सुप्रीम कोर्ट मंथली डाइजेस्ट : दिसंबर 2019

LiveLaw News Network

1 Jan 2020 11:00 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट मंथली डाइजेस्ट : दिसंबर 2019

    अगर किसी नॉन-स्पीकिंग आदेश से विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज किया गया हो तो उस पर विलय का सिद्धांत लागू नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विशेष अनुमति याचिका को निरस्त करने के लिए कोई नॉन-स्पीकिंग आदेश संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत क़ानून का उद्घोष नहीं है और न ही यह विलय का सिद्धांत इस पर लागू होता है। पी सिंगरवेलन बनाम ज़िला कलेक्टर, तिरुपुर का यह मामला तमिलनाडु सरकार के एक आदेश की व्याख्या से जुड़ा था।

    अदालत ने पाया कि ऐसे बहुत सारे आदेश आए हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने ड्राइवरों को राहत दिए जाने से संबंधित विशेष अनुमति याचिकाओं को ख़ारिज किया जा चुका है पर इस तरह के सारे आदेश याचिका को स्वीकार करने के स्तर पर ही ख़ारिज किए गए थे।

    इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर और कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट है कि उक्त सभी आदेश इस अर्थ में नॉन-स्पीकिंग आदेश थे कि विशेष अनुमति याचिका दायर करने की अनुमति ही नहीं दी गई थी। इस स्थिति में यह याद रखना ज़रूरी है कि किसी निचली अदालत या मंच के आदेश के ख़िलाफ़ किसी विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज करना उस आदेश की पुष्टि नहीं है। अगर इस अदालत का ऐसा कोई आदेश नॉन-स्पीकिंग है तो यह संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत क़ानून की उद्घोषणा नहीं है साथ ही यह विलय का सिद्धांत भी इस पर लागू नहीं होता।"

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    व‌िलंब माफी की अर्जी में ठोस कारण दिया जाना जरूरीः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विलंब माफी अर्जियों में रूटीन स्पष्टीकरण नहीं, बल्‍कि उचित और स्वीकार्य स्पष्टीकरण आवश्यक है। जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस एएस बोपन्ना और ज‌स्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार किया, जिसने 916 दिनों की देरी के आधार पर लेटर पेटेंट अपील को खारिज कर दिया था।

    इस संबंध में फैसलों का हवाला देते हुए, बेंच ने कहा कि विलंब माफी अर्ज‌ियों के मामले में उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, हालांकि साथ में ये भी जोड़ा कि चूंकि दूसरे पक्ष के अर्जित अधिकार या प्रतिकूल परिणाम को भी परिप्रेक्ष्य में रखा जाना चाहिए, इसलिए लंबी देरी के मामलों में स्वत: माफी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कि हर दिन की देरी को बारीकी से समझाने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन एक उचित और स्वीकार्य स्पष्टीकरण बहुत आवश्यक है।

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    बीमा कंपनी देर होने को उपभोक्ता फ़ोरम के सामने पहली सुनवाई में इंकार करने का आधार नहीं बना सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा कंपनी पहली ही बार इंकार करने के लिए देरी को आधार नहीं बना सकता अगर उसने सूचनार्थ भेजे गए पत्र में इंकार को विशेष रूप से आधार बनाने की बात नहीं कही है। सौराष्ट्र केमिकल्ज़ लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दो मामलों पर ग़ौर करना था।

    पहला, प्रतिवादी बीमाकर्ता ने सर्वेयर की नियुक्ति कर सूचना देने और दावे का दावा करने में में देरी को माफ़ करने की बात कही थी कि नहीं। दूसरा, सूचना संबंधित पत्र में देरी के बारे में किसी भी तरह का ज़िक्र नहीं करना जो कि पॉलिसी की आम शर्तों में से क्लाज़ 6(i) का उल्लंघन है, क्या इसे एनसीडीआरसी के समक्ष अपने बचाव के रूप में पेश कर सकती है। गलाडा पावर एंड टेलीकम्यूनिकेशन लिमिटेड बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में यह कहा गया था कि चूंकि इंकार के पत्र में कहीं से भी देरी से सूचना का कोई ज़िक्र नहीं है, जैसा कि क्लाज़ 6(i) में कहा गया है तो इसे दावे में अपने बचाव के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता।

