सुप्रीम कोर्ट ने BNS में पुरुषों, ट्रांस व्यक्तियों और जानवरों के खिलाफ यौन अपराधों को अपराध घोषित करने की याचिका पर विचार करने से इनकार किया

Update: 2024-10-14 13:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (14 अक्टूबर) को जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया। उक्त याचिका में भारतीय दंड संहिता की जगह नए अधिनियमित भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत पुरुषों, ट्रांस व्यक्तियों और जानवरों के खिलाफ यौन अपराधों को शामिल करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिका में तर्क दिया गया कि नए BNS में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को हटा दिया गया, जो किसी पुरुष, महिला या जानवर के साथ 'अप्राकृतिक यौन संबंध' और शारीरिक संबंध को अपराध घोषित करती है।

उल्लेखनीय है कि इस प्रावधान को नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था, क्योंकि यह वयस्कों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को अपराध घोषित करता था। इसलिए धारा 377 के अनुसार गैर-सहमति वाले समलैंगिक कृत्य दंडनीय थे।

वर्तमान में BNS में पुरुषों, ट्रांस व्यक्तियों और जानवरों के खिलाफ यौन अपराधों को अपराध घोषित करने वाला कोई प्रावधान नहीं है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि न्यायालय संसद को अपराध बनाने का निर्देश नहीं दे सकता।

पीठ ने कहा,

"संसद ने प्रावधान (पूर्ववर्ती धारा 377) पेश नहीं किया है, हम संसद को प्रावधान पेश करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। हम अपराध नहीं बना सकते।"

सीजेआई ने आदेश में कहा,

"यह न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत यह निर्देश नहीं दे सकता कि कोई विशेष कार्य अपराध बनता है। ऐसा अभ्यास संसदीय अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है।"

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता को भारत संघ के समक्ष कानूनी प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी।

पीठ ने कहा,

"यदि याचिकाकर्ता को कानून में कोई कमी दिखती है तो याचिकाकर्ता को संघ के समक्ष प्रतिनिधित्व करने की अनुमति है।"

हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसी तरह की एक याचिका का निपटारा किया, जिसमें केंद्र से याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने के लिए कहा गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने पी रामचंद्र राव बनाम कर्नाटक राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया कि कानून में कमी होने पर न्यायालय उपयुक्त दिशा-निर्देश पारित कर सकता है। उन्होंने कहा कि श्री बृज लाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने 10 नवंबर, 2023 की अपनी रिपोर्ट में पहले ही BNS से धारा 377 को हटाने की कठिनाई का उल्लेख किया।

केस टाइटल: पूजा शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य। डब्ल्यू.पी. (सीआरएल) नंबर 398/2024

Tags:    

Similar News