सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

LiveLaw News Network

27 Feb 2022 6:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (21 फरवरी, 2022 से 25 फरवरी, 2022 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    दुर्घटना के बाद दावेदार की स्थिति 'सुविधाओं और खुशी के नुकसान' के मद में मुआवजा निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक कारक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुर्घटना के बाद दावेदार की स्थिति 'सुविधाओं और खुशी के नुकसान' के मद में मुआवजे का निर्धारण करने के लिए एक प्रासंगिक कारक है।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने आठ साल से कोमा में रहने वाले व्यक्ति को दर्द, सदमा और पीड़ा तथा सुख-सुविधाओं और जीवन की खुशी के नुकसान के मद में दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाकर दस लाख रुपये कर दिया।

    केस: बेन्सन जॉर्ज बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। सीए 1540/2022 | 25 फरवरी 2022

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    [आईपीसी की धारा 302] हाईकोर्ट को मर्डर केस में ज़मानत से इनकार करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते समय कुछ कारण बताना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि हाईकोर्ट को मर्डर केस (आईपीसी की धारा 302) में ज़मानत से इनकार करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते समय कुछ कारण बताना चाहिए।

    न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने एसएलपी पर विचार करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2 अगस्त, 2021 को आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज प्राथमिकी में आरोपी को जमानत देने के आदेश पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की है।

    केस का शीर्षक: साबिर बनाम भूरा @ नदीम एंड अन्य | विशेष अनुमति याचिका (Crl.) No(s).6941/2021

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    हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट के धारा 302 के तहत दर्ज मामले में जमानत को खारिज करने के आदेश को पलटने से पहले कुछ कारण बताना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने देखा है कि हत्या के मामले (धारा 302 आईपीसी) में हाईकोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को उलटने के लिए कम से कम कुछ कारण बताए, जिसने तर्कपूर्ण आदेश द्वारा जमानत आवेदन को खारिज कर दिया था।

    जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2 अगस्त, 2021 जमानत के आदेश के ‌खिलाफ दायर एसएलपी पर विचार करते हुए य‌ह टिप्पणी की। आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।

    केस शीर्षक : साबिर बनाम भूरा @ नदीम और अन्य| विशेष अनुमति याचिका (Crl.) No(s).6941/2021

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    अग्रिम जमानत मामले में अनिश्चितकालीन स्थगन किसी व्यक्ति के मूल्यवान अधिकार के लिए नुकसानदेह: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत संबंधित मामले में अनिश्चितकालीन स्थगन, वह भी स्वीकार करने के बाद, किसी व्यक्ति के मूल्यवान अधिकार के लिए नुकसानदेह है।

    सीजेआई एनवी रमाना की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, "जब कोई व्यक्ति अदालत के समक्ष मौजूद होता है और वह भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में तो कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे व्यक्ति को उसके मामले की योग्यता के आधार पर एक या दूसरे तरीके से नतीजे दिया जाएं और उसे बिना सुने अनिश्चितता की स्थिति में न धकेलें..।

    केस: राजेश सेठ बनाम छत्तीसगढ़ राज्य | एसएलपी (सीआरएल) 1247/2022 | 21 फरवरी 2022

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    भर्ती प्रक्रिया को किसी भी समय चुनौती नहीं दी जा सकती, भले ही शिकायत कितनी भी वास्तविक हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भर्ती प्रक्रिया में, एक उम्मीदवार को किसी भी समय उपाय के लिए संपर्क करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, भले ही शिकायत कितनी भी वास्तविक हो क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया को बंद करना होगा।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ 22 दिसंबर, 2008 के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश ("आक्षेपित निर्णय") के खिलाफ सिविल अपील पर विचार कर रही थी। आक्षेपित निर्णय में हाईकोर्ट ने उनके ओए को खारिज करने के ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा था जिसमें उन्होंने उप-सहायक अभियंता (सिविल) के पद पर नियुक्ति के संबंध में पुलिस सत्यापन रिपोर्ट को छोड़ने के लिए निर्देश मांगा था।

    केस: शंकर मंडल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य| सिविल अपील संख्या 1924/2010

