भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 130 और 131 के तहत आपराधिक बल और असॉल्ट के लिए सजा
Himanshu Mishra
15 Aug 2024 6:21 PM IST
भारतीय न्याय संहिता 2023, जो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की जगह आई है और 1 जुलाई 2024 से प्रभावी हुई है, विभिन्न आपराधिक कृत्यों के बारे में स्पष्ट परिभाषाएँ और प्रावधान देती है। धारा 130 और 131 विशेष रूप से असॉल्ट (Assault) और आपराधिक बल (Criminal force) के उपयोग से संबंधित हैं। इन प्रावधानों को पूरी तरह से समझने के लिए, हमें उनके अर्थ, स्पष्टीकरण और उदाहरणों को सरल भाषा में समझना होगा।
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 130 और 131 असॉल्ट और आपराधिक बल के उपयोग पर स्पष्ट दिशानिर्देश देती हैं। इन धाराओं में इरादे, ज्ञान, और पीड़ित के विश्वास की महत्वपूर्ण भूमिका है कि यह तय किया जा सके कि कोई कृत्य असॉल्ट या आपराधिक बल है या नहीं। इन प्रावधानों को समझकर, व्यक्ति अपने कार्यों के कानूनी परिणामों को बेहतर तरीके से समझ सकता है और संभावित कानूनी परिणामों से खुद को बचा सकता है।
धारा 130: असॉल्ट (Assault) की परिभाषा
धारा 130 में असॉल्ट की परिभाषा दी गई है। इस धारा के अनुसार, असॉल्ट तब होता है जब कोई व्यक्ति ऐसा इशारा (Gesture) या तैयारी करता है जिससे दूसरे व्यक्ति को यह महसूस हो कि उस पर आपराधिक बल (Criminal force) का प्रयोग होने वाला है। इसका मतलब है कि भले ही कोई शारीरिक संपर्क न हो, केवल किसी को यह विश्वास दिलाना कि उस पर हमला होने वाला है, असॉल्ट के रूप में माना जा सकता है।
असॉल्ट (Assault) का स्पष्टीकरण
कानून स्पष्ट करता है कि केवल शब्दों से असॉल्ट नहीं होता। लेकिन अगर कोई व्यक्ति शब्दों के साथ ऐसा इशारा (Gesture) या तैयारी करता है जिससे वह इशारा या तैयारी डरावनी लगे, तो उसे असॉल्ट माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति केवल धमकी भरे शब्द कहता है, तो यह असॉल्ट नहीं होगा, लेकिन अगर वह शब्द किसी डरावने इशारे के साथ कहे जाएं, तो यह असॉल्ट हो सकता है।
असॉल्ट (Assault) के उदाहरण
इसे और स्पष्ट करने के लिए, कानून कुछ उदाहरण देता है:
उदाहरण (a): मान लीजिए, A अपनी मुट्ठी Z की ओर हिलाता है, इस इरादे से या जानते हुए कि Z को लगेगा कि A उसे मारने वाला है। भले ही A ने Z को मारा नहीं हो, लेकिन अगर Z को विश्वास हो जाए कि A उसे मारने वाला है, तो यह असॉल्ट माना जाएगा। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि Z को विश्वास हो कि A उसे मारने वाला है।
उदाहरण (b): कल्पना कीजिए कि A एक खतरनाक कुत्ते की जंजीर खोलने की तैयारी करता है, इस इरादे से या जानते हुए कि Z को लगेगा कि A कुत्ते को उस पर छोड़ने वाला है। भले ही कुत्ता छोड़ा न गया हो, लेकिन इस तैयारी से Z को अगर यह विश्वास हो जाए कि कुत्ता उस पर हमला करने वाला है, तो इसे असॉल्ट माना जाएगा।
उदाहरण (c): मान लीजिए, A एक डंडा उठाता है और Z से कहता है, "मैं तुम्हें पीटूंगा"। यहाँ, केवल शब्दों से असॉल्ट नहीं होता और डंडा उठाने का इशारा भी बिना किसी अन्य परिस्थिति के असॉल्ट नहीं हो सकता, लेकिन अगर A के शब्द और इशारा मिलकर Z को लगे कि A उसे मारने वाला है, तो यह असॉल्ट माना जा सकता है।
धारा 131: असॉल्ट (Assault) और आपराधिक बल (Criminal Force) के लिए सजा
धारा 131 भारतीय न्याय संहिता 2023 में यह प्रावधान करती है कि कोई व्यक्ति, जो किसी और पर असॉल्ट या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, उसे तीन महीने तक की सजा, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यह सजा तभी लागू होती है जब असॉल्ट या आपराधिक बल अचानक और गंभीर उकसावे (grave and sudden provocation) के बिना किया गया हो। इस धारा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कब उकसावे के बावजूद सजा में कोई कमी नहीं होगी।
