क्या बार एसोसिएशन के चुनाव में केवल नियमित वकीलों को ही मतदान का अधिकार है?

Himanshu Mishra

19 Dec 2024 5:51 PM IST

  • क्या बार एसोसिएशन के चुनाव में केवल नियमित वकीलों को ही मतदान का अधिकार है?

    सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के चुनाव को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारी केवल उन वकीलों द्वारा चुने जाने चाहिए जो संबंधित हाईकोर्ट या अदालत में नियमित रूप से प्रैक्टिस करते हैं।

    बाहरी व्यक्तियों को, जो नियमित रूप से उस अदालत में प्रैक्टिस नहीं करते हैं, चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह टिप्पणी जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने की।

    अवध बार एसोसिएशन चुनाव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए की, जिसमें अवध बार एसोसिएशन के चुनाव को रद्द कर दिया गया था।

    हाईकोर्ट ने 14 अगस्त 2021 को हुए चुनाव के दौरान वकीलों द्वारा की गई अनुचित हरकतों और अशांति के कारण चुनाव रद्द कर नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि चुनाव की पवित्रता बनाए रखने के लिए यह निर्णय उचित था।

    चुनाव में अनुशासनहीनता की घटनाएं

    14 अगस्त 2021 को अवध बार एसोसिएशन के चुनाव के दौरान वकीलों और उनके समर्थकों ने मतदान क्षेत्र में हंगामा किया, बैलट पेपर्स फाड़े और महिला वकीलों के साथ दुर्व्यवहार किया। इस घटना में एक वकील गंभीर रूप से घायल हो गया और एक अन्य को दिल का दौरा पड़ा। हाईकोर्ट ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए चुनाव को रद्द कर दिया और नया चुनाव कराने के आदेश दिए।

    चुनाव प्रक्रिया को लेकर हाईकोर्ट की शर्तें

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 24 अगस्त 2021 को अपने आदेश में चुनाव प्रक्रिया के लिए कुछ सख्त शर्तें लागू की थीं। इनमें यह शर्त शामिल थी कि केवल हाईकोर्ट, लखनऊ के नियमित प्रैक्टिशनर ही चुनाव में भाग ले सकते हैं। इसके अलावा, नियमित प्रैक्टिशनर की परिभाषा भी स्पष्ट की गई।

    बाद में 27 अगस्त 2021 को हाईकोर्ट ने इन शर्तों में कुछ संशोधन किए और कहा कि:

    1. नियमित प्रैक्टिशनर के लिए तीन वर्षों की न्यूनतम प्रैक्टिस अवधि को घटाकर दो वर्ष कर दिया गया।

    2. 2019 में 10 और 2020 में 5 मामले दर्ज करने की शर्त रखी गई।

    3. लखनऊ-बाराबंकी रोड पर या उसकी कॉलोनियों में रहने वाले वकीलों को लखनऊ निवासी माना जाएगा।

    4. अधिवक्ता-शपथ आयुक्तों को नियमित प्रैक्टिशनर माना जाएगा।

    5. जिन वकीलों को चैंबर आवंटित किए गए हैं, उन्हें भी नियमित प्रैक्टिशनर माना जाएगा।

    वकीलों की गरिमा और जिम्मेदारी पर सुप्रीम कोर्ट का जोर

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकील एक उच्च और सम्मानित पेशे से जुड़े होते हैं। उनके द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से जनता के बीच गलत संदेश जाता है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वकील अदालत परिसर में अनुशासनहीनता और नारेबाजी नहीं कर सकते। कोर्ट ने अपने एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अदालत की गरिमा और कानून के शासन की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।

    हाईकोर्ट का आदेश और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवध बार एसोसिएशन के चुनाव में हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई सख्ती उचित थी। हाईकोर्ट ने चुनाव में भाग लेने के लिए जिन शर्तों को लागू किया, वे चुनाव की शुद्धता बनाए रखने के लिए जरूरी थीं।

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह आदेश वकीलों के अनुशासन और अदालत की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक था।