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    मध्यस्थता निर्णयों और अस्‍पष्ट निर्णयों में कारणों की अपर्याप्तता, एससी ने की अंतर की व्याख्या

    सुप्रीम कोर्ट हाल ही में दिए एक फैसले में न्यायालयों द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत दिए निर्णय में कारणों की अपर्याप्तता और अस्पष्ट निर्णय के बीच अंतर पर प्रकाश डाला।

    जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आमतौर पर अबोधगम्य निर्णयों को रद्द नहीं किया जाना चाहिए, जबकि कारणों की अपर्याप्तता को चुनौती हो, उन पर तर्क की विशिष्टता के आधार पर फैसला किया जाना चाहिए, जो कि विचार के लिए आए मुद्दों की प्रकृति के संबंध में अपेक्षित हो। डायना टेक्नोलॉजीज प्रा लि बनाम क्रॉम्पटन ग्रीव्स लिमिटेड के मामले में बेंच ने, जिसमें ज‌‌स्टिस मोहन एम शान्तनगौदर और जस्टिस अजय रस्तोगी भी शामिल थे, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील पर विचार किया, जिसमें मध्यस्थता के फैसले को रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि फैसले में पर्याप्त कारण नहीं हैं और फैसले में शामिल बयान में कोई कारण, चर्चा या निष्कर्ष प्रदान नहीं करता है।

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    किरायेदार द्वारा चुनौती देने पर मकान मालिक को अपना व्युत्पन्न स्वामित्व साबित करना आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि हालांकि एक मकान मालिक-किरायेदार के मुकदमे में मकान मालिक को संपत्ति पर अपना स्वामित्व साबित करने की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन जब संपत्ति पर उसके व्युत्पन्न स्वामित्व को चुनौती दी जाती है तो उसे किसी न किसी रूप में उसे साबित करना होगा।

    इस मामले (विनय एकनाथ लाड बनाम चिउ माओ चेन) में मुकदमों के वाद दायर करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने वादकारियों द्वारा दायर किए गए मुकदमे को खारिज कर दिया था, जिन्होंने दावा किया था कि उनका अधिकार, स्वामित्व और रुचि विषय परिसर से है। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया।

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    ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी : सुप्रीम कोर्ट का बैंक को निर्देश, स्कूल को 25 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाए

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बैंक को निर्देश दिया है कि वह ऑनलाइन धोखाधड़ी के शिकार हुए स्कूल को 25 लाख रुपए का मुआवज़ा दे। इस बैंक के खाते से पैसे फ़र्ज़ी तरीक़े से 30 लाख रुपए निकाल लिए गए थे। डीएवी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल ने इंडियन बैंक के ख़िलाफ़ उपभोक्ता मंच में शिकायत की थी।

    स्कूल ने कहा था कि स्कूल के बैंक खाते को स्कूल के प्रिंसिपल के ग्राहक सूचना फ़ाइल (सीआईएफ) से जोड़ दिया गया था जबकि इस खाते के लिए नेट बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इस वजह से स्कूल के खाते से ₹30 लाख फ़र्ज़ी तरीक़े से निकाल लिए गए। राज्य आयोग और एनसीडीआरसी ने पाया कि इस संदर्भ में बैंक की सेवा में कमी रही। पर इन दोनों ने बैंक को इस आधार पर सिर्फ़ एक लाख रुपए का मुआवज़ा देने का आदेश दिया कि इसमें बैंक और प्रिंसिपल की मिलीभगत थी। इसके बाद स्कूल इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गया।

