सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

8 May 2022 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (2 मई 2022 से 6 मई 2022 तक ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    मध्यस्थ ट्रिब्यूनल में ब्याज देने की निहित शक्ति विवेकाधीन है और पक्षों के बीच समझौते के अधीन है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मध्यस्थ ट्रिब्यूनल की ब्याज देने की शक्ति पक्षों के बीच इसके विपरीत समझौते के अधीन है। कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल ब्याज नहीं दे सकता है अगर पक्ष अन्यथा सहमत हैं।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि जब पक्षों के बीच एक समझौता होता है जो ब्याज के मुद्दे को नियंत्रित करता है, तो मध्यस्थ अपना विवेक खो देगा और पक्षों के बीच समझौते द्वारा निर्देशित होगा। कोर्ट ने माना कि पक्ष-स्वायत्तता ए एंड सी अधिनियम की आधारशिला है और मध्यस्थ के पास उपलब्ध विवेक का प्रभाव समाप्त हो जाएगा यदि पक्षों ने अधिनियम की धारा 31 (7) (ए) के तहत अपनी स्वायत्तता का प्रयोग किया है।

    केस: दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन , 2022 की सिविल अपील संख्या 3657 एस एल पी ( सी) संख्या 4901/ 2022

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    अपील दायर करने से पहले कानून में प्री-डिपॉजिट की शर्त तय हो जाने के बाद ऐसी शर्त का संतुष्ट होना जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून ने अपील दायर करने से पहले प्री-डिपॉजिट की शर्त तय की है तो ऐसी शर्त को पूरा करना आवश्यक है।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 27 अक्टूबर, 2016 के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्‍पणी की। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 की धारा 45-एए के तहत प्री-डिपॉजिट की आवश्यकता अनिवार्य नहीं है।

    केस शीर्षक: डायरेक्टर, इम्‍प्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंश हेल्‍थ केयर और अन्य बनाम मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड और अन्य| CIVIL APPEAL NO. 3464 OF 2022

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    मध्य प्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु के हकदार: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि मध्य प्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों के शिक्षक 65 वर्ष की बढ़ी हुई सेवानिवृत्ति की आयु का लाभ पाने के हकदार हैं।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने एसएलपी पर विचार करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 9 मई, 2017 के आदेश पर विचार किया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अपील को खारिज कर दिया था और कहा था कि मध्य प्रदेश में सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षक 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति की बढ़ी हुई आयु का लाभ पाने के हकदार हैं।

    केस शीर्षक: डॉ जैकब थुडीपारा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य| Civil Appeal No. 2974 Of 2022

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    जब पॉलिसी बहिष्करण क्लाज़ में विस्तृत तौर पर इसे परिभाषित किया गया है तो बीमाकर्ता पीनल कानून में आतंकवाद' की परिभाषा का इस्तेमाल दावा अस्वीकार करने के लिए नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बीमा पॉलिसी में बहिष्करण क्लाज़ (exclusion clause) की शर्तें पक्षकारों को नियंत्रित करेंगी और बीमाकर्ता पॉलिसी को अस्वीकार करने के लिए बाहरी स्रोतों जैसे क़ानूनों में परिभाषाओं पर भरोसा नहीं कर सकता।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने नरसिंह इस्पात लिमिटेड बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में फैसला सुनाया, "जब पॉलिसी स्वयं बहिष्करण क्लाज़ में आतंकवाद के कृत्यों को परिभाषित करती है, तो अंतिम अनुबंध की पॉलिसी की शर्तें पक्षकारों के अधिकारों और देनदारियों को नियंत्रित करेंगी। इसलिए, पक्षकार विभिन्न दंड विधानों (penal statutes) में आतंकवाद' की परिभाषा पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि बहिष्करण क्लाज़ में आतंकवाद के कृत्यों की एक विस्तृत परिभाषा है।"

    केस : नरसिंह इस्पात लिमिटेड बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य, सीए 10671/2016

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    सीनियर एडवोकेट डेसिग्नेशन प्रक्रिया : 10-20 साल की प्रैक्टिस के प्रत्येक साल के लिए एक अंक दिया जाना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया सीनियर एडवोकेट डेसिग्नेशन के लिए आवेदनों का आकलन करते समय हाईकोर्ट को 10 से 20 साल की प्रैक्टिस में रहने वाले वकील के लिए फ्लैट 10 अंक आवंटित करने के बजाय 10 से 20 साल की प्रैक्टिस वाले वकीलों को प्रत्येक साल की प्रैक्टिस के लिए एक अंक आवंटित करना चाहिए।

    जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने यह स्पष्टीकरण जारी करते हुए सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह द्वारा दायर एक आवेदन में प्रार्थना की अनुमति दी।

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    कोर्ट एक बार आदेश पारित कर दे तो नियोक्ताओं को उसे उसी तरह से स्वीकार करना होगा जैसे वह है, भले ही वह उसे पसंद करते हों या नहीं करते हों: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बार यह कोर्ट या कोई और कोर्ट एक आदेश पारित कर दे तो नियोक्ताओं को उसे स्वीकार करना ही होगा, भले ही वह उन्हें पसंद हो या न हो।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने यह भी कहा कि नियोक्ताओं को कोर्ट के आदेश को वैसे ही लागू करना होगा, जैसे वे हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, "हम प्रतिवादी संख्या दो को सावधान करते हैं कि इस न्यायालय के आदेश का पालन करते समय प्रतिशोध की कोई भावना नहीं होगी और उसे एक मॉडल नियोक्ता के रूप में कार्य करना चाहिए और इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश को लागू करने में कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा।"

