हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-08-25 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (19 जुलाई, 2024 से 23 अगस्त, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

पति या पत्नी के भरण-पोषण के साधनों की कमी को साबित करने का भार उस पक्ष पर, जो ऐसी असमर्थता व्यक्त करता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि भरण-पोषण के लिए दायर मुकदमे में यह साबित करना प्रतिवादी पर है कि उसके पास दावेदार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति के साधनों को साबित करने के लिए साक्ष्य उसके अनन्य ज्ञान के भीतर होंगे और इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए दावे को गलत साबित करना उस पर है।

जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम. बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने यह टिप्पणी फैमलीं कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए की, जिसमें भरण-पोषण के लिए दायर मुकदमा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता प्रतिवादी की वित्तीय स्थिति या राजकोषीय स्थिति को साबित नहीं कर सका।

केस टाइटल- अंकिता जॉय बनाम जॉय ऑगस्टीन @ ऑगस्टी

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नामांकन फॉर्म में मामूली अंतर या बकाया राशि का खुलासा न चुनाव ऐसा दोष नहीं, जिससे चुनाव परिणाम प्रभावित हो: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश की चुरहट सीट से कांग्रेस विधायक अजय अर्जुन सिंह के निर्वाचन के खिलाफ दायर दो याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि नामांकन फॉर्म में मामूली अंतर या बकाया राशि का खुलासा न करना चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाला "महत्वपूर्ण दोष" नहीं कहा जा सकता।

जस्टिस विशाल मिश्रा की एकल पीठ ने देखा कि चुनाव याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का पालन न करने का आरोप लगाया गया है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि यद्यपि यह इंगित करने का प्रयास किया गया था कि नामांकन फॉर्म में कुछ उल्लंघन हैं ,जो अयोग्यता के बराबर हैं, फिर भी "आरोप विशिष्ट होना चाहिए, यह अस्पष्ट नहीं होना चाहिए"।

केस टाइटलः रामगरेब और अन्य बनाम अजय अर्जुन सिंह और अन्य

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कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरजी कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष द्वारा कथित अनियमितताओं की SIT जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपा

कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरजी कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष द्वारा कथित अनियमितताओं की SIT जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया।

विशेष रूप से CBI 9 अगस्त को अस्पताल परिसर में रेजिडेंट डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के मामले में भी घोष की जांच कर रही है। जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की एकल पीठ आरजी कार के पूर्व उपाधीक्षक अख्तर अली की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य के अधिकारियों के समक्ष घोष के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की थीं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने प्रस्तुत किया कि डॉक्टर की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद ही राज्य ने SIT का गठन किया।

केस टाइटल: अख्तर अली बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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पति की प्रेमिका उसकी रिश्तेदार नहीं, इसलिए उस पर धारा 498ए IPC के तहत क्रूरता का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पति की प्रेमिका पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत दंडनीय घरेलू हिंसा या क्रूरता के आरोपों के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस वृषाली जोशी की खंडपीठ ने चंद्रपुर जिले की अदालत में वैशाली गावंडे के खिलाफ लंबित आरोपपत्र और अन्य कार्यवाही रद्द कर दी।

न्यायाधीशों ने कहा, "आवेदक शिकायतकर्ता के पति का रिश्तेदार नहीं है, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए लागू नहीं होगी। क्योंकि आरोप-पत्र इस आवेदक के खिलाफ दायर किया गया, जो रिश्तेदार नहीं है। केवल इसलिए कि आरोप लगाए गए कि शिकायतकर्ता के पति का इस आवेदक के साथ विवाहेतर संबंध है। उसके खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया, जो कानून के अनुसार अवैध है। इसलिए आपराधिक आवेदन को स्वीकार किया जाता है।"

केस टाइटल- वैशाली गावंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य

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न्यायालय धारा 125 CrPc या धारा 144 BNSS के तहत एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण दे सकता है, जब पुष्ट तथ्य दिखाए जाएं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायालय धारा 125 CrPc या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 144 के तहत एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण दे सकता है।

जस्टिस सुमीत गोयल ने स्पष्ट किया, "न्यायालय को न्यायिक विवेक और न्याय के सुस्थापित मानदंडों के अनुसार एकपक्षीय अंतरिम भरण-पोषण/अंतरिम भरण-पोषण देने की याचिका पर विचार करना चाहिए। इस तरह की शक्ति के प्रयोग के लिए कोई सार्वभौमिक संपूर्ण दिशा-निर्देश निर्धारित नहीं किए जा सकते। न्यायालय द्वारा किसी दिए गए मामले के तथ्यों/परिस्थितियों के आधार पर इसका प्रयोग किया जाएगा।"

केस टाइटल- XXXX बनाम XXXX

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Negotiable Instruments Act | न्यायालय दोषसिद्धि के बाद भी धारा 147 के तहत अपराधों को समन कर सकता है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act) (NI Act) की धारा 147 के तहत न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि दर्ज किए जाने के बाद भी अपराधों को समन किया जा सकता है।

जस्टिस संदीप शर्मा ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसे NI Act की धारा 147 के साथ पढ़ा गया।

