुद्ध पालन की दृष्टि से विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 में 2 भाग उपलब्ध किया गया है जिनका विनिर्दिष्ट प्रवर्तन कराया जा सकता है तथा वह संविदा जिनका विनिर्दिष्ट प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता अर्थात ऐसी संविदा जिन्हें कोर्ट में जाकर इंफोर्स कराया जा सकता है और ऐसी संविदा जिन्हें कोर्ट में इन्फॉर्म नहीं कराया जा सकता।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 10 के अनुसार अध्याय 2 में अन्यथा बंधित के सिवाय किसी भी संविदा का पालन कोर्ट के विवेक अनुसार निम्नलिखित मामलों में प्रवर्तन कराया जा सकता है-
जबकि उस कार्य का जिसे करने का करार हुआ है अपालन द्वारा कार्य नुकसान का विनिश्चय करने का कोई मानक विद्यमान न हो।
जबकि वह कार्य जिसके करने का करार हुआ हो कि अपालन के लिए धन के रूप में प्रतिकर योग्य अनुतोष न हो।
स्पष्टीकरण- जब तक की और जहां तक की तब प्रतिकूल सिद्ध न किया जाए कोर्ट यह आधारित करेगा कि-
स्थावर संपत्ति के अंतरण की संविदा के भंग का धन के रूप में प्रतिकर द्वारा यथायोग्य अनुतोष नहीं दिया जा सकता।
जंगम संपत्ति के अंतरण की संविदा भंग इस प्रकार अनुतोष दिया जा सकता है सिवाय निम्नलिखित दशाओं के-
जहां की संपत्ति मामूली वाणिज्य वस्तु न हो अथवा वादी के लिए उसका विशेष मूल लिए या हित हो अथवा ऐसा माल हो जो बाजार में सुगमता से अभि प्राप्त न हो।
जहां की संपत्ति प्रतिवादी द्वारा वादी के अभिकर्ता या न्यासी के रूप में धारित हो।
1877 के अधिनियम में कुछ दृष्टांत प्रस्तुत किए गए थे जिससे इसे सरलता से समझा जा सकता है। लेखक द्वारा वह दृष्टांत यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
क एक मृतक चित्रकार के चित्र तथा दो दुष्पराय चीनी बर्तनों के क्रय करने का करार करता है तथा ख उन्हें क को बेचने का करार करता है। इस संविदा में कोई ऐसा मानक नहीं है जिससे अपालन से होने वाले नुकसान को अभिनिश्चित किया जा सके अतः क ख को संविदा पालन के लिए विवश कर सकता है।
क ख के हाथ एक घोड़ा एक हज़ार में बेचने की संविदा करता है ख सिविल कोर्ट की Specific Performance की डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी है जिसके द्वारा क को निर्देश दिया जाए कि वह घोड़ा ख को एक हज़ार में दे।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 10 के अनुसार दो दशाओं में संविदा का Specific Performance प्रवर्तनीय हैं।
पहली दशा वह है जहां की जिस कार्य को करने का करार हुआ है यदि उसका पालन नहीं होता है तो इससे होने वाली वास्तविक हानि को अभिनिश्चित करने का कोई मानाक विद्यमान नहीं है।
उदाहरण के लिए उपर्युक्त दृष्टांत में चित्रकार की मृत्यु हो चुकी है अब वैसा ही चित्र दोबारा नहीं बन सकता तथा चीनी के बर्तन दुष्पराय हैं अतः वास्तविक नुकसान को अभिनिश्चित करने के लिए कोई मानक नहीं है। दूसरी दशा वह है जबकि कार्य जिसको करने का करार हुआ है उसका पालन न होने पर यदि धन के रूप में प्रतिकर दिया जाए तो उसे वादी को यथायोग्य अनुतोष नहीं मिलेगा।
धारा 10 में दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार स्थावर संपत्ति के मामले में जब तक कि इसके विपरीत सिद्ध न कर दिया जाए कोर्ट उद्धृत करेगा कि धन के रूप में प्रतिकर यथायोग्य अनुतोष नहीं होगा। जंगम संपत्ति के संबंध में इस प्रकार की अवधारणा साधारण उत्पन्न नहीं होती है परंतु इसके दो अपवाद हैं जिनके विषय में कोर्ट इसी प्रकार की उपधारणा करेगा।
पहले अपवाद में वह मामले आते हैं जहां संपत्ति साधारण वाणिज्यिक वस्तु नहीं है या इस वादी के लिए विशेष मूल्य या हित की है या वस्तु ऐसी है जो सरलता से बाजार में उपलब्ध नहीं है।
उपर्युक्त नियम सुप्रीम कोर्ट ने एग्जीक्यूटिव कमिटी वेस्ट डिग्री कॉलेज शामली बनाम लक्ष्मी नारायण के प्रकरण में धारित किए हैं।
