ऊटी और कोडाइकनाल पर्यटन: सुप्रीम कोर्ट ने पर्यटक वाहनों पर ई-पास सीमा के खिलाफ होटेलियर्स की याचिका खारिज की

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Update: 2025-03-28 13:52 GMT
ऊटी और कोडाइकनाल पर्यटन: सुप्रीम कोर्ट ने पर्यटक वाहनों पर ई-पास सीमा के खिलाफ होटेलियर्स की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने आज मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें इस गर्मी के मौसम में नीलगिरी और कोडाइकनाल जाने वाले वाहनों की संख्या को सीमित करने का निर्देश दिया गया था ताकि पर्यटक स्थलों पर भीड़भाड़ को नियंत्रित किया जा सके।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने माना कि हाईकोर्ट का आदेश "पूरी तरह से सही" है और उसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता तमिलनाडु होटल एसोसिएशन ने याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट का रुख करने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।

गौरतलब है कि 13 मार्च को हाईकोर्ट ने हिल स्टेशनों की वहन क्षमता को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया था कि सप्ताह के दिनों में नीलगिरी में 6000 और कोडाइकनाल में 4000 वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। सप्ताहांत में यह संख्या क्रमशः 8000 और 6000 कर दी गई थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ये प्रतिबंध पर्यटकों को ले जाने वाली सरकारी बसों, सरकारी वाहनों और व्यापार एवं व्यवसाय से जुड़े वाहनों पर लागू नहीं होंगे। स्थानीय निवासियों के वाहनों को भी इस सीमा से छूट दी गई थी।

इससे पहले, पिछले साल अप्रैल में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को गर्मी के मौसम (मई और जून) के दौरान हिल स्टेशनों में प्रवेश करने वाले वाहनों के लिए ई-पास अनिवार्य करने का निर्देश दिया था। इस प्रणाली को लागू करते हुए, अदालत ने नीलगिरी बायोस्फीयर और पश्चिमी घाट की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित किया था। अदालत ने कहा था कि जैव विविधता के बिना मानव जीवन संभव नहीं है, इसलिए इन प्राकृतिक स्थानों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। नीलगिरी और डिंडीगुल के जिला कलेक्टरों को 7 मई से 30 जून तक इस व्यवस्था को लागू करने का निर्देश दिया गया था। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया था कि ई-पास जारी करने की कोई सीमा नहीं होगी और स्थानीय निवासियों को इस प्रणाली से छूट दी जाएगी।

विवादित आदेश के माध्यम से, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ई-पास जारी करने में इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया और इसे अप्रैल से जून तक लागू करने का आदेश दिया। निर्धारित वाहन सीमा मौजूदा ई-पास प्रणाली के अतिरिक्त थी। 13 मार्च के इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की रिपोर्ट अभी लंबित थी और हाईकोर्ट ने फरवरी के आंकड़ों के आधार पर अप्रैल से इस नीति को लागू करने का निर्देश दे दिया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया, "हाईकोर्ट के पास यह डेटा नहीं था कि कितने वाहन प्रवेश कर रहे हैं, क्योंकि अभी कैमरे लगाए जा रहे हैं। पर्यटन का मौसम अप्रैल, मई और जून का होता है, जबकि माननीय हाईकोर्ट के पास फरवरी के आंकड़े थे। फरवरी के आंकड़े अप्रैल और मई के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकते।"

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, "आपने हाईकोर्ट में जाकर पक्षकार बनने से खुद को क्यों रोका?" जब याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट के फैसले को फरवरी के डेटा पर आधारित होने को लेकर चुनौती दी, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने जवाब दिया कि गर्मी के महीनों में पर्यटकों की संख्या केवल बढ़ती है और हाईकोर्ट ने न्यूनतम संख्या (फरवरी के आंकड़ों) के आधार पर आदेश पारित किया है।

उन्होंने आगे कहा, "आप वहां 6000 वाहन ले जाना चाहते हैं और फिर भी संतुष्ट नहीं हैं! आप वहां अराजकता फैलाना चाहते हैं?"

याचिकाकर्ता के वकील ने स्पष्टीकरण दिया कि राज्य सरकार को ही हाईकोर्ट की कार्यवाही की जानकारी थी और 13 मार्च को पारित आदेश 1 अप्रैल से लागू होना था। उन्होंने कहा, "यह अचानक सामने आया है।" जब बेंच ने याचिका को स्वीकार करने में अनिच्छा दिखाई, तो वकील ने अनुरोध किया कि याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट में जाने के लिए कुछ समय दिया जाए और आदेश को अस्थायी रूप से निलंबित रखा जाए। लेकिन, बेंच ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।

इसके बाद, याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली और हाईकोर्ट में जाने की स्वतंत्रता प्राप्त की।

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