जिला जजों का चयन | सुप्रीम कोर्ट ने कहा- प्रक्रिया के बीच में मानदंड बदलकर झारखंड हाईकोर्ट ने गलत किया; 7 उम्मीदवारों की नियुक्ति का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि हाईकोर्ट जिला जजों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के बाद चयन मानदंड में बदलाव नहीं कर सकता।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने झारखंड हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह जिला जजों के रूप में नियुक्त होने के लिए योग्य सात व्यक्तियों की नियुक्ति पर विचार करे, जिन्हें "नियम के बीच में बदलाव" के कारण नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था।
झारखंड सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विस (रिक्रूटमेंट, अप्वाइंटमेंट एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) रूल्स, 2001 के अनुसार, जिला जज की नियुक्ति पाने के लिए एक उम्मीदवार को मौखिक परीक्षा में कुल अंकों में से कम से कम 30% अंक प्राप्त करना आवश्यक था। हालांकि, हाईकोर्ट की फुल बेंच ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मौखिक परीक्षा में कुल 40 में से कम से कम 20 अंक की आवश्यकता के नियम को बदल दिया गया। प्रस्ताव में उक्त पदों पर अनुशंसित होने के लिए योग्यता मानदंड के रूप में कुल 50 प्रतिशत अंक (मुख्य परीक्षा और मौखिक परीक्षा में प्राप्त अंकों का संयोजन) हासिल करने का प्रस्ताव किया गया।
याचिकाकर्ता उम्मीदवारों ने यह तर्क दिया कि उम्मीदवारों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किए जाने के बाद बीच में चयन मानदंड को बदलना हाईकोर्ट के लिए अनुचित होगा। उन्होंने यह भी तर्क है कि हाईकोर्ट की ओर से जारी किया गया ताजा कट-ऑफ 2001 के नियमों का उल्लंघन है। इसके विपरीत हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि 2001 के नियमों का नियम 14 उन्हें चयन प्रक्रिया समाप्त होने और अंक घोषित होने के बाद चयन मानदंड में बदलाव करने की अनुमति देता है।
याचिकाकर्ता उम्मीदवारों की ओर से की गई दलील में बल पाते हुए अदालत ने कहा कि चयन मानदंड में बदलाव करने का हाईकोर्ट का निर्णय वैधानिक नियमों से हटकर है और हाईकोर्ट के लिए नियम को बीच में बदलना स्वीकार्य नहीं है।
पीठ ने कहा,
“2001 के नियमों के नियम 18 के मुताबिककट-ऑफ अंक निर्धारित करने का कार्य हाईकोर्ट के पास है, हालांकि यह परीक्षा शुरू होने से पहले किया जाना है.....हमने इस तरह के विचलन के लिए हाईकोर्ट के तर्क पर विचार किया है, लेकिन वैधानिक नियमों से इस तरह का विचलन अस्वीकार्य है।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे उम्मीदवार की अनुपयुक्तता पर कोई निष्कर्ष निकाले बिना उम्मीदवार को बाहर करना अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने शिवनंदन सीटी एवं अन्य बनाम केरल हाईकोर्ट में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा करते हाईकोर्ट प्रशासन की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि नियम 14 उन्हें चयन प्रक्रिया समाप्त होने और अंक घोषित होने के बाद चयन मानदंड में बदलाव करने की अनुमति देता है।
अदालत के अनुसार, यह उक्त प्रावधान की उचित व्याख्या नहीं है क्योंकि हाईकोर्ट प्रशासन 2001 के नियमों में निर्दिष्ट चयन मानदंडों से हटकर व्यापक निर्णय लेने के लिए इस नियम की सहायता नहीं ले सकता है। इन्हीं टप्पणियों के साथ अदालत ने याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट की फुल बेंच में पारित प्रस्ताव को रद्द कर दिया।
केस डिटेलः सुशील कुमार पांडेय एवं अन्य बनाम झारखंड हाईकोर्ट एवं अन्य। रिट पीटिशन (सिविल) नंबर 753/2023
साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एससी) 109