स्थानीय जमानत न दे पाने के कारण अगर कैदी को जमानत आदेश का लाभ नहीं मिल पाता तो यह न्याय का उपहास होगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने POCSO दोषी को रिहा करने का निर्देश दिया, जो मई 2024 में पारित जमानत आदेश के बावजूद हिरासत में बना हुआ। याचिकाकर्ता स्थानीय जमानत न दे पाने के कारण रिहाई हासिल करने में असमर्थ रहा है।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि जमानत आदेश के बावजूद उसे हिरासत में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
न्यायालय ने कहा,
"अगर याचिकाकर्ता स्थानीय जमानत न दे पाने के कारण जमानत आदेश का लाभ हासिल करने में असमर्थ है तो यह न्याय का उपहास होगा। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होगा, जो अपने पक्ष में जमानत आदेश के बावजूद हिरासत में बना हुआ है।"
न्यायालय ने कहा कि न्याय प्रणाली को उन निर्धन दोषियों की दुर्दशा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, जो वित्तीय अक्षमता के कारण जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ हैं। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता वास्तव में सात साल और एक महीने से हिरासत में है।
न्यायालय ने आगे कहा,
न्याय वितरण तंत्र उन निर्धन दोषियों की दुर्दशा से अनभिज्ञ नहीं हो सकता, जो स्थानीय जमानत प्रदान करने में असमर्थ हैं। जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थता के कारण, आवेदक 03.05.2024 को उसके पक्ष में पारित जमानत आदेश के बावजूद जेल में सड़ रहा है।”
याचिकाकर्ता को ग्रेटर मुंबई के विशेष न्यायाधीश द्वारा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 4, 6 और 8 के तहत दोषी ठहराया गया। दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि के खिलाफ उसकी अपील खारिज की। इस प्रकार, उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान एसएलपी दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की जाने वाली शर्तों पर उन्हें जमानत दी। हालांकि, स्थानीय जमानत देने में असमर्थता के कारण वह कोल्हापुर सेंट्रल जेल में ही रहे।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को स्थानीय जमानत की आवश्यकता के बिना उसके निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दिया, जिससे 3 मई, 2024 के जमानत आदेश का अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
केस टाइटल- रामचंद्र थंगप्पन आचारी बनाम महाराष्ट्र राज्य