प्रस्तुत वाद में कार्यकारी समिति को ऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम 1912 के अंतर्गत रजिस्टर्ड थी तथा विश्वविद्यालय से संबंध थी। बिना विश्वविद्यालय का अनुमोदन प्राप्त किए कार्यकारी समिति ने कालेज के प्रधानाचार्य को सेवा से निष्कासित कर दिया। प्रधानाचार्य ने इस आदेश के विरोध में वाद किया परीक्षण कोर्ट ने वाद खारिज करते हुए निर्णय दिया कि कार्यकारी समिति एक विधिक निकाय नहीं है अतः वह विश्वविद्यालय के अधिनियम नियम तथा उप नियमों से बाध्य नहीं है, इसके अतिरिक्त वादी यह सिद्ध करने में असफल रहा कि उसने प्रतिवादी अथवा कॉलेज के साथ कोई संविदा निष्पादित की थी।
इस आदेश के विरुद्ध अपील करने पर प्रथम अतिरिक्त सिविल सेशन न्यायाधीश ने परीक्षण कोर्ट के निर्णय को उलट दिया तथा वादी के पक्ष में वह आदेश जारी कर दिया।
प्रतिवादी जो अब अपीलार्थी है इस आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने वादी के पक्ष में निर्णय देते हुए धारित किया कि कार्यकारी समिति एक विधिक निकाय है अतः यह विश्वविद्यालय के अधिनियम तथा नियमों से बाध्य है अतः वादी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है।
जब हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध प्रतिवादी वर्तमान अपीलार्थी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को उलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि हाईकोर्ट का निर्णय त्रुटिपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने धारित किया की अपीलार्थी अथवा कार्यकारी समिति एक विधिक निकाय नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तुत वाद उपर्युक्त तीनों अपवादों में नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के अंतर्गत अनुतोष दिया जाना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है अनुतोष की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती है। कोर्ट अनुतोष ठोस विधिक सिद्धांतों के आधार पर प्रदान करता है, कोर्ट का कार्य न्याय प्रदान करना है तथा वह ऐसा करते समय अन्याय अत्याचार का शास्त्र नहीं बन सकता। अपना विवेक प्रयोग करते समय कोर्ट को न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए तथा अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए जब ऐसा करना न्याय के लिए आवश्यक हो।
करतार सिंह बनाम हरजिंदर सिंह एआईआर 1990 एससी 854 के प्रकरण में कोई संपत्ति संयुक्त रूप से प्रत्यार्थी तथा उसकी बहन के नाम थी तथा वह अपने एक बहन की ओर से बीस में विक्रय करने की संविदा की। उसने प्रत्यार्थी से यह भी करार किया था कि वह विक्रय विलेख का रजिस्ट्रीकरण कराएगा परंतु उसकी बहन ने संपत्ति में अपने हिस्से को बेचने से इंकार कर दिया।
वादी द्वारा वाद करने पर कोर्ट ने Specific Performance की डिक्री जारी की परंतु हाईकोर्ट धारा 12 के उपबंधों को ध्यान में रखते हुए उपर्युक्त निर्णय को उलट दिया।
अपील में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को उलट कर निचले कोर्ट के निर्णय को बहाल करते हुए कहा कि यह धारा 12 के अंतर्गत नहीं आता है। इस प्रकरण में संविदा के एक भाग के पालन का नहीं था और संविदा पूर्ण संपत्ति के विक्रय के लिए की थी।
अपीलार्थी तथा प्रत्यार्थी की बहन के मध्य कोई संविदा नहीं थी केवल वैध संविदा अपीलार्थी के अपने हिस्से हेतु प्रत्यार्थी के साथ हुई। इन परिस्थितियों में वैध संविदा के लिए Specific परफॉरमेंस का अनुतोष प्रदान किया जा सकता है तथा यह अनुतोष इस आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि संपत्ति का विभाजन करना पड़ेगा यह अनुतोष इस आधार पर भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि संपत्ति कई जगह बटी हुई है।

