सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

10 April 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (चार अप्रैल, 2022 से आठ अप्रैल, 2022 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    अंतरिम आदेशों के अनुसार किया गया एड- हॉक भुगतान वेतन के भुगतान अधिनियम के तहत " वेतन" का हिस्सा नहीं बनाता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत द्वारा पारित अंतरिम आदेशों के अनुसार किया गया एड- हॉक यानी तदर्थ भुगतान ग्रेच्युटी गणना के उद्देश्य के लिए ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 2 (एस) के तहत अभिव्यक्ति के अर्थ के भीतर " वेतन" का हिस्सा नहीं है।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि एक पक्ष जो एक अंतरिम आदेश का आनंद ले रहा है, ऐसे अंतरिम आदेश का लाभ खोने के लिए बाध्य होगा, अगर मामले का अंतिम परिणाम उसके खिलाफ जाता है।

    अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक भारतीय उर्वरक निगम लिमिटेड बनाम राजेश चंद्र श्रीवास्तव | 2022 लाइव लॉ ( SC) 351 | 2022 की सीए 2260 | 7 अप्रैल 2022

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    सिर्फ मांगने पर ही किराएदार को दिल्ली किराया नियंत्रण कानून की धारा 25बी के तहत बचाव की अनुमति नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

    दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम, 1958 की धारा 25बी के तहत बचाव की अनुमति केवल मांगने पर नहीं दी जा सकती है और एक किरायेदार को किसी ट्रायल योग्य मुद्दे को उठाने की सीमा तक तथ्यों की कुछ सामग्री रखनी होगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि धारा 25 बी के पीछे का उद्देश्य न केवल मकान मालिकों के एक वर्ग के लिए सामान्य प्रक्रियात्मक मार्ग के बिना शीघ्र लेकिन प्रभावी उपाय की सुविधा देना है।

    आबिद उल इस्लाम बनाम इंदर सेन दुआ | 2022 लाइव लॉ (SC) 353 | 2016 की सीए 9444 | 7 अप्रैल 2022

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    उपभोक्ता अदालतें बिल्डर्स को अपार्टमेंट डिलीवर करने में विफलता के लिए होमबॉयर्स को रिफंड और मुआवजा देने का निर्देश दे सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने माना है कि उपभोक्ता अदालतें (Consumer Court) उन फ्लैट खरीदारों को राहत दे सकती है जो समझौते के अनुसार अपार्टमेंट की डिलीवरी में देरी से परेशान हैं। कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता न्यायालयों के पास समझौते की शर्तों के अनुसार अपार्टमेंट की डिलीवरी में विफलता के लिए उपभोक्ता रिफंड और मुआवजे का निर्देश देने की शक्ति है।

    एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सुषमा अशोक शिरूर | 2022 लाइव लॉ (एससी) 352 | सीए 6044 ऑफ 2019 | 7 अप्रैल 2022

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    सिर्फ कानून के गलत तरीके से लागू होने या सबूतों के गलत मूल्यांकन के आधार पर मध्यस्थ अवार्ड केवल रद्द नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 मार्च) को माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 2013 की धारा 34 (2) (बी) में उल्लिखित आधारों के अलावा, एक मध्यस्थ अवार्ड केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब यह पेटेंट अवैधता द्वारा दूषित हो, ना कि कानून के गलत तरीके से लागू होने या सबूतों के गलत मूल्यांकन के आधार पर।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील की अनुमति दी, जिसने जिला न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि की थी कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत आवेदन को परिसीमा से वर्जित किया गया था। यह देखते हुए कि निचली अदालतों ने उठाई गई आपत्तियों की पूरी तरह से सराहना नहीं की, बेंच ने इसे नए सिरे से विचार के लिए जिला न्यायाधीश को भेज दिया।

    केस : हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, करनाल बनाम मेसर्स मेहता कंस्ट्रक्शन कंपनी और अन्य

