ईपीएफ अंशदान जमा करने में चूक/विलंब के लिए नियोक्ता पर जुर्माना लगाने के वास्ते आपराधिक मनोस्थिति आवश्यक तत्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

24 Feb 2022 6:35 AM GMT

  • ईपीएफ अंशदान जमा करने में चूक/विलंब के लिए नियोक्ता पर जुर्माना लगाने के वास्ते आपराधिक मनोस्थिति आवश्यक तत्व नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 की धारा 14बी के तहत क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने के लिए नियोक्ता द्वारा ईपीएफ योगदान के भुगतान में कोई भी चूक या देरी एक अनिवार्य शर्त है।

    न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि नागरिक दायित्वों/देयता के उल्लंघन के लिए दंड/क्षतिपूर्ति लगाने में आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य एक आवश्यक तत्व नहीं है।

    इस मामले में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि एक बार नियोक्ता ईपीएफ के योगदान को जमा करने में विफल रहा है या सक्षम प्राधिकारी द्वारा धारा 7ए के तहत निर्धारण के बाद ऐसा करने में विफल होने के प्रावधानों के तहत डिफ़ॉल्ट किया है, तो हर्जाने की वसूली एक आवश्यक शर्त है। हाईकोर्ट ने अधिनियम 1952 की धारा 14बी के तहत शुरू की गई कार्यवाही में हर्जाने की वसूली के आदेश को बरकरार रखा।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आपराधिक मनोस्थिति (मेन्स रिया) या आपराधिक कार्य (एक्टस रियस) का तत्व आवश्यक तत्वों में से एक है, जिसे अधिनियम 1952 की धारा 14 बी के तहत हर्जाना लगाते समय प्राधिकरण द्वारा ध्यान नहीं दिया गया है। दूसरी ओर प्रतिवादी ने तर्क दिया कि नागरिक दायित्वों या देनदारियों के उल्लंघन के लिए दंड लगाने के वास्ते आपराधिक मनोस्थिति एक आवश्यक तत्व नहीं है।

    इसलिए विचार किया गया मुद्दा यह था कि क्या नियोक्ता द्वारा किए गए नागरिक दायित्वों या देनदारियों का उल्लंघन दंड/ हर्जाना लगाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है या आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य आवश्यक तत्वों में से एक तत्व है, जिसे भूमिका निभानी है और 1952 के अधिनियम के प्रावधानों के तहत हर्जाना लगाने का आदेश पारित करते समय दिए जा रहे औचित्य, यदि कोई हो, की जांच करने के लिए बाध्य है।

    पीठ ने पहले के विभिन्न निर्णयों का जिक्र करते हुए कहा कि यह अच्छी तरह से तय है कि नागरिक दायित्वों और देनदारियों के उल्लंघन के लिए दंड या हर्जाना लगाने के लिए आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य एक आवश्यक तत्व नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि 'यूनियन ऑफ इंडिया बनाम धर्मेंद्र टेक्सटाइल प्रोसेसर्स और अन्य (2008) 13 एससीसी 369' मामले में तीन जजों की बेंच ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 271(1)(सी) के दायरे और सीमा की जांच करते हुए कहा कि 'प्रावधानों के तहत लगाया गया दंड एक नागरिक दायित्व है' जैसे तत्वों का जहां तक संबंध है, आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य नागरिक दंड लगाने के लिए एक आवश्यक तत्व नहीं है और 'दिलीप एन श्रॉफ बनाम संयुक्त आयकर आयुक्त, मुंबई एवं अन्य (2007) 6 एससीसी 329' में दो-न्यायाधीशों की बेंच के फैसले को खारिज कर दिया था।

    इसलिए, अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा:

    "'भारत संघ एवं अन्य बनाम धर्मेंद्र टेक्सटाइल प्रोसेसर्स और अन्य (सुप्रा)' मामले में इस न्यायालय के तीन-न्यायाधीशों की बेंच के फैसले को ध्यान में रखते हुए, जो वास्तव में हमारे लिए बाध्यकारी है, हमारा मत है कि अधिनियम के तहत नियोक्ता द्वारा ईपीएफ योगदान के भुगतान में कोई भी चूक या देरी अधिनियम 1952 की धारा 14बी के तहत हर्जाना लगाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है और नागरिक दायित्वों/देयताओं के उल्लंघन के लिए दंड/क्षति लगाने के लिए आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य एक आवश्यक तत्व नहीं है।"

    हेड नोट्सः कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 - धारा 14बी - अधिनियम के तहत नियोक्ता द्वारा ईपीएफ योगदान के भुगतान में कोई भी चूक या देरी अधिनियम 1952 की धारा 14बी के तहत हर्जाना लगाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है और नागरिक दायित्वों/देयताओं के उल्लंघन के लिए दंड/क्षति लगाने के लिए आपराधिक मनोस्थिति या आपराधिक कार्य एक आवश्यक तत्व नहीं है। [संदर्भ भारत सरकार बनाम धर्मेंद्र टेक्सटाइल प्रोसेसर एवं अन्य (2008) 13 एससीसी 369] (पैरा 17)

    केसः हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन गोनिकोप्पल कूर्ग बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन | सीए 2136/2012 | 23 फरवरी 2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 202

    कोरम: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस. ओका

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