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    सबका विश्वास योजना का लाभ लेने के इच्छुक व्यक्ति को इसके नियमों और शर्तों का सख्ती से पालन करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक व्यक्ति, जो किसी विशेष योजना का लाभ उठाना चाहता है, उसे योजना के नियमों और शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा।

    न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने एसएलपी पर विचार करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 11 अगस्त, 2021 के आदेश पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की। आदेश में, पीठ ने याचिकाकर्ता को सबका विश्वास (विरासत विवाद समाधान) योजना, 2019 का लाभ उठाने के लिए राशि जमा करने के लिए समय बढ़ाने से इनकार कर दिया था।

    केस का शीर्षक: मेसर्स यशी कंस्ट्रक्शन बनाम भारत संघ एंड अन्य | Special Leave to Appeal © No. 2070/2022

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    ईपीएफ अंशदान जमा करने में चूक/विलंब के लिए नियोक्ता पर जुर्माना लगाने के वास्ते आपराधिक मनोस्थिति आवश्यक तत्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 की धारा 14बी के तहत क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने के लिए नियोक्ता द्वारा ईपीएफ योगदान के भुगतान में कोई भी चूक या देरी एक अनिवार्य शर्त है।

    न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि नागरिक दायित्वों/देयता के उल्लंघन के लिए दंड/क्षतिपूर्ति लगाने में आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य एक आवश्यक तत्व नहीं है।

    केसः हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन गोनिकोप्पल कूर्ग बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन | सीए 2136/2012 | 23 फरवरी 2022

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    हाईकोर्ट सीआरपीसी धारा 482 के तहत शक्ति का स्वत: संज्ञान लेकर व्यापक तरीके से प्रयोग नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट सीआरपीसी, 1973 की धारा 482 के तहत व्यापक तरीके से और उक्त धारा के तहत निर्धारित सीमा से परे शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ 2019 में पारित मद्रास हाईकोर्ट के आदेशों पर एक आपराधिक अपील पर विचार कर रही थी, जिसके द्वारा एकल न्यायाधीश ने विभिन्न जिलों में लंबित 864 मामलों को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था, जिसमें भूमि हथियाने के मामलों के लिए संबंधित विशेष अदालतों के समक्ष अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी।

    केस: रजिस्ट्रार जनरल, मद्रास हाईकोर्ट बनाम पुलिस निरीक्षक, राज्य, केंद्रीय अपराध शाखा, चेन्नई के प्रतिनिधित्व से और अन्य | आपराधिक अपील संख्या 272-274 2022

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    एफआईआर/आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एफआईआर / आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका (Writ Petition) पर विचार नहीं किया जा सकता है।

    न्यायालय ने गायत्री प्रसाद प्रजापति द्वारा दायर एक रिट याचिका को वापस लेने के रूप में खारिज करते हुए कहा कि यह उम्मीद नहीं है कि उच्च न्यायालय द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत राहत पर विचार किया जा सकता है उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए विचार किया जाना है।

    केस : गायत्री प्रसाद प्रजापति बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | डब्ल्यूपी (सीआरएल) 457/2021 | 21 फरवरी 2022

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    जब तक दोनों पक्षों की सहम‌ति नहीं, आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 37 के तहत मामले को एक ही आर्बिट्रेटर को रिमांड करने का कोर्ट को कोई अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्बिट्रेशन एंड कन्सिलीऐशन एक्ट की धारा 37 के तहत एक अदालत के पास एक ही आर्बिट्रेटर को मामले को रिमांड करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जब तक कि दोनों पक्षों की सहमति न हो।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील पर विचार करने के लिए न्यायालय के पास केवल दो विकल्प उपलब्ध हैं। हाईकोर्ट या तो नए मध्यस्थता के लिए पार्टियों को बाहर (relegate) कर सकता है या मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 37 के तहत अधिकार क्षेत्र के दायरे और सीमा में रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर योग्यता के आधार पर अपील पर विचार कर सकता है।

    केस शीर्षक: डॉ ए पार्थसारथी बनाम ई स्प्रिंग्स एवेन्यूज प्राइवेट लिमिटेड एसएलपी (सी) 1805-1806/2022 | 18 फरवरी 2022

