विध्वंस के बाद खाली हुई सोमनाथ की भूमि अगली सुनवाई तक किसी तीसरे पक्ष को आवंटित नहीं की जाएगी: गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया

Update: 2024-10-25 09:38 GMT

गुजरात राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वचन दिया कि सोमनाथ में भूमि, जहां हाल ही में अधिकारियों द्वारा संरचनाओं को ध्वस्त किया गया, सरकार के पास रहेगी। न्यायालय के समक्ष मामले की अगली सुनवाई तक किसी तीसरे पक्ष को आवंटित नहीं की जाएगी।

राज्य ने यह दलील तब दी जब न्यायालय गुजरात हाईकोर्ट के आदेश (3 अक्टूबर) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें गुजरात के सोमनाथ में मुस्लिम धार्मिक संरचनाओं और घरों के विध्वंस पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने से इनकार किया गया।

थोड़ी देर तक दलीलें सुनने के बाद जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने याचिका को 11 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया, जिस दिन सुम्मास्त पाटनी मुस्लिम जमात द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका सूचीबद्ध है, जिसमें आरोप लगाया गया कि सोमनाथ में विध्वंस सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करके किया गया था।

याचिकाकर्ता (औलिया-ए-दीन समिति, जूनागढ़) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकारी भूमि पर मंदिर स्थित थे, लेकिन उन्हें ध्वस्त नहीं किया गया और केवल दरगाहों के खिलाफ कार्रवाई की गई।

सिब्बल ने कहा,

"विध्वंस का कारण यह बताया गया कि वे अरब सागर के पास हैं। इसलिए जल निकाय के पास हैं। संरक्षित स्मारकों को जमीन पर गिरा दिया गया। क्या आप कल्पना कर सकते हैं?"

उन्होंने कहा कि विरासत स्मारकों, प्राचीन दरगाहों और कब्रिस्तानों को ध्वस्त किया गया।

गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल की दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि केवल वे संरचनाएं ध्वस्त की गईं, जो सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर रही थीं। एसजी ने इस बात से भी इनकार किया कि वे संरक्षित संरचनाएं थीं। कहा कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने का दोषी है।

जब सिब्बल ने यथास्थिति आदेश देने की दलील दी तो पीठ ने इनकार कर दिया।

जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से कहा,

"हम बहाली का आदेश भी दे सकते हैं।"

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने कहा कि उनके मुवक्किल के पास 1903 में तत्कालीन रियासत द्वारा जारी भूमि आवंटन का एक दस्तावेज है। अहमदी ने कहा कि एक संरचना को प्राचीन स्मारक घोषित किया गया। इसे वक्फ के रूप में पंजीकृत किया गया।

अहमदी ने कहा,

"शनिवार को जब कार्यवाही लंबित थी, रातों-रात उन्होंने आगे बढ़कर संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया। हमें आशंका है कि वे जिस तरह से काम कर रहे हैं, उससे वे अपना कब्जा बदल सकते हैं। इसलिए हम यथास्थिति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।"

इस बात पर सहमति जताते हुए कि पूर्ण किए गए विध्वंस के खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता, अहमदी ने तीसरे पक्ष को भूमि के आगे आवंटन के खिलाफ यथास्थिति आदेश के लिए प्रार्थना की।

अहमदी ने कहा,

"उन्होंने मनमानी की। यदि कब्जे में बदलाव का आवंटन होता है तो इसे वापस पाना मुश्किल हो जाएगा।"

अहमदी की दलीलों में शामिल होते हुए सिब्बल ने कहा कि हालांकि संरचनाएं सार्वजनिक भूमि पर हैं, लेकिन वे संरक्षित स्मारक, रजिस्टर्ड वक्फ और सार्वजनिक ट्रस्ट हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी चुनिंदा स्मारकों के खिलाफ कार्यवाही कर रहे हैं, जबकि सार्वजनिक भूमि पर स्थित मंदिरों को छोड़ दिया गया।

सिब्बल ने पीठ का ध्यान जिला कलेक्टर द्वारा 2015 में पारित पिछले आदेश की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया कि विचाराधीन भूमि का उपयोग केवल सरकारी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान प्रयास इन भूमियों को तीसरे पक्ष को आवंटित करने का है।

इस बिंदु पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि अधिकारी कलेक्टर के आदेश द्वारा लगाई गई शर्तों का पालन करेंगे।

जस्टिस गवई ने कहा,

"अगली तारीख तक कब्जा सरकार के पास रहने दें।"

एसजी ने कहा कि वह इस आशय का बयान देने के लिए तैयार हैं।

उनके बयान को दर्ज करते हुए पीठ ने आदेश दिया:

"एसजी ने कहा कि अगले आदेश तक विचाराधीन भूमि का कब्जा सरकार के पास रहेगा। किसी तीसरे पक्ष को आवंटित नहीं किया जाएगा। मामले के इस दृष्टिकोण से हमें कोई अंतरिम आदेश पारित करना आवश्यक नहीं लगता।"

पीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के लंबित रहने से हाईकोर्ट को उसके समक्ष मामले पर आगे बढ़ने से नहीं रोका जाएगा।

4 अक्टूबर को इसी पीठ ने एक अवमानना ​​याचिका पर विचार किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि सोमनाथ में तोड़फोड़ 17 सितंबर के आदेश का उल्लंघन करते हुए की गई, जिसमें कहा गया कि सार्वजनिक भूमि पर स्थित संरचनाओं को छोड़कर अन्य संरचनाओं को गिराने के लिए न्यायालय की पूर्व अनुमति आवश्यक है। उस अवसर पर पीठ ने तोड़फोड़ के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया, यह देखते हुए कि गुजरात हाईकोर्ट ने भी एक तर्कपूर्ण आदेश के माध्यम से ऐसी राहत देने से इनकार किया था।

केस टाइटल: औलियादीन समिति बनाम गुजरात राज्य | एसएलपी (सी) नंबर 24515/2024

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