वारंट-प्रकरणों में साक्ष्य दर्ज और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग करने के नियम : धारा 310 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
17 Dec 2024 6:51 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के प्रावधानों में साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया है। जहां धारा 307 से 309 सामान्य प्रावधानों और समन-प्रकरणों (Summons-Cases) में साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया को कवर करती हैं, वहीं धारा 310 विशेष रूप से वारंट-प्रकरणों में साक्ष्य दर्ज करने के नियमों पर केंद्रित है। वारंट-प्रकरण गंभीर अपराधों (Serious Offences) से जुड़े होते हैं, इसलिए इन मामलों में साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया अधिक सावधानी और पारदर्शिता (Transparency) की मांग करती है। यह लेख धारा 310 को सरल भाषा में उदाहरणों सहित समझाने का प्रयास करता है और इसे पिछले प्रावधानों से जोड़कर अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
वारंट-प्रकरणों में साक्ष्य दर्ज करना (Recording Evidence in Warrant-Cases)
धारा 310 के अनुसार, वारंट-प्रकरणों में गवाह का बयान उसकी परीक्षा (Examination) के दौरान ही दर्ज किया जाना चाहिए। यह साक्ष्य को सही और समय पर दर्ज करने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है, जिससे किसी त्रुटि या गलतफहमी की संभावना कम हो जाती है।
इस धारा के तहत, मजिस्ट्रेट (Magistrate) गवाह का बयान खुद लिख सकते हैं, उसे खुले कोर्ट में डिक्टेट (Dictate) कर सकते हैं, या यदि वे शारीरिक या अन्य असमर्थता के कारण ऐसा करने में अक्षम हों, तो उनके निर्देश और पर्यवेक्षण (Supervision) में अदालत के एक अधिकारी द्वारा यह कार्य किया जा सकता है।
ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग (Use of Audio-Video Electronic Means)
धारा 310 यह भी प्रावधान करती है कि गवाह का बयान ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means) से भी रिकॉर्ड किया जा सकता है, लेकिन यह अभियुक्त के वकील (Advocate of the Accused) की उपस्थिति में होना चाहिए। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में तकनीकी साधनों का समावेश करता है और साक्ष्य दर्ज करने में अधिक दक्षता और सटीकता (Accuracy) प्रदान करता है।
उदाहरण (Example):
अगर किसी वित्तीय धोखाधड़ी (Financial Fraud) मामले में गवाह विदेश में रह रहा हो, तो उसकी गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दर्ज की जा सकती है। अभियुक्त का वकील इस प्रक्रिया में भाग लेकर सुनिश्चित करेगा कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष रहे।
असमर्थता का प्रमाण पत्र (Certification of Incapacity)
अगर मजिस्ट्रेट किसी शारीरिक या अन्य असमर्थता (Incapacity) के कारण स्वयं साक्ष्य दर्ज करने में अक्षम हों, तो उन्हें इसके कारणों का प्रमाण पत्र (Certificate) रिकॉर्ड करना होगा। यह प्रमाण पत्र न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और इस प्रावधान के दुरुपयोग को रोकता है। यह प्रमाण पत्र अदालत के आधिकारिक रिकॉर्ड का हिस्सा बनता है।
उदाहरण (Example):
अगर मजिस्ट्रेट किसी चोट (Injury) के कारण लिखने में असमर्थ हों, तो वे अदालत के एक अधिकारी को यह कार्य सौंप सकते हैं और एक प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं जिसमें उनकी असमर्थता का कारण दर्ज हो। यह प्रक्रिया साक्ष्य की वैधता (Validity) को बनाए रखती है।
साक्ष्य का स्वरूप: कथा और प्रश्नोत्तर (Narrative and Question-Answer Format)
धारा 310 कहती है कि गवाह का बयान आमतौर पर कथा (Narrative) रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि गवाह की गवाही को एक सतत कहानी के रूप में रिकॉर्ड किया जाए। हालांकि, मजिस्ट्रेट को यह विवेकाधिकार (Discretion) है कि वे आवश्यक होने पर गवाही का कुछ हिस्सा प्रश्न और उत्तर (Question and Answer) के रूप में भी दर्ज कर सकते हैं।
उदाहरण (Example):
किसी आपराधिक मामले में जहां गवाह तकनीकी वित्तीय विवरण (Technical Financial Details) प्रस्तुत कर रहा हो, मजिस्ट्रेट प्रश्न पूछकर उसका उत्तर स्पष्ट रूप से दर्ज कर सकते हैं। इससे गवाही में भ्रम की संभावना कम हो जाती है।
मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर और रिकॉर्ड में शामिल करना (Signing and Inclusion in Record)
साक्ष्य दर्ज करने के बाद मजिस्ट्रेट को इसे हस्ताक्षरित (Signed) करना होता है और इसे आधिकारिक अदालत रिकॉर्ड का हिस्सा बनाना होता है। यह प्रक्रिया साक्ष्य की प्रामाणिकता (Authenticity) और कानूनी वैधता सुनिश्चित करती है। मजिस्ट्रेट का हस्ताक्षर यह संकेत देता है कि उन्होंने दर्ज साक्ष्य की समीक्षा और पुष्टि की है।
पिछले प्रावधानों से संबंध (Relationship with Previous Provisions)
धारा 310 को समझने के लिए इसे धारा 307 से 309 के संदर्भ में देखना उपयोगी है। जहां धारा 307 अदालत की भाषा (Court Language) तय करती है, वहीं धारा 308 और 309 साक्ष्य दर्ज करने के सामान्य सिद्धांतों को कवर करती हैं। ये प्रावधान न्यायिक प्रक्रियाओं में एकरूपता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।
उदाहरण के लिए, धारा 308 यह स्पष्ट करती है कि साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में या उसके वकील की उपस्थिति में दर्ज किया जाना चाहिए। यह सिद्धांत वारंट-प्रकरणों में धारा 310 के तहत भी लागू होता है। इसी तरह, कथा और प्रश्नोत्तर प्रारूप का विवेकाधिकार, जो धारा 309 में दिया गया है, वारंट-प्रकरणों के लिए भी प्रासंगिक है।
तकनीक और न्याय का संतुलन (Balancing Technology and Justice)
धारा 308 और 310 में ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के समावेश से न्यायालय तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम बनता है। हालांकि, संहिता यह सुनिश्चित करती है कि यह आधुनिकरण अभियुक्त के अधिकारों (Rights of the Accused) या साक्ष्य की प्रामाणिकता को प्रभावित न करे।
उदाहरण (Example):
किसी बड़े भ्रष्टाचार (Corruption) मामले में जहां कई गवाहों के बयान आवश्यक हों, लेकिन उनमें से कुछ गवाह अदालत में उपस्थित न हो सकें, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बयान दर्ज किए जा सकते हैं। इससे प्रक्रिया में तेजी आएगी और अभियुक्त के अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 310 वारंट-प्रकरणों में साक्ष्य दर्ज करने के लिए विस्तृत ढांचा प्रदान करती है। पारंपरिक रिकॉर्डिंग विधियों के साथ-साथ ऑडियो-वीडियो तकनीक का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया निष्पक्ष और प्रभावी हो।
धारा 310 को जब धारा 307 से 309 के साथ देखा जाता है, तो यह स्पष्ट होता है कि संहिता साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया में दक्षता, सटीकता और सभी पक्षों के अधिकारों का संतुलन बनाए रखने पर जोर देती है। इस प्रक्रिया का पालन करते हुए अदालतें यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि न्याय निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से प्रदान किया जाए।