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    हायर- परचेज या हाइपोथेकेशन समझौते के तहत वाहन का कब्जा रखने वाला फाइनेंसर यूपी मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1997 के तहत टैक्स के लिए उत्तरदायी है: सुप्रीम कोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई फाइनेंसर जिसके कब्जे में एक मोटर वाहन / परिवहन वाहन है, जिसके संबंध में एक हायर- परचेज या पट्टा या हाइपोथेकेशन समझौता किया गया है, यूपी मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1997 के तहत कर के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि दायित्व उक्त समझौतों के तहत उक्त वाहन को कब्जे में लेने की तारीख से होगा।

    केस | संख्या। | दिनांक: महिंद्रा एंड महिंद्रा फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम यूपी राज्य | 2022 की सीए 1217 | 22 फरवरी 2022

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    एनआई एक्ट की धारा 138 - प्रथम दृष्टया संकेत कि शिकायत कंपनी के अधिकृत व्यक्ति ने दाखिल की है, मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस के मामले में, जब शिकायतकर्ता/प्राप्तकर्ता एक कंपनी है तो एक अधिकृत कर्मचारी कंपनी का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

    सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "शिकायत में संकेत और शपथ पर बयान (या तो मौखिक रूप से या हलफनामे द्वारा) कि शिकायतकर्ता (कंपनी) का प्रतिनिधित्व एक अधिकृत व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसके पास ज्ञान है, पर्याप्त होगा। इस तरह की दलील और प्रथम दृष्टया सामग्री संज्ञान लेने और प्रक्रिया जारी करने के लिए मजिस्ट्रेट के लिए पर्याप्त है।"

    केस /विवरण: टीआरएल क्रोसाकी रेफ्रेक्ट्रीज लिमिटेड बनाम एसएमएस एशिया प्राइवेट लिमिटेड | 2018 की एसएलपी (सीआरएल) संख्या 3113 | 22 फरवरी 2022

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    'बिजनेस टू बिजनेस' विवादों को 'उपभोक्ता विवाद' नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शुद्ध 'बिजनेस टू बिजनेस' विवादों को 'उपभोक्ता विवाद' नहीं माना जा सकता । जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई ने कहा, जब कोई व्यक्ति 'उपभोक्ता' के अर्थ में आने के लिए व्यावसायिक उद्देश्य के लिए एक सेवा का लाभ उठाता है तो उसे यह स्थापित करना होगा कि सेवाओं का लाभ विशेष रूप से स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने के उद्देश्य से लिया गया था।

    केस | संख्या | दिनांक : श्रीकांत जी मंत्री बनाम पंजाब नेशनल बैंक | 2016 की सीए 11397 | 22 फरवरी 2022

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    'डॉक्टरों को मुफ्त उपहार देना कानूनी तौर पर निषिद्ध, फार्मा कंपनियां आयकर अधिनियम धारा 37(1) के तहत कटौती का दावा नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 'फार्मास्युटिकल कंपनियों' द्वारा डॉक्टरों को मुफ्त उपहार देना कानून द्वारा निषिद्ध है और वे इसे आयकर अधिनियम की धारा 37 (1) के तहत कटौती के रूप में दावा नहीं कर सकते।

    जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने टिप्पणी की, ये मुफ्त उपहार तकनीकी रूप से 'मुक्त' नहीं हैं - इस तरह के मुफ्त उपहारों की आपूर्ति की लागत को आमतौर पर दवा में शामिल किया जाता है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं, इस प्रकार एक स्थायी सार्वजनिक रूप से हानिकारक चक्र का निर्माण होता है।

    मामला: एपेक्स लेबोरेटरीज प्रा लिमिटेड बनाम आयकर उपायुक्त, बड़े करदाता इकाई - II | 2019 की एसएलपी (सी) 23207 | 22 फरवरी 2022

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    भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- रिश्वत मांगने के प्रमाण के बिना केवल राशि की स्वीकृति धारा 7 के तहत अपराध स्थापित नहीं करेगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) की धारा 7 के तहत अपराध को स्थापित करने के लिए एक लोक सेवक द्वारा रिश्वत की मांग का सबूत और उसकी स्वीकृति अनिवार्य है। खंडपीठ ने कहा कि गैर कानूनी परितोषण की मांग को साबित करने में अभियोजन की विफलता घातक होगी और अधिनियम की धारा 7 या 13 के तहत अपराध के लिए आरोपी व्यक्ति द्वारा केवल राशि की स्वीकृति उसे दोषी नहीं ठहराएगी।