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    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पुरानी पड़ चुकी और बिना मतलब की घटनाएं हिरासत के आदेश का आधार नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुरानी पड़ चुकी और बिना मतलब की घटनाएं हिरासत के आदेश का आधार नहीं हो सकती हैं।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने मद्य तस्करी, डकैती, ड्रग-अपराधियों, गुंडों, मानवी तस्करी, भूमि कब्जेदारों, नकली बीज बेचने के अपराधियों, कीटनाशक अपराधियों, उर्वरक अपराधियों, खाद्य अपमिश्रण अपराधियों, नकली दस्तावेज बनाने के अपराधियों, अनुसूचित वस्तुओं के अपराधियों, वन अपराधियों, गेमिंग अपराधियों , यौन अपराधियों , विस्फोटक पदार्थ रखने के अपराधियों , हथियार अपराधियों , साइबर अपराध अपराधियों, सफेदपोश अपराध‌ियों की रोकथाम के लिए बने तेलंगाना प्रिवेंशन ऑफ डेंजरस एक्टिविटीज़ की धारा तीन और वित्तीय अपराधी अधिनियम 1961 के तहत खाजा बिलाल अहमद की हिरासत रद्द करते हुए ये टिप्‍पणी की। सुप्रीम कोर्ट उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें हिरासत के आदेश को चुनौती दी गई थी।

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    (धारा 304बी आईपीसी) वित्तीय सहायता मांगना भी दहेज की मांग में शामिल: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वित्तीय सहायता मांगना भी 'दहेज की मांग' में शामिल हो सकता है। दहेज हत्या के मामले से संबंधित एक आपराधिक अपील में अभियुक्त ने दलील दी थी कि उसके अपनी क्लिनिक के विस्तार के लिए पैसा मांगा था न कि दहेज के रूप में।

    अप्‍पासाहेब व एएनआर बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (2007) 9 एससीसी 721 के फैसले पर भरोसा जताते हुए, यह कहा गया कि कुछ वित्तीय आवश्यकताओं के कारण या कुछ जरूरी घरेलू खर्चों को पूरा करने के लिए या खाद खरीदने के लिए पैसे की मांग को दहेज की मांग नहीं कहा जा सकता है।

    इस मामले में आरोपी (जतिंदर कुमार बनाम हरियाणा राज्य) को अपनी मृत पत्नी का दहेज के लिए शोषण करने का आरोपी पाया गया. उसकी मां और दो भाइयों को भी ट्रायल कोर्ट ने दोषी पाया. हाईकोर्ट ने दोषियों की सजा की पुष्टि करते हुए अन्य को बरी कर दिया। अप्पासाहेब केस पर आधारित दलीलों को खारिज करते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा: न्यायालय के उस फैसले को, जिसमें कहा गया था कि वित्तीय सहायता को दहेज नहीं माना जाएगा, राजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में इस न्यायालय की तीन जजों की बेंच खारिज कर दिया है ( 2015) 6 एससीसी 477।

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    वैधानिक नियमों के गलत इस्तेमाल और उसमें भेदभावों के आरोप हों तो किसी उम्मीदवार को चयन प्रक्रिया को चुनौती देने से नहीं रोका जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

    सेवा कानून को लेकर एक उल्लेखनीय निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जब उसमें "वैधानिक नियमों के गलत इस्तेमाल और उसमें उत्पन्न होने वाले भेदभावों" के आरोप हों तो किसी उम्मीदवार को इसमें भाग लेने के आधार पर चयन प्रक्रिया को चुनौती देने से नहीं रोका जाएगा। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने एक याचिका को स्वीकार किया जाए या नहीं इस बारे में ग़ौर करते हुए यह कहा। यह अपील बिहार में सामान्य चिकित्सा अधिकारी की चयन प्रक्रिया से संबंधित थी। अपीलकर्ता डॉ. मेजर मीता सहाय, चयन प्रक्रिया में 'वेटेज' की गणना के लिए सेना अस्पताल में अपने अनुभव पर विचार न करने से व्यथित थे। सरकार ने यह स्टैंड लिया कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में काम के अनुभव को ही महत्व दिया जाएगा।

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    अनुच्छेद 142 का प्रयोग मृतप्राय हो चुके विवाहों को खत्म करने के लिए किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट कहते है कि शादियां स्वर्ग में तय हो जाती हैं, मगर धरती पर वो टूट गई हैं, सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्‍पणी एक शादी को खत्म करते हुए कि जिसमें समझौते की उम्‍मीद खत्म हो गई थी। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 को विवाह के उन मामलों को भंग करने प्रयोग किया जा सकता है, जहां विवाह एक मृतप्राय चुका हो। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले में एक पत्नी ने अपील की थी, जो तलाक न दिए जाने से दुखी थी। यह दंपति मुश्किल से ढाई महीने तक एक साथ रहा था। 2003 से वे एक दूसरे से अलग रह रहे थे और तलाक का मुकदमा दायर कर रखा था। पत्नी ने पति के खिलाफ विवाहेतर संबंध के आरोप लगाया था, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