स्पष्टीकरण 1: कब उकसावे से सजा में कोई कमी नहीं होती
कभी-कभी, अचानक और गंभीर उकसावे (grave and sudden provocation) से सजा में कमी हो सकती है।
यह स्पष्टीकरण बताता है कि किस स्थिति में उकसावे से सजा में कोई कमी नहीं होती:
1. अपराधी द्वारा जानबूझकर उकसावा: अगर वह व्यक्ति, जिसने असॉल्ट किया है, जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को उकसाता है ताकि असॉल्ट के लिए बहाना बना सके, तो सजा में कमी नहीं होगी। उदाहरण के लिए, अगर A जानबूझकर B का अपमान करता है ताकि B गुस्से में प्रतिक्रिया दे और फिर A उस पर हमला कर सके, तो A की सजा में कोई कमी नहीं होगी।
2. कानूनी कार्यवाही से उकसावा: अगर उकसावा किसी कानूनी आदेश या किसी सरकारी सेवक द्वारा कानूनी तरीके से किया गया हो, तो सजा में कोई कमी नहीं होगी। उदाहरण के लिए, अगर एक पुलिस अधिकारी किसी को कानून के तहत गिरफ़्तार करता है और उस व्यक्ति को इससे उकसावा महसूस होता है और वह अधिकारी पर हमला करता है, तो उस व्यक्ति की सजा में कोई कमी नहीं होगी।
3. स्वयं की रक्षा के अधिकार में उकसावा: अगर उकसावा किसी व्यक्ति द्वारा अपनी कानूनी रक्षा के अधिकार के तहत किया गया हो, तो सजा में कोई कमी नहीं होगी। उदाहरण के लिए, अगर B अपनी रक्षा के लिए A पर हमला करता है और A इसे उकसावा मानकर B पर हमला करता है, तो A की सजा में कोई कमी नहीं होगी।
स्पष्टीकरण 2: उकसावे की गंभीरता और अचानकता का निर्धारण
यह तय करना कि उकसावा इतना गंभीर और अचानक था कि सजा में कमी होनी चाहिए या नहीं, एक तथ्य का प्रश्न है। इसका मतलब है कि हर मामले में अदालत विशेष परिस्थितियों का अध्ययन करेगी और यह निर्धारित करेगी कि उकसावा सजा में कमी के लिए पर्याप्त था या नहीं।
बल (Force), आपराधिक बल (Criminal Force), और असॉल्ट (Assault) के बीच अंतर
असॉल्ट (Assault) और आपराधिक बल (Criminal Force) की अवधारणाओं को पूरी तरह से समझने के लिए, बल, आपराधिक बल और असॉल्ट के बीच के अंतर को समझना आवश्यक है।
बल (Force)
कानून में बल का अर्थ किसी भी ऐसी क्रिया से है जो किसी व्यक्ति या वस्तु की गति या उसकी दिशा में परिवर्तन कर दे। इसमें किसी को धक्का देना, खींचना, या वस्तुओं या जानवरों का प्रयोग कर किसी को हिलाना शामिल हो सकता है। बल अपने आप में अवैध नहीं है, जब तक कि इसका प्रयोग किसी अपराध को अंजाम देने या किसी को हानि पहुँचाने के इरादे से न किया जाए।
आपराधिक बल (Criminal Force)
जब बल का प्रयोग जानबूझकर, बिना उस व्यक्ति की सहमति के, अपराध करने या किसी को चोट, डर, या असुविधा पहुँचाने के इरादे से किया जाता है, तो इसे आपराधिक बल कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, अगर A जानबूझकर B को नुकसान पहुँचाने या डराने के इरादे से उसे धक्का देता है, तो यह आपराधिक बल होगा। बल और आपराधिक बल के बीच का मुख्य अंतर इस क्रिया के पीछे का इरादा और जिसके खिलाफ बल का प्रयोग किया गया है, उसकी सहमति की कमी है।
असॉल्ट (Assault)
असॉल्ट बल और आपराधिक बल से इस मायने में अलग है कि इसमें शारीरिक संपर्क जरूरी नहीं है। असॉल्ट तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह विश्वास दिलाता है कि उसके खिलाफ आपराधिक बल का प्रयोग होने वाला है।
उदाहरण के लिए, अगर A एक डंडा उठाकर B को मारने के लिए तैयार होता है और B को लगता है कि A उसे मारने वाला है, तो यह असॉल्ट माना जाएगा, भले ही कोई शारीरिक संपर्क न हो।