    केस शीर्षक: अर्जुन सिंह और अन्य बनाम आरडी धीमान और अन्य | डायरी नंबर 3911/2022

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    सिर्फ किसी आपराधिक मामले में जानकारी छिपाने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी दिए गए मामले में केवल सामग्री/झूठी जानकारी को छिपाने का मतलब यह नहीं है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त/ मुक्त कर सकता है।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, "जिस व्यक्ति ने सामग्री जानकारी को छुपाया है या झूठी घोषणा की है, उसे वास्तव में नियुक्ति या सेवा में निरंतरता प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन कम से कम उसे मनमाने ढंग से व्यवहार न करने का अधिकार है और सक्षम प्राधिकारी द्वारा मामले के तथ्यों के संबंध में निष्पक्षता के साथ उचित प्रकार से विवेकपूर्ण तरीकेशक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।"

    पवन कुमार बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ ( SC) 441 | 2022 की सीए 3574 | 2 मई 2022

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    समझौता डिक्री को वापस लेने की मांग वाला आवेदन उस कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है जिसने इसे मंजूरी दी थी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एक समझौता डिक्री को वापस लेने की मांग करने वाला एक आवेदन इस आधार पर कि यह धोखाधड़ी और मिलीभगत से ग्रस्त है, उस न्यायालय के समक्ष दायर किया जा सकता है जिसने डिक्री को मंजूरी दी थी। इस मामले में, वादी ने समझौता डिक्री पारित करने वाली अदालत के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के साथ पठित आदेश 23 नियम 3 के तहत एक आवेदन दायर किया।

    उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने कोई समझौता नहीं किया है और न ही इसके समर्थन में अदालत के सामने पेश हुए थे और उनकी ओर से पेश होने वाले वकील ने इसके बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञता दिखाई है और प्रतिवादी ने वादी के साथ धोखाधड़ी की है। इस अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

    विपन अग्रवाल बनाम रमन गंडोत्रा | 2022 लाइव लॉ (एससी) 442 | सीए 3492 ऑफ 2022 | 29 अप्रैल 2022

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    कोविशील्ड और कोवैक्सीन को प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग की मंज़ूरी देने में कोई जल्दबाजी नहीं की गई : सुप्रीम कोर्ट

    अपने इस फैसले में कि कोविड-19 वैक्सीनेशन नीति पर सरकार उचित है, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि प्रासंगिक डेटा की गहन समीक्षा के बिना, कोविशील्ड और कोवैक्सीन को जल्दबाजी में प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग की मंज़ूरी दी गई थी।

    अदालत ने कहा कि पारदर्शिता की कमी के आधार पर वैक्सीन को विनियामक अनुमोदन प्रदान करते समय विशेषज्ञ निकायों द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं को चुनौती स्वीकार नहीं की जा सकती है।

    जैकब पुलियल बनाम भारत संघ | 2022 लाइव लॉ (SC) 439 | डब्लू पी(सी) 607/ 2021 | 2 मई 2022

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    कोर्ट/ट्रिब्यूनल अपर्याप्त स्टांप वाले दस्तावेज को तब तक जब्त नहीं कर सकता जब तक कि इसे उसके सामने रिकॉर्ड में पेश नहीं किया जाता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट या ट्रिब्यूनल अपर्याप्त स्टांप के लिए एक दस्तावेज को तब तक जब्त नहीं कर सकता, जब तक कि उसे उसके सामने रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया जाता है। मौजूदा मामले में, मूल ऋण समझौते जिसमें मध्यस्थता खंड शामिल था, को मध्यस्थ कार्यवाही के दरमियान प्रस्तुत नहीं किया गया।

    मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने मध्यस्थता में आगे की कार्यवाही से पहले मूल ऋण समझौते में स्टांप शुल्क के निर्धारण के लिए इसे स्टांप कलेक्टर, महाराष्ट्र के पास ले जाने का निर्देश दिया।

    केस शीर्षकः वाइडस्क्रीन होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड | 2022 LiveLaw (SC) 435 | SLP(C) 6826-6829/2022 | 22 April 2022

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    किसी को भी वैक्सीन लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, वैक्सीन जनादेश अनुपातहीन : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को वैक्सीन लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति की शारीरिक अखंडता के अधिकार में वैक्सीनेशन से इनकार करने का अधिकार शामिल है।

    कोर्ट ने यह भी माना कि कोविड-19 महामारी के संदर्भ में विभिन्न राज्य सरकारों और अन्य अधिकारियों द्वारा लगाए गए वैक्सीन जनादेश "आनुपातिक नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई पर्याप्त डेटा पेश नहीं किया गया है ताकि यह दिखाया जा सके कि गैर-वैक्सीनेशन वाले व्यक्तियों से वैक्सीनेशन वाले व्यक्तियों की तुलना में कोविड-19 वायरस के प्रसार का जोखिम ज्यादा है।

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    बीमा अनुबंध के किसी अस्पष्ट शब्द की व्याख्या 'कॉन्ट्रा प्रोफेरेंटम' नियम के तहत बीमाधारक के पक्ष में की जानी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पहले किसी बीमा अनुबंध में एक अस्पष्ट शब्द को इसकी संपूर्णता में पढ़कर सामंजस्यपूर्ण रूप से समझा जाना चाहिए और यदि अभी भी ये अस्पष्ट है तो कॉन्ट्रा प्रोफेरेंटम के नियम को लागू किया जाना चाहिए और इस शब्द की व्याख्या पॉलिसी का मसौदा बनाने वाले के खिलाफ की जानी चाहिए, यानी बीमाधारक के पक्ष में।

    जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए दायर एक अपील की अनुमति दी, जो बीमाकर्ता के पक्ष में थी।

    केस : हारिस मरीन प्रोडक्ट्स बनाम एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (ईसीजीसी) लिमिटेड

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