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    13 दिन के ट्रायल में मौत की सज़ा पाने वाले आरोपी को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जल्दी केस निपटारे का परिणाम ऐसा न हो कि न्याय दफ़्न हो जाए

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों के त्वरित निपटारे का परिणाम कभी भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि यह न्याय के दफ्न होने का कारण बन जाए। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने बलात्कार और हत्या के एक आरोपी की मौत की सज़ा के फैसले को रद्द कर दिया। इस आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने तेरह दिनों के भीतर सुनवाई पूरी करके मौत की सज़ा सुनाई थी।

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    निर्भया मामला : सुप्रीम कोर्ट ने दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका खारिज की

    जस्टिस आर बानुमथी, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बुधवार को निर्भया गैंग रेप-मर्डर मामले में अंतिम लंबित पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया, जिसे अक्षय कुमार सिंह ने दायर किया था। इस मामले में चार दोषियों को मौत की सजा हुई थी। फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति बानुमथी ने कहा, "हमने हर आधार पर विचार किया है। याचिकाकर्ता ने सबूतों को स्वीकार करने की मांग की है। इन आधारों पर पहले विचार किया गया है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। इन सभी का परीक्षण न्यायालय, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में किया जा चुका है।"

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    सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 पर दाखिल सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी किये

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी किया। हालांकि बेंच ने मामलों के निपटारे तक अधिनियम के संचालन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सीजेआई बोबडे और जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने केंद्र से जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब दाखिल करने को कहा है।

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    सीआरपीसी की धारा 362 आदेश को रोकने की हाईकोर्ट की निहित शक्ति पर रोक नहीं लगाती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के पास दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एक आदेश को वापस लेने की अंतर्निहित शक्ति है और सीआरपीसी की धारा 362 के प्रावधान ऐसी शक्तियों के प्रयोग से रोक नहीं सकते।

    इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत दोषी ठहराए जाने से किसी व्यक्ति के करियर पर असर नहीं पड़ेगा। नियोक्ता ने आदेश वापस लेने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें दलील दी गई थी कि नियोक्ता को कर्मचारी के किसी भी कदाचार, जिसके कारण कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया हो, को ध्यान में रखने का अधिकार है, नियोक्ता की पीठ के पीछे आनुशंगिक कार्यवाही में नहीं ले जाया जा सकता है। इस आवेदन को हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सीआरपीसी की धारा 362 के प्रावधानों के मद्देनजर समीक्षा बरकरार नहीं रखी जा सकती है।

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    सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना प्रतिकूल आदेश से किसी को सज़ा नहीं सुनाई जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    किसी भी व्यक्ति को सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना एक प्रतिकूल आदेश से सज़ा नहीं सुनाई जा सकती। चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा आपूर्तिकर्ता डेफोडिल्स से स्थानीय खरीद को रोकने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की। यह आदेश यूपी सरकार के प्रधान सचिव द्वारा जारी किया गया था। यह कहते हुए कि डैफोडिल्स के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इसने अपराध किया है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) इस मुद्दे पर पूछताछ कर रही थी।

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    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरोपी नशे के कारण बेहोशी की हालत में न हो तो नहीं कम होती अपराध की गंभीरता

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर आरोपी अत्यधिक नशे के कारण अक्षम हालात में न हो तो नशे को अपराध की गंभीरता कम करने का कारक नहीं माना जा सकता है। सूरज जगन्नाथ जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ के समक्ष विवाद था कि आरोपी ने जब अपनी पत्नी पर केरोसिन डालकर माचिस से आग लगाई थी, तब वह शराब के नशे में था। उसकी हालत ऐसी थी कि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कर रहा है। यह दलील दी गई कि उसने मर चुकी पत्नी को बचाने की कोशिश की, उसे बचाने के लिए उस पर पानी भी डाला और ऐसा करते हुए उसे चोट भी लगी।

