मणिपुर संकट | सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से जलाई गई, लूटी गई और अतिक्रमण की गई इमारतों का ब्यौरा देने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से कहा कि वह राज्य में चल रही जातीय झड़पों के बीच जलाई गई, लूटी गई या अतिक्रमण की गई संपत्तियों की सूची सीलबंद लिफाफे में पेश करे।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ मणिपुर जातीय हिंसा संकट से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी।
एमिकस की भूमिका में उपस्थित सीनियर एडवोकेट विभा मखीजा ने बताया कि जस्टिस गीता मित्तल समिति ने पिछले साल से किए गए विभिन्न कार्यों पर 34 से अधिक रिपोर्ट तैयार की हैं।
समिति द्वारा किए गए कार्य की प्रगति और मानवीय उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए मखीजा ने कहा,
"समिति ने कुछ सराहनीय कार्य पूरी तरह से निशुल्क किए हैं। माई लॉर्ड ऐसे सराहनीय पुनर्वास उपाय किए गए हैं। यह चौबीसों घंटे काम कर रहा है, लोगों को आतिथ्य क्षेत्रों में रखा गया। उनके कौशल का निर्माण किया गया। उन्हें उनकी संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए वापस लाया गया।"
न्यायालय ने समिति की रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिससे गृह मंत्रालय और राज्य सरकार सुधारात्मक कार्रवाई कर सकें।
विस्थापित व्यक्तियों की शिकायतों और संघर्ष के कारण प्रभावित उनकी संपत्तियों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:
"हम राज्य सरकार को निम्नलिखित विवरण दाखिल करने का निर्देश देते हैं- (1) जली हुई और आंशिक रूप से जली हुई इमारतें; (2) लूटी गई इमारतें; (3) अतिक्रमण और अतिक्रमण वाली इमारतें, इन सभी में मालिक का नाम और पता तथा संपत्ति पर कब्जा करने वाले व्यक्ति (यदि कोई हो) का विवरण दें। रिपोर्ट में यह भी दर्शाया जाएगा कि राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए हैं कि अतिक्रमण करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए। उक्त सूची सीलबंद लिफाफे में दी जाए।"
राज्य सरकार से मित्तल समिति द्वारा उठाए गए अस्थायी और स्थायी आवास के लिए धन जारी करने के मुद्दे पर भी जवाब देने को कहा गया।
सीजेआई ने राज्य से कहा,
"आपको इस पर निर्णय लेना होगा कि आप इससे कैसे निपटना चाहते हैं या आपराधिक कार्रवाई के साथ-साथ उन्हें कब्जे (संपत्तियों) के उपयोग के लिए मध्यवर्ती लाभ का भुगतान करने के लिए कहना चाहते हैं।"
राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने इस पर सहमति जताते हुए पीठ को आगे बताया कि पहली प्राथमिकता कानून-व्यवस्था की स्थिति है, दूसरी प्राथमिकता यह है कि जो भी हथियार बरामद किए गए हैं।
खुली अदालत में डेटा साझा करने के लिए अनिच्छुक एसजी ने कहा,
"हमारे पास डेटा है, लेकिन हम इसे (खुले तौर पर) साझा नहीं करेंगे। अक्सर मीडिया में इसे हाईलाइट किया जाता है, मैंने कई इंटरव्यू देखे हैं, ट्रैक इंटरव्यू, जिनसे मैं अपने मित्र से बचने का अनुरोध करूंगा"
सुनवाई के दौरान पीठ ने मणिपुर में विस्थापित व्यक्तियों के लाभ के लिए दिल्ली के निवासी द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया।
एसजी ने पीठ को बताया कि आवेदक सिख सज्जन हैं, जिनका नाम ईसाई है, जो दिल्ली के पीतमपुरा में रहते हैं। उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
आवेदक के वकील ने कहा,
"केंद्र और राज्य सरकार पर लोगों का भरोसा दांव पर है, लोग माननीय न्यायालय की ओर देख रहे हैं, अन्यथा स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जाएगी।"
इस पर सीजेआई ने जवाब दिया,
"हमें इसकी जानकारी है, आपको हमें बताने की जरूरत नहीं है।"
इस मौके पर एसजी ने चेतावनी देते हुए हस्तक्षेप किया,
"माई लॉर्ड, 1 घंटे के बाद सार्वजनिक मीडिया में यह कहते हुए उद्धृत किया जाएगा कि सीजेआई इस बात से सहमत हैं कि लोगों की आस्था..."
सीजेआई ने स्पष्ट किया,
"नहीं, नहीं, हमने ऐसा नहीं कहा है।"
अब मामले की सुनवाई 20 जनवरी, 2025 के बाद होगी
मामले टाइटल: डिंगंगलंग गंगमेई बनाम मुटुम चूरामनी मीतेई| डायरी नं. - 19206/2023