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    कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी की निजी संपत्ति पर जबरन कब्जा करना मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकार दोनों का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति पर जबरन कब्जा करना उसके मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकार दोनों का उल्लंघन है।

    सुख दत्त रात्रा और भगत राम ने उस जमीन के मालिक होने का दावा किया जिसका इस्तेमाल 1972-73 में 'नारग फगला रोड' के निर्माण के लिए किया गया था। उन्होंने 2011 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की, जिसमें विषय भूमि के मुआवजे या अधिनियम के तहत अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी।

    सुख दत्त रात्रा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 347 | 6 अप्रैल 2022

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    घरेलू हिंसा अधिनियम को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को धन आवंटित करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के प्रावधानों के कार्यान्वयन को अकेले राज्यों पर नहीं छोड़ सकती। अधिनियम के तहत अधिकारों के प्रवर्तन के लिए केंद्र सरकार को भी धन आवंटित करने की जिम्मेदारी वहन करनी चाहिए।

    जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की एक पीठ गैर सरकारी संगठन "वी द वीमेन ऑफ इंडिया" द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने और घरेलू के तहत आश्रय गृहों के निर्माण के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    केस: वी द वीमेन ऑफ़ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया | डब्ल्यूपीसी 1156/2021

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    सह-अभियुक्तों की जमानत रद्द करने के कारण अन्य अभियुक्तों पर भी लागू होंगे: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा सह-आरोपी की जमानत रद्द करने में न्यायालय के साथ जो कारण संबंधित हैं, वे उसी एफआईआर और घटना के संबंध में किसी अन्य आरोपी द्वारा दी गई जमानत के मामले में भी लागू होंगे।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नौ नवंबर, 2021 के आदेश के खिलाफ आपराधिक अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की। आक्षेपित फैसले में हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 34 सपठित धारा 147, 148, 149, 323, 307, 302 के तहत दर्ज मामले के लिए जमानत मांगने वाले पहले प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को अनुमति दी।

    केस शीर्षक: ऋषिपाल @ ऋषिपाल सिंह सोलंकी बनाम राजू और अन्य| 2022 की आपराधिक अपील संख्या 541

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    मरने से पहले दिए गए बयान को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि तब पीड़ित के जीवन पर कोई खतरा नहीं था जब इसे दर्ज किया गया था: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मरने से पहले दिए गए बयान को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस समय पीड़ित के जीवन पर कोई अत्यधिक आपात स्थिति या खतरा नहीं था जब इसे दर्ज किया गया था।

    न्यायालय ने लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य (2002) 6 SCC 710 में तय की गई मिसाल का हवाला देते हुए कहा, "... कानून का कोई पूर्ण प्रस्ताव नहीं है कि ऐसे मामले में जब मरने से पहले दिया गया बयान दर्ज किया गया था, उस समय कोई आपात स्थिति और/या जीवन के लिए कोई खतरा नहीं था, मरने से पहले के बयान को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाना चाहिए।"

    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम सुभाष @ पप्पू | 2022 लाइव लॉ (SC) 336 | 2022 की सीआरए 436 | 1 अप्रैल 2022

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    'नियुक्ति अनियमित होने पर भी कर्मचारी द्वारा किए गए कार्य के लिए राज्य को वेतन देना होगा': सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक व्यक्ति की शिक्षक के रूप में नियुक्ति अनियमित पाए जाने पर उसे भुगतान किया गया वेतन उससे वापस लेने के निर्देश को रद्द किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसकी नियुक्ति अनियमित होने के कारण उसकी सेवाओं को रद्द करने से पहले उस व्यक्ति ने लगभग 24 वर्षों तक एक शिक्षक के रूप में काम किया था।

    यह पाया गया कि वह चयन समिति के एक सदस्य के रिश्तेदार हैं और इसलिए उनकी नियुक्ति नियमों के विपरीत थी। राज्य सरकार ने उनकी नियुक्ति रद्द करते हुए उसे दिए गए वेतन की वसूली के भी निर्देश दिए थे।

    केस का शीर्षक : मान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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