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    न्यायिक अधिकारी के आचरण को निर्धारित करने के लिए पैमाने सख्त हों : सुप्रीम कोर्ट

    न्यायिक अधिकारी पर लगाई गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को बरकरार रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के आचरण को निर्धारित करने के लिए मानक या पैमाने सख्त होने चाहिए। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि जनता को न्यायिक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति से लगभग अप्रासंगिक आचरण की मांग करने का अधिकार है। दरअसल मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात राम मूर्ति यादव के खिलाफ एक व्यक्ति द्वारा शिकायत के संबंध में अभियुक्त को बरी करने के खिलाफ जांच शुरू की गई थी। जांच के बाद उनको आरोपों का दोषी पाया गया और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा दी गई।

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    दया याचिका के निपटारे की समय सीमा तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

    राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे के लिए विशिष्ट प्रक्रिया, नियम और समय सीमा तय करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। वकील शिव कुमार त्रिपाठी ने दाखिल याचिका में कहा है कि राष्ट्रपति के पास दायर होनी वाली दया याचिका का निपटारा करने की कोई समय सीमा या नियम या कोई प्रक्रिया तय नहीं की गई है। इसकी वजह से याचिकाएं काफी वक्त तक लटकी रहती हैं। याचिका में कहा गया है कि कई मामलों में देरी की वजह से मौत की सजा पाने वाले दोषी अपनी सजा कम कर उम्रकैद में बदलवाने में सफल हो जाते हैं। इसे पीड़ित और उसका परिवार खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।

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    इस्तीफा देने वाले सरकारी कर्मचारी पेंशन के हक़दार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक सरकारी कर्मचारी जिसने सेवा से इस्तीफा दे दिया है, वह 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्त' लोगों के लिए उपलब्ध पेंशन लाभ का हकदार नहीं है। घनश्याम चंद शर्मा को 22 दिसंबर 1971 को चपरासी के पद पर नियमित किया गया। उन्होंने 7 जुलाई 1990 को अपना इस्तीफा दे दिया, जिसे 10 जुलाई 1990 से नियोक्ता ने स्वीकार कर लिया। उन्हें बीएसएनएल यमुना पावर लिमिटेड द्वारा दो आधारों पर पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया।

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    [सेक्‍शन 197 सीआरपीसी] पद का उपयोग गैरकानूनी लाभ के लिए करने पर लोकसेवकों को अनुमोदन के संरक्षण का लाभ नहींः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे लोकसेवकों के लिए , जिन्होंने गैरकानूनी लाभ के लिए अपने कार्यालय का उपयोग करते हुए कुकृत्य किया है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत 'अनुमोदन का संरक्षण' उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 19 के तहत किसी लोक सेवक को अनुमोदन का संरक्षण सेवानिवृत्त या त्यागपत्र के बाद उपलब्‍ध नहीं होगा।

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    एकमात्र पोस्ट के लिए कोई आरक्षण नहीं हो सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि एक मात्र पोस्ट (एकांत पद) में कोई आरक्षण नहीं हो सकता। आर आर इनामदार को अंग्रेजी में लेक्चरर के पद पर पदोन्नत किया गया था जो एक मात्र पद था। एक अन्य व्यक्ति द्वारा उनकी इस पदोन्नति के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि अंग्रेजी में व्याख्याता का पद एक एकांत पद था और कर्नाटक राज्य बनाम गोविंदप्पा के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि एकांत पद आरक्षित नहीं हो सकता।

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    उपभोक्ता फोरम / आयोग शिकायत या अपील के समय सीमा पार करने के बाद उस पर मेरिट के आधार विचार नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता फोरम / आयोग के इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि शिकायत / अपील निर्धारित समय सीमा पार कर चुकी है, वह उस मामले के गुण पर विचार नहीं कर सकता। इस मामले में, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम ने पहली अपील को प्राथमिकता देने से 150 दिनों की देरी के कारण इनकार कर दिया था। इस प्रकार, यह भी पाया गया कि इस मामले में गुणों की स्पष्ट कमी थी और इस प्रकार अपील में 150 दिनों की देरी और मामले में गुणों के स्पष्ट अभाव के दोनों कारणों के आधार पर अपील को खारिज कर दिया गया।

