अपील दायर करने से पहले कानून में प्री-डिपॉजिट की शर्त तय हो जाने के बाद ऐसी शर्त का संतुष्ट होना जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 May 2022 6:57 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून ने अपील दायर करने से पहले प्री-डिपॉजिट की शर्त तय की है तो ऐसी शर्त को पूरा करना आवश्यक है।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 27 अक्टूबर, 2016 के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्‍पणी की। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 की धारा 45-एए के तहत प्री-डिपॉजिट की आवश्यकता अनिवार्य नहीं है।

    पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम पंजाब राज्य और अन्य 2015 SCC ऑनलाइन P&H 2053 के फैसले पर भरोसा करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा था कि अपीलीय प्राधिकारी को आंशिक रूप से या पूरी तरह से समान परिस्थितियों और शर्तों में प्री-डिपॉजिट की आवश्यकता को माफ करने का अधिकार है।

    कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 की धारा 45एए, जो "अपील प्राधिकारी" से संबंधित है, में कहा गया है,

    "यदि कोई नियोक्ता धारा 45-ए में संदर्भित आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह जैसा कि विनियम द्वारा प्रदान किया जा सकता है, इस तरह के आदेश की तारीख के साठ दिनों के भीतर, आदेशित अंशदान का पच्चीस प्रतिशत या अपनी गणना के अनुसार योगदान, जो भी अधिक हो, निगम के पास जमा करने के बाद अपीलीय प्राधिकारी को अपील कर सकता है। बशर्ते कि यदि नियोक्ता अंततः अपील में सफल हो जाता है , निगम नियोक्ता को ऐसी जमा राशि को ऐसे ब्याज के साथ वापस करेगा जो विनियम में निर्दिष्ट हो।"

    मौजूदा मामले में इम्‍प्लॉयीज स्टेस्ट इंश्योरेंश हेल्‍थ केयर के उप निदेशक ने 30 दिसंबर, 2013 को एक आदेश पारित किया, जिसमें मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड (नियोक्ता) को अक्टूबर 2009 से अगस्त, 2010 तक की अवधि के लिए प्रशिक्षु / प्रशिक्षुओं के संबंध में 48,81,884 रुपये का भुगतान करने का आह्वान किया गया था।

    नियोक्ता ने उक्त अंशदान का 25 प्रतिशत जमा करने से छूट प्राप्त करने के लिए एक आवेदन के साथ एक अपील दायर की।

    चूंकि नियोक्ता ने आकलन के अनुसार मुआवजे का 25 प्रतिशत जमा नहीं किया था, अपीलीय प्राधिकारी ने अन्य बातों के साथ-साथ इस तरह के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए एक आदेश पारित किया कि अधिनियम के तहत प्री-डिपॉजिट के बिना अपील पर विचार करने का कोई प्रावधान नहीं है। जिसके बाद निर्धारित राशि को ब्याज सहित वसूल करने के लिए वसूली प्रमाण पत्र जारी किया गया। हालांकि, राशि जमा करने के बजाय, नियोक्ता ने हाईकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग किया।

    पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम पंजाब राज्य और अन्य में फैसले पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट ने माना कि राज्य को पंजाब मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2005 (पीवीएटी एक्ट) की धारा 62 (5) को अधिनियमित करने का अधिकार था और प्रथम अपील की सुनवाई के लिए 25 प्रतिशत की प्री-डिपॉजिट की शर्त संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों के अनुसार कठिन, कठोर, अनुचित और उल्लंघनकारी नहीं थी।

    रणजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य और अन्य 2011 SCC ऑनलाइन P&H 15 में निर्धारित अनुपात का जिक्र करते हुए, बेंच ने कहा कि भले ही पहले अपीलीय प्राधिकारी को अंतरिम निषेधाज्ञा/संरक्षण का आदेश पारित करने के लिए कोई स्पष्ट शक्ति प्रदान नहीं की गई हो, विभिन्न घोषणाओं के मद्देनजर आवश्यक निहितार्थ और इरादे से अंतरिम निषेधाज्ञा देने की ऐसी शक्ति/सुरक्षा पीवीएटी एक्ट की धारा 62(5) के तहत अंतर्निहित थी।

    रणजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य और अन्य 2011 SCC ऑनलाइन P&H 15, पंजाब विलेज कॉमन लैंड्स (विनियमन) अधिनियम, 1961 की धारा 13 बी से निपटने के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि कोई अपील तब तक नहीं होगी जब तक कि कलेक्टर के पास जुर्माना की राशि जमा नहीं की जाती है।

    इस मुद्दे पर दिए निर्णय जस्टिस हेमंत गुप्ता द्वारा लिखित आदेश में पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा लिया गया विचार, जिसमें रंजीत सिंह में पहले के फैसले पर भरोसा किया गया है, कि अपीलीय प्राधिकारी के पास अंतरिम राहत देने की निहित शक्ति होगी, मान्य नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए कहा,

    "एक बार जब कानून ने अपील दायर करने से पहले प्री-डिपॉजिट की शर्त तय की गई है तो ऐसी शर्त को संतुष्ट करना आवश्यक है। रंजीत सिंह और पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड में हाईकोर्ट के फैसले को...कानून के अनुसार नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, प्री-डिपॉजिट की शर्त, अनिवार्य नहीं है, यह कहना और अपीलीय प्राधिकारी को निर्धारित राशि को माफ करने का विवेक है, यह कहना, स्पष्ट रूप से टिकाऊ नहीं है और इस प्रकार रद्द किया जाता है। नतीजतन, वर्तमान अपील की अनुमति है।"

    यह देखते हुए कि नियोक्ता ने निर्धारित राशि का 25 प्रतिशत जमा नहीं किया है, जिसके कारण अपील को खारिज कर दिया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ता को निर्धारित राशि का 25 प्रतिशत जमा करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "यदि उक्त राशि जमा की जाती है तो अपीलीय प्राधिकारी कानून के अनुसार मेरिट के आधार पर अपील पर विचार करेगा।"

    केस शीर्षक: डायरेक्टर, इम्‍प्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंश हेल्‍थ केयर और अन्य बनाम मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड और अन्य| CIVIL APPEAL NO. 3464 OF 2022

    कोरम: जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम

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