Specific Relief Act में Recovery Of Property और कॉन्ट्रैक्ट का पालन करवाने की रिलीफ
Shadab Salim
18 Sept 2025 4:06 PM IST

Recovery of Property
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के भाग 2 के अध्याय 1 में Recovery of Property से संबंधित उपबंध है। यह उपबंध विनिर्दिष्ट स्थावर तथा विनिर्दिष्ट जंगम दोनों प्रकार की संपत्तियों के संबंध में है। विनिर्दिष्ट स्थावर संपत्ति के कब्जे के प्रत्युध्दरण से संबंधित उपबंध धारा 5 धारा 6 में है जबकि विनिर्दिष्ट जंगम संपत्ति के प्रत्युध्दरण के बारे में उपबंध धारा 7 तथा धारा 8 में दिए गए हैं।
भारत में संविदा विधि के मूल सिद्धांत भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में उल्लिखित हैं परंतु उनमें विनिर्दिष्ट पालन का उल्लेख नहीं है। विनिर्दिष्ट पालन के सिद्धांत तथा नियम पहले विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1877 में दिए गए थे बाद में 1877 के अधिनियम को संशोधित करके विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 पारित किया गया। विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री सामान्यता दो प्रकार की होती है।
पहले प्रकार की डिक्री विनिर्दिष्ट पालन के उन मामलों में पारित की जाती है जहां संविदा की विषय वस्तु ऐसी होती है कि संविदा भंग होने पर प्रतिकर न तो योग्य अनुतोष होता है न ही उचित तथा युक्तियुक्त होता है। दूसरे प्रकार की डिक्री उन मामलों में पारित की जाती है जहां संविदा की विशेष एवं व्यवहारिक विशेषताओं के कारण प्रतिकर का लागू करना कठिन एवं गैरव्यापारिक होता है।
संविदा के पालन के विषय में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के संदर्भ में अगले आलेखों में विस्तारपूर्वक उल्लेख किया जाएगा। यह आलेख विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 पर एक प्रस्तावना के स्वरूप में लिखा गया है।
लिखित की परिशुद्धि के विषय में भी विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का महत्व है। इन अधिनियम की धारा 26 में दिए गए प्रावधान के अनुसार जबकि पक्षकारों के कपट या पारस्परिक भूल के कारण कोई लिखित संविदा या अन्य लिखित जो किसी कंपनी के संगम अनुच्छेद न हो जिस पर कंपनी अधिनियम 1956 लागू होता हो उनके आशय को अभिव्यक्त नहीं करती है।
दोनों में से कोई पक्षकार उसका हित प्रतिनिधि लिखित को परिशोधित करने का वाद संस्थित कर सकता है।
वादी किसी ऐसे वाद में जिसमें लिखित के अधीन कोई अधिकार अद्भुत कोई अधिकार भी बाधक हो अपने अभिवचन में दावा कर सकता है कि लिखित परिशोधित किया जाए।
ऐसी किसी बात में जिस लिखित में विनिर्दिष्ट है प्रतिवादी किसी अन्य प्रतिरक्षा के साथ-साथ जो उसको उपलब्ध हो लिखित की उपस्थिति की मांग कर सकता है।
इस अधिनियम की विशेषता यह है कि विनिर्दिष्ट अनुतोष केवल व्यक्तिगत सिविल अधिकारों के प्रवर्तन के प्रयोजन के लिए ही अनुदत्त किया जा सकता है इसे किसी दंड विधि के प्रयोजन हेतु अनुदत्त नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त जब तक अन्यथा उपबंध हो इस अधिनियम की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह (क) किसी व्यक्ति को निर्दिष्ट पालन से भिन्न अनुतोष के किसी अधिकार से जो वह किसी संविदा के अधीन रखता हो वंचित करती हैं अथवा (ख) दस्तावेजों पर भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 के प्रवर्तन पर प्रभाव डालती हैं।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 मुख्य रूप से संपत्ति के प्रत्युध्दरण के लिए, लिखतों की परिशुद्धि के लिए तथा संविदा के पालन के लिए कार्य में लिया जाता है। जब कभी किसी संविदा का पालन नहीं किया जाता है और संविदा को भंग कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में संविदा के भंग होने के परिणामस्वरूप व्यथित पक्षकार वादी के रूप में कोर्ट की शरण लेकर प्रतिकर प्राप्त कर सकता है परंतु यदि केवल प्रतिकर से ही पूर्ण न्याय नहीं होता है तो इस स्थिति में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की सहायता से वादी को पूर्ण न्याय दिया जाता है।

