जुवेनाइल की तरह मुकदमा चलाए गए किशोरों को JJ Act के तहत जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता: उत्तराखंड हाईकोर्ट
उत्तराखंड हाइकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(3), 506 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (JJ Act) की धारा 5(जे)(ii)/6 के तहत दर्ज मामले में किशोर आरोपी की जमानत बढ़ा दी।
जस्टिस रवींद्र मैथानी की पीठ ने जमानत याचिका स्वीकार करते हुए कहा,
“भले ही एक CIL को अधिनियम की धारा 18(3) के तहत वयस्क के रूप में ट्रायल के लिए ट्रांसफर किया गया हो, लेकिन उसकी जमानत याचिका पर अधिनियम की धारा 12 के तहत विचार किया जाएगा”
इस मामले में छेड़छाड़ और धमकियों के आरोप शामिल थे, जैसा कि रिपोर्ट किया गया है नाबालिग पीड़िता के खिलाफ इंफॉर्मेंट द्वारा मामला दर्ज कराया गया।
पीड़िता और उसका परिवार किराए के मकान में रह रहे थे, जिसमें आरोपी, जो जुवेनाइल है, भी पड़ोसी के रूप में रहता था। इंफॉर्मेंट ने आरोप लगाया कि आरोपी ने पीड़िता के साथ कई मौकों पर शारीरिक संबंध बनाए और उसे चुप रहने की धमकी दी।
यह खुलासा तब हुआ जब छह महीने की गर्भवती पीड़िता ने आरोपी की पहचान बताई। शुरुआत में आरोपी ने किशोर न्याय बोर्ड (जेजे बोर्ड) नैनीताल से जमानत मांगी, जिसे सरसरी तौर पर खारिज कर दिया गया।
इसके बाद जेजे बोर्ड ने JJ Act की धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन किया और आदेश दिया कि आरोपी पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाए। आरोपी द्वारा विशेष न्यायाधीश (POCSO)/विशेष न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, हल्द्वानी, नैनीताल के समक्ष दायर एक अन्य जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई।
आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि आरोपी का रिकॉर्ड साफ-सुथरा है। उसने अवलोकन गृह में अनुकरणीय व्यवहार दिखाया और वह शैक्षणिक रूप से मेहनती था। इसके अतिरिक्त DNA जांच की विश्वसनीयता के बारे में संदेह जताया गया। राज्य की ओर से ए.जी.ए. सुश्री मनीषा राणा सिंह ने सामाजिक जांच रिपोर्ट के अनुसार अवलोकन गृह में आरोपी के संतोषजनक आचरण से सहमति जताई।
न्यायालय ने JJ Act की धारा 8(2) पर प्रकाश डालते हुए इसके प्रावधानों पर गहनता से विचार किया, जो हाइकोर्ट को जेजे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत जमानत आवेदनों से उत्पन्न मामलों पर विचार करने का अधिकार देता है। दिल्ली हाइकोर्ट द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए न्यायालय ने JJ Act के अनुसार जुवेनाइल के रूप में मुकदमा चलाए जाने पर भी किशोरों के अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया।
प्रासंगिक उदाहरणों सीसीएल ए बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी (2020) और सिद्दलिंगा एसएन बनाम कर्नाटक राज्य 2023 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि वयस्कों के रूप में मुकदमा चलाए जाने वाले किशोरों को JJ Act के तहत जमानत के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, पीठ ने सामाजिक जांच रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें किशोर के खिलाफ कोई प्रतिकूल बात सामने नहीं आई, जिससे यह संकेत मिलता है कि उसका आचरण सभी के साथ अच्छा था। किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों पर विचार करते हुए न्यायालय ने जमानत देना उचित समझा।
आरोपी को उसके पिता की हिरासत में रखने का निर्देश दिया गया, जो कठोर शर्तों के अधीन है।
केस टाइटल- X बनाम उत्तराखंड राज्य