अनुच्छेद 142 का प्रयोग मृतप्राय हो चुके विवाहों को खत्म करने के लिए किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

18 Dec 2019 2:59 PM GMT

  • अनुच्छेद 142 का प्रयोग मृतप्राय हो चुके विवाहों को खत्म करने के लिए किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    कहते है कि शादियां स्वर्ग में तय हो जाती हैं, मगर धरती पर वो टूट गई हैं, सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्‍पणी एक शादी को खत्म करते हुए कि जिसमें समझौते की उम्‍मीद खत्म हो गई थी। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 को विवाह के उन मामलों को भंग करने प्रयोग किया जा सकता है, जहां विवाह एक मृतप्राय चुका हो।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले में एक पत्नी ने अपील की थी, जो तलाक न दिए जाने से दुखी थी। यह दंपति मुश्किल से ढाई महीने तक एक साथ रहा था। 2003 से वे एक दूसरे से अलग रह रहे थे और तलाक का मुकदमा दायर कर रखा था। पत्नी ने पति के खिलाफ विवाहेतर संबंध के आरोप लगाया था, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पत्नी, जो खुद भी एक वकील है, व्यक्तिगत रूप से पेश हुई। बेंच ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने की कोशिश की लेकिन वह विफल रहा। यह देखते हुए कि इस मामले में विवाह एक मृत पत्र बन चुका है, बेंच ने कहा:

    "यह कोई संदेह नहीं है कि भारत में तलाक के विधान 'गलत सिद्धांत' पर आधारित हैं, जैसकि, किसी भी पक्ष को अपनी गलती का लाभ नहीं उठाना चाहिए, और यह कि विवाह के टूटने का आधार, जैसा कि, विधि आयोग की दो रिपोर्ट में इस पहलू पर बहस के बावजूद, तलाक कानून में अभी तक डाला नहीं गया है। हम, हालांकि, पाते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विभिन्न न्यायिक घोषणाएं हैं, जहां यह न्यायालय अपनी शक्तियों का प्रयोग करके, विवाह में समझौते की उम्‍मीद खत्म हो जाने के बाद तलाक की अनुमति दे चुका है, न केवल उन मामलों में जहां पक्षकारों ने अंततः, इस अदालत के समक्ष ऐसा करने के लिए सहमति दी है, बल्‍कि अन्य मामलों में भी।"

    बेंच ने यह भी कहा कि वैवाहिक संबंधों में दोनों पक्षों के बीच समायोजन की आवश्यकता और एक साथ रहने की इच्छा होती है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने की इच्छा व्यक्त करना पर्याप्त नहीं होगा। कोर्ट ने शादी को भंग करते हुए कहा:

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले में एक पत्नी ने अपील की थी, जो तलाक न दिए जाने से दुखी थी। यह दंपति मुश्किल से ढाई महीने तक एक साथ रहा था। 2003 से वे एक दूसरे से अलग रह रहे थे और तलाक का मुकदमा दायर कर रखा था। पत्नी ने पति के खिलाफ विवाहेतर संबंध के आरोप लगाया था, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पत्नी, जो खुद भी एक वकील है, व्यक्तिगत रूप से पेश हुई। बेंच ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने की कोशिश की लेकिन वह विफल रहा। यह देखते हुए कि इस मामले में विवाह एक मृत पत्र बन चुका है, बेंच ने कहा:

    "यह कोई संदेह नहीं है कि भारत में तलाक के विधान 'गलत सिद्धांत' पर आधारित हैं, जैसकि, किसी भी पक्ष को अपनी गलती का लाभ नहीं उठाना चाहिए, और यह कि विवाह के टूटने का आधार, जैसा कि, विधि आयोग की दो रिपोर्ट में इस पहलू पर बहस के बावजूद, तलाक कानून में अभी तक डाला नहीं गया है। हम, हालांकि, पाते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विभिन्न न्यायिक घोषणाएं हैं, जहां यह न्यायालय अपनी शक्तियों का प्रयोग करके, विवाह में समझौते की उम्‍मीद खत्म हो जाने के बाद तलाक की अनुमति दे चुका है, न केवल उन मामलों में जहां पक्षकारों ने अंततः, इस अदालत के समक्ष ऐसा करने के लिए सहमति दी है, बल्‍कि अन्य मामलों में भी।"

    बेंच ने यह भी कहा कि वैवाहिक संबंधों में दोनों पक्षों के बीच समायोजन की आवश्यकता और एक साथ रहने की इच्छा होती है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने की इच्छा व्यक्त करना पर्याप्त नहीं होगा। कोर्ट ने शादी को भंग करते हुए कहा:

    "हमारा विचार है कि इस शादी के अंत के बाद दोनों पक्ष अपने-अपने जीवन को अपने-अपने ढंग से जी पाएंगे, उन्होंने दो दशक एक दूसरे से झगड़ते हुए बिता दिया है, और एक साथ नहीं, अलग-अलग ही सही, बेहतर जीवन की आशा कभी खत्म नहीं होती।"

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