    केस विवरण: के शांतम्मा बनाम तेलंगाना राज्य | सीआरए 261 ऑफ 2022 | 21 फरवरी 2022

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    बंटवारा वाद- वादी को दूसरी अपील में राहत मांगने के अधिकार से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने निचली अदालत में अपने दावों को खारिज करने के खिलाफ पहली अपील दायर नहीं की थी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बंटवारा के मुकदमे में वादी को दूसरी अपील में राहत पाने के अधिकार से सिर्फ इसलिए नहीं वंचित किया जा सकता, क्योंकि उसके दावे को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था और उसने अपील के माध्यम से इसे चुनौती नहीं दी थी। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि बंटवारे के मुकदमे में वादी और प्रतिवादी की स्थिति अदला-बदली के योग्य हो सकती है।

    केस विवरण: अजगर बरीद (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये बनाम मजांबी @ प्यारेमाबी | सीए 249/2010 | 21 फरवरी 2022

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    जब 'छूट' प्रविष्टि स्पष्ट और जाहिर हो तो व्याख्या के लिए बाहरी सहायता का उपयोग नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 'छूट' प्रविष्टि स्पष्ट और जाहिर हो तो व्याख्या के लिए बाहरी सहायता का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इस मामले में स्पष्टीकरण और अग्रिम निर्णय प्राधिकरण ने माना था कि तमिलनाडु मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2006 ('अधिनियम') की चौथी अनुसूची के भाग बी की प्रविष्टि 44 में निर्धारित वस्तु का अर्थ केवल " कपास धागा लच्छा" है न कि "विस्कोस रेशा लच्छा('वीएसएफ') "।

    तमिलनाडु सरकार के वित्त मंत्री द्वारा दिए गए बजट भाषण के संदर्भ में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इसे बरकरार रखा था। बाद में, डिवीजन बेंच ने माना कि व्याख्या के लिए कोई बाहरी सहायता नहीं मांगी गई थी जब प्रश्न में प्रवेश की भाषा अपने आप में स्पष्ट थी।

    केस: अथॉरिटी फॉर क्लेरिफिकेशन एंड एडवांस रूलिंग बनाम आकाशी स्पिनिंग मिल्स (पी) लिमिटेड।

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    पब्लिक ड्यूटी या कार्य के कुछ तत्वों की मौजूदगी स्वयं किसी निकाय को अनुच्छेद 12 के तहत ' राज्य' बनाने के लिए पर्याप्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक ड्यूटी या कार्य के कुछ तत्वों की उपस्थिति स्वयं किसी निकाय को अनुच्छेद 12 ('राज्य' की परिभाषा) के दायरे में लाने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।

    जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने ये ठहराते हुए कि ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया एक राज्य नहीं है, कहा, "प्राथमिक कार्यों सहित कार्यों और गतिविधियों के एक समग्र दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाना चाहिए।"

    केस : किशोर मधुकर पिंगलीकर बनाम ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया

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    विशिष्ट राहत अधिनियम – विशेष अदायगी के बदले मुआवजा तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि विशेष रूप से वाद में दावा नहीं किया जाए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में, करार की विशिष्ट अदायगी के बदले उठाए गए नुकसान के दावे को इस कारण से खारिज कर दिया कि वादी ने विशेष रूप से वाद में मुआवजे की राहत की मांग नहीं की थी।

    कोर्ट ने विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 21(5) का उल्लेख किया, जो कहता है: "इस धारा के तहत कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा जब तक कि वादी ने अपने वाद में इस तरह के मुआवजे का दावा नहीं किया है: बशर्ते कि जहां वादी ने वादपत्र में ऐसे किसी मुआवजे का दावा नहीं किया है, कोर्ट कार्यवाही के किसी भी चरण में, उसे ऐसे मुआवजे के दावे को शामिल करने के लिए, जो उचित हो, वादपत्र में संशोधन करने की अनुमति देगा।"

    केस शीर्षक: यूनिवर्सल पेट्रो केमिकल्स लिमिटेड बनाम बीपी पीएलसी और अन्य

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