केस टाइटल- सतवीर सिंह बनाम राजेश पठानिया

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CrPC | धारा 320(1) के तहत अपराधों के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर धारा 482 लागू नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि CrPc की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का इस्तेमाल तब नहीं किया जा सकता, जब अपराधों के लिए वैकल्पिक उपाय धारा 320(1) के तहत उपलब्ध हो। यह फैसला तब आया, जब अदालत ने आईपीसी की धारा 34 के साथ धारा 323, 504 और 506 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल- मोहन सिंह एवं अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य

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[Sec.509] ई-मेल या सोशल मीडिया पर लिखे गए आपत्तिजनक शब्दों को महिला की विनम्रता का अपमान करने के लिए दंडित किया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बंबई हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ईमेल या सोशल मीडिया पर एक 'लिखित' अपमानजनक शब्द भी, जो किसी महिला की गरिमा को कम कर सकता हो, भारतीय दंड संहिता की धारा 509 (महिला का अपमान) के तहत किसी के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त है।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि धारा 509 (जो किसी महिला का अपमान करने के लिए बोले गए किसी भी शब्द को दंडित करता है) के अनुसार, 'बोले गए' शब्द का अर्थ केवल 'बोले गए शब्द' होगा, न कि ईमेल या सोशल मीडिया पोस्ट आदि पर 'लिखे' गए शब्द।

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केवल कभी-कभार होने वाला दुर्व्यवहार या उत्पीड़न आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ग्वालियर ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत लगाए गए आरोप खारिज करते हुए कहा कि केवल कभी-कभार होने वाला उत्पीड़न या दुर्व्यवहार आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है। जस्टिस संजीव एस. कलगांवकर की एकल पीठ ने कहा कि उकसाने का अपराध बनने के लिए उकसाने या उकसाने का स्पष्ट और जानबूझकर किया गया कार्य होना चाहिए।

अदालत ने गंगुला मोहन रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, अमलेंदु पाल @ झंटू बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, हुकुम सिंह यादव बनाम मध्य प्रदेश राज्य सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा किया, जिसने दोहराया कि आरोपी की हरकतें ऐसी होनी चाहिए कि पीड़ित को अपनी जान लेने के लिए मजबूर होना पड़े और उसके पास कोई दूसरा विकल्प न बचे।

केस टाइटल- खैरू @ सतेंद्र सिंह रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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नाबालिग लड़की का बार-बार पीछा करना, उसकी अनिच्छा के बावजूद प्यार का इजहार करने की कोशिश करना POCSO अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर कोई लड़का बार-बार किसी नाबालिग लड़की से बात करने, उससे अपने प्यार का इजहार करने और फिर यह दावा करने के लिए उसका पीछा करता है कि एक दिन वह उसका प्यार स्वीकार कर लेगी, तो यह दर्शाता है कि उसका इरादा अच्छा नहीं था और यह यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के बराबर होगा।

सिंगल जज जस्टिस गोविंद सनप ने अमरावती की एक अदालत के 4 फरवरी, 2021 के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता मिथुराम धुर्वे को पीछा करने (भारतीय दंड संहिता के तहत) और यौन उत्पीड़न (POCSO अधिनियम के तहत) के आरोपों के तहत दोषी ठहराया गया था।

केस टाइटलः मितुराम उदयराम धुर्वे बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक अपील 201/2021)

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एक बार जब कोर्ट द्वारा कब्जे के अधिकार पर फैसला कर दिया जाता है तो धारा 146 सीआरपीसी के तहत संपत्ति कुर्क करने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि न्यायालय द्वारा संपत्ति के कब्जे के अधिकार पर निर्णय लिए जाने के बाद धारा 145, 146 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। धारा 145 सीआरपीसी भूमि से संबंधित विवाद की स्थिति में मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित करती है तथा धारा 146 विवाद के विषय को कुर्क करने तथा रिसीवर नियुक्त करने की शक्ति प्रदान करती है।

जस्टिस जसजीत बेदी ने कहा, "जब कब्जे के तथ्य और कब्जे के अधिकार दोनों पर उचित सिविल कोर्ट द्वारा निर्णय लिया जाता है, तो धारा 145/146 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही शुरू करने का सवाल ही नहीं उठता। यहां यह दोहराया जा सकता है कि धारा 145/146 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही किसी पक्ष के कब्जे के तथ्य से संबंधित है, न कि कब्जे के अधिकार से, जिसे सिविल कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जाना है।"

केस टाइटलः किशना एंड अन्य बनाम सब डिविजनल मजिस्ट्रेट होडल और अन्य

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MV Act | 7500 किलोग्राम से कम वजन वाले परिवहन वाहनों को चलाने के लिए हल्के मोटर वाहन लाइसेंस पर्याप्त, अलग से लाइसेंस की आवश्यकता नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि 7500 किलोग्राम से कम वजन वाले परिवहन वाहन को हल्के मोटर वाहन (LMV) चलाने के लिए मोटर वाहन अधिनियम 1988 (MV Act) की धारा 10(2) के तहत जारी किए गए लाइसेंस के अलावा किसी अन्य ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट ने कहा, “परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से अनुमोदन प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है तथा यदि चालक के पास हल्के मोटर वाहन चलाने का लाइसेंस है तो वह उस श्रेणी के परिवहन वाहन को उस अनुमोदन के बिना भी चला सकता है।”

