BREAKING| 'हमें दुख है': सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाया

Update: 2024-08-07 07:27 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पारित असामान्य आदेश का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने बुधवार (7 अगस्त) को हाईकोर्ट के आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित स्थगन आदेश की आलोचना करने वाली "अनुचित" टिप्पणियों को हटा दिया।

यह स्वत: संज्ञान मामला हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजबीर सहरावत द्वारा 17 जुलाई को पारित आदेश पर था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह मानने की प्रवृत्ति थी कि वह "अधिक सुप्रीम" है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की 5 जजों की पीठ ने स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई की और कहा कि हाईकोर्ट के जजों द्वारा की गई टिप्पणियां "गंभीर चिंता का विषय" हैं।

पीठ ने हाईकोर्ट जज को चेतावनी देते हुए कहा कि भविष्य में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेशों पर विचार करते समय उनसे अधिक सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है।

आदेश में पीठ ने कहा:

"जस्टिस राजबीर सहरावत ने सुप्रीम कोर्ट के संबंध में ऐसी टिप्पणियां की हैं, जो गंभीर चिंता का विषय हैं। न्यायिक व्यवस्था की पदानुक्रमिक प्रकृति के संदर्भ में न्यायिक अनुशासन का उद्देश्य सभी संस्थाओं की गरिमा को बनाए रखना है, चाहे वह जिला कोर्ट हो, हाईकोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट।

एकल न्यायाधीश के आदेश में की गई टिप्पणियां अंतिम आदेश के लिए अनावश्यक थीं, जो पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित पिछले आदेशों के संबंध में अनावश्यक टिप्पणियां बिल्कुल अनुचित हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का अनुपालन करना पसंद का मामला नहीं है, बल्कि संवैधानिक बाध्यता का मामला है। किसी आदेश से पक्षकार व्यथित हो सकते हैं। जज कभी भी उच्च संवैधानिक मंच द्वारा पारित आदेश से व्यथित नहीं होते। ऐसी टिप्पणियां पूरी न्यायिक मशीनरी को बदनाम करती हैं। इससे न केवल इस न्यायालय की बल्कि हाईकोर्ट की भी गरिमा प्रभावित होती है।"

हालांकि पीठ ने कहा कि अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों में दम है कि टिप्पणियां अवमानना ​​की सीमा पर हैं, लेकिन पीठ ने कहा कि वे आगे की कार्रवाई करने में कुछ हद तक संयम बरतने के लिए इच्छुक हैं।

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जस्टिस सेहरावत के आदेश पर पहले ही स्वत: संज्ञान लिया और उस पर रोक लगा दी। हालांकि, चूंकि टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को कमजोर करती हैं, इसलिए पीठ ने कहा कि वह उन्हें हटाने का आदेश दे रही है।

'हम टिप्पणियों से दुखी हैं'

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कार्यवाही शुरू होते ही कहा,

"हम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के एकल जज द्वारा की गई टिप्पणियों से दुखी हैं। ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के संबंध में की गई हैं।"

सीजेआई ने यह भी कहा कि एकल पीठ की कार्यवाही का वीडियो क्लिप प्रसारित हो रहा है।

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि हाईकोर्ट जज की ओर से "कुछ उल्लंघन हुआ है, जो अनुचित है"।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वीडियो क्लिप एक सुनवाई से है, जो एकल न्यायाधीश के समक्ष उनके आदेश पारित करने के बाद हुई थी। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वीडियो क्लिप "गंभीर अवमानना" का मामला बनाती है।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वीडियो क्लिप में न्यायाधीश को यह कहते हुए देखा जा सकता है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को "अवैध" घोषित कर दिया और वे खंडपीठ द्वारा पारित स्थगन आदेश का पालन नहीं करेंगे।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वीडियो में ऐसा आचरण दिखाया गया है जो न केवल न्यायिक औचित्य और न्यायिक अनुशासन के विरुद्ध है, बल्कि अवमाननापूर्ण भी है।

सीजेआई ने कहा,

"सुप्रीम कोर्ट के काम पर अनावश्यक टिप्पणियां करने की यह प्रवृत्ति... हम सभी पदानुक्रमिक स्थिति में काम करते हैं। उस अनुशासन को बनाए रखना होगा। जजों को हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों से नाराज नहीं होना चाहिए।"

सीजेआई ने आगे कहा,

"आदेश में की गई टिप्पणियां निंदनीय हैं। हम उन्हें हटा देंगे। वे अवमानना ​​क्षेत्राधिकार के प्रयोग की सीमा पर हैं।"

एसजी ने न्यायालय से वीडियो में की गई टिप्पणियों पर भी विचार करने का आग्रह किया, क्योंकि क्लिप व्यापक रूप से साझा की जा रही है। हालांकि पीठ ने कहा कि वह मामले को आदेश में दर्ज टिप्पणियों तक ही सीमित रखना पसंद करेगी।

जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने कहा,

"एसजी ने जो उल्लेख किया, वह आदेश का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह कार्यवाही के दौरान है। हम लिखित में दर्ज की गई बातों पर ही विचार कर रहे हैं। आप सही हैं कि लहजे और भाव की अभिव्यक्ति से बचा जा सकता है, लेकिन हमें सुप्रीम कोर्ट के रूप में आदेश में दर्ज की गई बातों पर ही विचार करना होगा।"

केस टाइटल: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश दिनांक 17.07.2024 और सहायक मुद्दों के संबंध में | एसएमडब्लू (सी) 8/24

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