NI Act की धारा 138 | यदि अभियुक्त चेक पर हस्ताक्षर करने में विवाद करता है तो बैंक से नमूना हस्ताक्षर की प्रमाणित प्रति ली जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-01-30 05:37 GMT

परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत में यदि अभियुक्त चेक पर हस्ताक्षर पर विवाद कर रहा है तो चेक पर दिखाई देने वाले हस्ताक्षर के साथ तुलना करने के लिए बैंक से हस्ताक्षर की प्रमाणित प्रतियां बैंक से मंगवाई जा सकती हैं।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चेक पर पृष्ठांकन NI Act की धारा 188 (ई) के अनुसार वास्तविकता का अनुमान लगाता है। इसलिए यह अभियुक्त पर निर्भर है कि वह हस्ताक्षरों की वास्तविकता की धारणा का खंडन करने के लिए सबूत पेश करे।

कोर्ट ने कहा,

"बैंक द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति बिना किसी औपचारिक प्रमाण के बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट, 1891 के तहत स्वीकार्य है। इसलिए उपयुक्त मामले में बैंक द्वारा बनाए गए नमूना हस्ताक्षर की प्रमाणित प्रति प्राप्त की जा सकती है। अदालत से अनुरोध है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 73 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके चेक पर दिखने वाले हस्ताक्षर के साथ इसकी तुलना की जाए।''

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ चेक अनादर मामले में अपनी सजा के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील में आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करने से उच्च न्यायालय के इनकार को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीलकर्ता अपीलीय चरण में हस्ताक्षर के संबंध में हस्तलेखन विशेषज्ञ का साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहता था।

यह देखते हुए कि NI Act की धारा 391 के तहत शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है, जब अपीलकर्ता को उचित परिश्रम के बावजूद मुकदमे में ऐसे सबूत पेश करने से रोका गया हो, अदालत ने कहा कि आरोपी ने मुकदमे के चरण में अपने हस्ताक्षर को गलत साबित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। हस्ताक्षर की सत्यता के संबंध में बैंक की ओर से गवाह से कोई सवाल नहीं किया गया। साथ ही हस्ताक्षर में कोई गड़बड़ी होने के कारण चेक वापस कर दिया गया।

अदालत ने कहा,

"हमारा विचार है कि यदि अपीलकर्ता यह साबित करने का इच्छुक है कि उसके अकाउंट से जारी किए गए चेक पर दिखाई देने वाले हस्ताक्षर वास्तविक नहीं है तो वह अपने नमूना हस्ताक्षरों की प्रमाणित प्रति प्राप्त कर सकता है। बैंक और चेक पर हस्ताक्षर की वास्तविकता या अन्यथा के संबंध में साक्ष्य देने के लिए बचाव में संबंधित बैंक अधिकारी को बुलाने का अनुरोध किया जा सकता है।''

इसके अलावा, ट्रायल चरण में अपीलकर्ता ने हस्तलेखन विशेषज्ञ द्वारा हस्ताक्षरों की तुलना करने के लिए आवेदन दायर किया। हालांकि आवेदन खारिज कर दिया गया, लेकिन इसे कभी चुनौती नहीं दी गई।

इन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल: अजीतसिंह चेहुजी राठौड़ बनाम गुजरात राज्य और अन्य

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