केस टाइटल- यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मदनी बाई एवं अन्य।

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पावर ऑफ अटॉर्नी धारक, जो ट्रस्ट का प्रबंधक भी है, वह ट्रस्टी है, ट्रस्ट की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ट्रस्ट का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक जो ट्रस्ट का प्रबंधक भी है, वह ट्रस्टी की हैसियत रखता है। इसलिए वह ट्रस्ट की ओर से गवाही देने के साथ-साथ साक्ष्य भी प्रस्तुत कर सकता है।

जस्टिस रेखा बोराणा की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता ट्रस्ट- रामनिवास धाम ट्रस्ट द्वारा अपने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक पारसमल पीपाड़ा के माध्यम से भीलवाड़ा के किराया न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को केवल आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। प्रतिवादी ने अपने आवेदन के माध्यम से प्रार्थना की थी कि याचिकाकर्ता ट्रस्ट के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य को पढ़ा और स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

केस टाइटल- रामनिवास धाम ट्रस्ट बनाम निर्मला चौधरी और अन्य।

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'फादर' 'मौलाना' या 'कर्मकांडी' जो किसी को जबरन धर्मांतरित करता है, वह यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत उत्तरदायी होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी धर्म का व्यक्ति और चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए जैसे कि फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला, आदि, वह यूपी धर्मांतरण विरोधी अधिनियम (UP 'Anti Conversion' Act) के तहत उत्तरदायी होगा, यदि वह किसी व्यक्ति को बलपूर्वक, गलत बयानी, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन देकर धर्मांतरित करता है।

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मौलाना (धार्मिक पुजारी) को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर पीड़िता को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने और मुस्लिम व्यक्ति के साथ उसका निकाह कराने का आरोप है।

केस टाइटल - मोहम्मद शाने आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य। 2024 लाइवलॉ (एबी) 526

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विवाह की अमान्यता पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकती: मद्रास हाईकोर्ट

पत्नी को भरण-पोषण देने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्थापित स्थिति है कि भले ही किसी सक्षम न्यायालय द्वारा विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया हो लेकिन यह पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकेगा।

न्यायालय ने कहा, “अब यह भी कमोबेश स्थापित हो चुका है कि विवाह की अमान्यता भले ही किसी सक्षम सिविल न्यायालय द्वारा घोषित कर दी गई हो लेकिन यह पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकती। यहां यह घोषणा का मामला नहीं है बल्कि यह CrPc की धारा 125 के तहत दायर भरण-पोषण का मामला है।”

केस टाइटल- सत्यमूर्ति बनाम अर्पुथा मैरी

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पीएमएलए | संपत्ति जब्त करने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की जा सकती: पी एंड एच हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत की ओर से पारित संपत्ति जब्त करने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की जा सकती है। मौजूदा मामले में, धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत एक आरोपी द्वारा प्राप्त ऋण सुविधाओं के बदले बैंक में गिरवी रखी गई संपत्ति को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जब्त कर लिया गया था। न्यायालय ने ईडी की ओर से उठाई गई आपत्ति को खारिज कर दिया कि जब्ती आदेश के खिलाफ याचिका हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय नहीं थी।

जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा, "आपराधिक मामले में, संपत्ति जब्त करने का आदेश एक अंतरिम आदेश नहीं है क्योंकि यह आपराधिक मुकदमे के समापन तक अंतरिम हिरासत के अधिकारों को निर्धारित करता है।"

केस टाइटलः यूनियन ऑफ बैंक ऑफ इंडिया बनाम सहायक निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय

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मोटरसाइकल चालक द्वारा प्रोटेक्टिव हेडगियर न पहनना मुआवज़े के अधिकार को नकार नहीं सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मोटर वाहन अधिनियम (MV Act) की धारा 129(ए) के अनुसार सुरक्षात्मक हेडगियर न पहनना, हालांकि सहभागी लापरवाही है, लेकिन इससे पीड़ित दावेदार को दिए जाने वाले मुआवज़े पर कोई बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा।

जस्टिस के सोमशेखर और जस्टिस डॉ. चिल्लकुर सुमालता की खंडपीठ ने सदाथ अली खान द्वारा मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए जाने वाले मुआवज़े में वृद्धि की मांग करने वाली अपील पर निर्णय लेते हुए यह बात कही। न्यायाधिकरण ने मुआवज़े के रूप में 5,61,600 रुपये दिए और ऐसा करते हुए माना कि दावेदार बिना हेलमेट पहने यात्रा कर रहा था। इस तरह उसने मोटर वाहन नियमों के प्रावधानों के तहत परिवहन प्राधिकरण द्वारा जारी अधिसूचना का उल्लंघन किया।

केस टाइटल: सआदत अली खान और नूर अहमद सैय्यद और एएनआर

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