सशर्त स्वतंत्रता वैधानिक प्रतिबंध को दरकिनार करती है, लंबे समय तक कारावास मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है: उत्तराखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-06-21 05:27 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) के तहत अपराधों के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी, जिसमें कहा गया कि जब लंबे समय तक हिरासत में रहना संवैधानिक अधिकारों के विपरीत हो तो सशर्त स्वतंत्रता को वैधानिक प्रतिबंध को दरकिनार करना चाहिए।

लंबे समय तक कारावास के आधार पर जमानत की उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस आलोक कुमार वर्मा ने रेखांकित किया,

“लंबे समय तक कारावास, आम तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सबसे कीमती मौलिक अधिकार के खिलाफ होता है और ऐसी स्थिति में सशर्त स्वतंत्रता को NDPS Act की धारा 37(1)(बी)(ii) के तहत बनाए गए वैधानिक प्रतिबंध को दरकिनार करना चाहिए।”

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता 24 जनवरी, 2020 से NDPS Act की धारा 8 सहपठित धारा 20 के तहत न्यायिक हिरासत में था। यह मामला 24 जनवरी, 2020 की घटना से उपजा है, जब पुलिस दल ने गुप्त सूचना के आधार पर याचिकाकर्ता को पकड़ा था। तलाशी के दौरान याचिकाकर्ता के बैग से 6.033 किलोग्राम चरस बरामद की गई।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले करण सिंह दुग्ताल ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया। उन्होंने तर्क दिया कि बरामदगी को रोका गया और तलाशी के दौरान सार्वजनिक गवाहों की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया। दुग्ताल ने जमानत के आधार के रूप में व्यक्ति के साफ आपराधिक रिकॉर्ड और बिना मुकदमे के लंबे समय तक हिरासत में रहने को उजागर किया।

राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले राकेश नेगी ने जमानत आवेदन का विरोध किया, लेकिन माना कि व्यक्ति का कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। नेगी ने स्वीकार किया कि मुकदमे में और समय लगने की उम्मीद थी।

प्रतिद्वंद्वी तर्कों पर विचार करने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद अदालत ने आवेदक की लंबी कैद पर ध्यान दिया और रबी प्रकाश बनाम ओडिशा राज्य, 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ दिया, जो इस धारणा का समर्थन करता है कि लंबे समय तक हिरासत में रहने की स्थिति में सशर्त स्वतंत्रता को वैधानिक प्रतिबंधों पर हावी होना चाहिए।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि NDPS Act की धारा 37(1)(बी)(ii) के तहत वैधानिक प्रतिबंध लगाने वाले को भी सशर्त स्वतंत्रता का रास्ता देना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक कैद में रहने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत बहुमूल्य मौलिक अधिकार का हनन होने की प्रवृत्ति होती है।

इन टिप्पणियों के अनुरूप अदालत ने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना जमानत आवेदन स्वीकार कर लिया।

केस टाइटल: अमर सिंह बोरा बनाम उत्तराखंड राज्य

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