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    न्यायिक अधिकारियों को बलि का बकरा बनाने की प्रवृति चिंताजनक : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में न्यायिक अधिकारियों को बलि का बकरा बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए न्यायिक अधिकारी को बहाल कर दिया जिसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

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    सुप्रीम कोर्ट ने व्यापम घोटाले के आरोपी को पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने की अनुमति दी कहा, 1.26 करोड़ रुपए जमा कराएं

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को व्यापम घोटाले के आरोपी संतक वैद्य को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति दे दी, लेकिन साथ ही यह शर्त रखी कि वह ट्रायल कोर्ट में 1.26 करोड़ रुपये का फिक्स्ड डिपॉजिट करे और अपने पिता से यह सुनिश्चित करवाए कि वह सुनवाई के लिए पेश होगा। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि यह सही है कि याचिकाकर्ता पर गंभीर अपराध का आरोप है, लेकिन साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना है कि वह एक युवा है और विदेश में अपनी पढ़ाई करना चाहता है।

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    SARFAESI: बैंकों के दावों से पहले कर्मचारियों के दावे पर गौर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल केंद्रीय और राज्य कानूनों के तहत स्पष्ट रूप से बनाए गए वैधानिक प्रथम शुल्क, सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट (SARFAESI) के तहत सिक्योर्ड लेनदारों के दावों पर पूर्ववर्ती स्थिति ले सकते हैं। मामला महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम बाबूलाल लाडे के मामले की सुनवाई से संबंधित है। अदालत के समक्ष मुद्दा यह था कि SARFAESI अधिनियम के तहत कारखाने के सुरक्षित परिसंपत्तियों की बिक्री से मिली राशि में से भुगतान के क्रम में कारखाना कर्मचारियों को पहले उनकी राशि चुकाई जाए या सिक्योर्ड ऋणदाताओं के दावे को निपटाया जाए। आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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    अगर एनसीएलटी सार्वजनिक क़ानून के बारे में कोई आदेश पास करता है तो हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर एनसीएलटी ने ऐसा कोई आदेश दिया है जो सार्वजनिक क़ानून से संबंधित है तो हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हस्तक्षेप कर सकता है। न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति बोस और न्यायमूर्ति रामासुब्रमनियन की पीठ ने कहा कि निगमित ऋणधारक के अपने अधिकारों का प्रयोग करने के दौरान अगर यह आईबीसी, 2016 की परिधि के बाहर होता है और विशेषकर सार्वजनिक क़ानून के तहत आता है तो उस स्थिति में वह अपने अधिकारों पर अमल के लिए एनसीएलटी में नहीं जा सकता। आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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    भ्रष्टाचार के सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी भ्रष्टाचार के मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया गया था, जिसके पास आय के अपने ज्ञात स्रोतों के अनुपातहीन कथित रूप से रु 3,18,61,500 की संपत्ति होने का आरोप था।

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    बलात्कार मामले में आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते की कोई प्रासंगिकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया है कि बलात्कार के आरोपियों और पीड़िता के बीच समझौते की आपराधिक मामलों को तय करने में कोई प्रासंगिकता नहीं है। न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागौदर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने एक आपराधिक अपील का निपटारा करते हुए इस प्रकार का अवलोकन किया।

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    ज़मानत के गैर-ज़िम्मेदाराना आदेशों से अंदेशा होता है कि कोर्ट ने दिमाग का इस्तेमाल नहीं कियाः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट ‌की जयपुर बेंच के एक फैसले को रद्द करते हुए टिप्‍पणी की है कि जहां जमानत देने और ना देने का के आदेश में उन कारणों को नहीं बताया जाता, जिन्होंने निर्णय की जानकारी दी है तो ये अनुमान होता है कि दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इस मामले में हत्या के एक आरोपी (महिपाल बनाम राजेश कुमार@पोलिया) को राजस्थान हाईकोर्ट ने जमानत दी थी। सेक्‍शन 439 सीआरपीसी के तहत दिए गए जमानत के आदेश को शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी है। आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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