    अदालत की अवमानना और हाईकोर्ट की भूमिका (Contempt of Court and Role of High Courts)

    इस मामले में हाईकोर्ट (High Court) ने संविधान के अनुच्छेद 226 (Article 226) के तहत निहित शक्तियों (Inherent Powers) का उपयोग करते हुए चुनावों में अनुशासन और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए।

    हाईकोर्ट ने अवध बार एसोसिएशन के चुनावों में "वन बार, वन वोट" (One Bar, One Vote) का सिद्धांत लागू करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, पर्चे बांटना, प्रचार के लिए डिनर आयोजित करना और अन्य तरीकों से चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने पर रोक लगा दी।

    बार एसोसिएशन की स्वायत्तता (Autonomy of Bar Associations)

    सुप्रीम कोर्ट ने वकालत अधिनियम, 1961 (Advocates Act, 1961) के तहत बार एसोसिएशन की स्वायत्तता को स्वीकार किया। हालांकि, यह स्पष्ट किया कि स्वायत्तता (Autonomy) बार एसोसिएशन को चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) और नैतिक मानकों (Ethical Standards) का पालन करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करती।

    महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख (Key Judgments Referenced)

    1. आर. मुथुकृष्णन बनाम मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल (2019)

    इस फैसले में कोर्ट ने कानूनी पेशे (Legal Profession) की प्रतिष्ठा (Nobility) और लोकतंत्र (Democracy) में इसकी भूमिका पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि वकीलों का कर्तव्य न्यायपालिका (Judiciary) की ईमानदारी की रक्षा करना है और किसी भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसकी प्रतिष्ठा प्रभावित हो।

    2. महीपाल सिंह राणा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2016)

    सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों में अनुशासनहीनता (Indiscipline) की घटनाओं की कड़ी आलोचना की और कहा कि बार काउंसिल (Bar Council) का दायित्व है कि वह अनुशासन बनाए रखे।

    3. पूर्व कैप्टन हरीश उप्पल बनाम भारत संघ (2003)

    इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि वकीलों को हड़ताल (Strike) करने या अदालत का बहिष्कार (Boycott) करने का अधिकार नहीं है क्योंकि इससे न्याय प्रशासन (Administration of Justice) बाधित होता है। यह सिद्धांत चुनाव के दौरान किसी भी व्यवधान (Disruption) पर भी लागू होता है।

    सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां (Supreme Court's Observations)

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन के चुनावों में नैतिक और प्रक्रियात्मक मानकों (Procedural Standards) का पालन किया जाना चाहिए।

    चुनावों में नारेबाजी (Slogan-Shouting), जुलूस निकालना (Processions), या हिंसा जैसी कोई भी अनुचित गतिविधि अस्वीकार्य है।

    बार एसोसिएशन न्याय वितरण प्रणाली (Justice Delivery System) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और उनकी कार्यशैली (Conduct) को उच्चतम पेशेवर मानकों (Professional Standards) को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

    बार चुनावों में नैतिक मानकों का महत्व (Importance of Ethical Standards in Bar Elections)

    इस फैसले ने न्याय और संविधान की रक्षा में कानूनी पेशे की अद्वितीय भूमिका को रेखांकित किया। वकील केवल पेशेवर नहीं हैं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों (Democratic Values) के संरक्षक (Custodians) हैं।

    चुनावों के दौरान नैतिक मानदंडों (Ethical Norms) से कोई भी विचलन (Deviation) जनता के न्याय प्रणाली (Legal System) पर विश्वास को कमजोर करता है।

    सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बार एसोसिएशन के चुनावों में सख्त दिशानिर्देशों की आवश्यकता को फिर से स्थापित करता है।

    हाईकोर्ट के निर्देशों को बरकरार रखते हुए, इस फैसले ने सुनिश्चित किया कि कानूनी पेशा (Legal Profession) ईमानदारी, अनुशासन और निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध रहे। यह निर्णय याद दिलाता है कि बार एसोसिएशन को उन न्याय सिद्धांतों (Principles of Justice) का उदाहरण बनाना चाहिए जिनकी वे रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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