हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-05-12 04:30 GMT
High Courts

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (06 अप्रैल, 2024 से 10 मई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

ग्रेच्युटी का हक रिटायरमेंट की उम्र पर नहीं, बल्कि सेवा के वर्षों की नंबर पर निर्भर करता है: इलाहाबाद हाइकोर्ट

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि सरकारी कर्मचारी को ग्रेच्युटी उसकी सेवा के वर्षों के आधार पर देय होगी न कि जिस उम्र में वह रिटायर होता है।

जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा, "साठ साल की उम्र में रिटायरमेंट कोई ऐसा अधिकार नहीं है, जिससे कर्मचारी को ग्रेच्युटी प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो जो उसके पास नहीं है। कर्मचारी को ग्रेच्युटी का अधिकार उसके द्वारा सेवा किए गए वर्षों की नंबर के अनुसार मिलता है।"

केस टाइटल- सेहरुन निशा बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य

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लेबर कोर्ट को जांच पूरी करने से पहले नियोक्ता को सुनवाई का अवसर देना चाहिए: गुजरात हाइकोर्ट

गुजरात हाइकोर्ट के जस्टिस बीरेन वैष्णव और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि यदि नियोक्ता द्वारा की गई जांच अवैध या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाली पाई जाती है तो लेबर कोर्ट कानूनी रूप से मामले पर निर्णय लेने से पहले नियोक्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के लिए बाध्य है।

खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि एकल न्यायाधीश खंडपीठ और लेबर कोर्ट दोनों ने नियोक्ता को लेबर कोर्ट में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर न देकर अधिकार क्षेत्र में गलती की है।

केस टाइटल- राजकोट नगर निगम बनाम राजेशभाई रामजीभाई पुरबिया

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अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा केवल मौजूदा नीति के अनुसार किया जा सकता है, अधिकार के रूप में नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट जस्टिस अविनाश जी. घरोटे और जस्टिस एम. एस. जावलकर की खंडपीठ ने एक रिट याचिका पर फैसला सुनाया। आशा डब्ल्यूडी/ओ हरिदास कटवाले और अन्य बनाम प्रबंधक (खान), मैसर्स वेस्टर कोलफील्ड्स लि भद्रावती एवं अन्य मामले में हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति का दावा केवल विद्यमान नीति के अनुसार ही किया जा सकता है न कि अधिकार के रूप में।

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लिव-इन-पार्टनर के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने के लिए दोषी को पैरोल नहीं दी जा सकती, जबकि उसकी पत्नी पहले से ही कानूनी रूप से विवाहित है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत में कानून के साथ-साथ दिल्ली जेल नियम भी किसी दोषी को इस आधार पर पैरोल देने की अनुमति नहीं देते कि वह लिव-इन पार्टनर के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखता है, जबकि उसकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है।

जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि एक दोषी को बच्चे होने या लिव-इन पार्टनर के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने के आधार पर पैरोल नहीं दी जा सकती है, जहां उसकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और बच्चे उस विवाह से पैदा हुए हैं।

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बिना विज्ञापन या चयन प्रक्रिया के राज्य द्वारा नियोजित दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी छंटनी से सुरक्षा का दावा करने का हकदार नहीं: गुवाहाटी हाइकोर्ट

गुवाहाटी हाइकोर्ट के जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा की एकल पीठ ने रिट याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि कर्मचारी को कभी-कभार दैनिक वेतनभोगी के रूप में नियुक्त करने से पहले न तो कोई विज्ञापन जारी किया गया और न ही कोई चयन प्रक्रिया अपनाई गई। इसने आगे कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य है। इसलिए उसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार विज्ञापन और उचित चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्तियां करनी होंगी।

केस टाइटल: बिनॉय कुमार सिन्हा बनाम सहायक महाप्रबंधक प्रशासन भारतीय स्टेट बैंक और अन्य।

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विवाहित मुस्लिम व्यक्ति लिव-इन-रिलेशनशिप के अधिकार का दावा नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लाम में आस्था रखने वाला कोई व्यक्ति लिव-इन-रिलेशनशिप की प्रकृति में किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, खासकर जब उसके पास कानूनी जीवनसाथी हो।

जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव-प्रथम की खंडपीठ ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संवैधानिक संरक्षण इस तरह के अधिकार को अनियंत्रित समर्थन नहीं देगा, जब उपयोग और रीति-रिवाज उपरोक्त विवरण के दो व्यक्तियों के बीच इस तरह के रिश्ते पर रोक लगाते हैं।

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[BSF Rules 1969] नियम 22(2) का सहारा लेकर बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करने के सर्वोपरि महत्व पर जोर देते हुए विशेष रूप से सीमा सुरक्षा बल (BSF) से कर्मियों की बर्खास्तगी से संबंधित मामलों में जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने नियम 22(2) का सहारा लेने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करने की आवश्यकता को दोहराया।

BSF नियम का नियम 22(2) कदाचार के आधार पर अधिकारियों के अलावा अन्य कर्मियों की बर्खास्तगी या हटाने से संबंधित है। इस नियम के अनुसार सक्षम प्राधिकारी किसी व्यक्ति को सेवा से बर्खास्त या हटा सकता है, यदि वे संतुष्ट हैं कि सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा सुनवाई अनुचित या अव्यवहारिक है।

केस टाइटल- नसीर अहमद बनाम भारत संघ

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आरोपी के बरी होने के बाद पीएमएलए के तहत कोई कार्यवाही कायम नहीं रखी जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि विधेय अपराध में आरोपी के बरी होने के बाद धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत कोई कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है। जस्टिस विकास महाजन की पीठ ने कहा है कि पीएमएलए के तहत कुर्क की गई संपत्तियों को कानूनी तौर पर अपराध की आय के रूप में नहीं माना जा सकता है या उन्हें आपराधिक गतिविधि से प्राप्त संपत्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

मामले में याचिकाकर्ता, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत विशेष न्यायाधीश की ओर से पारित 9 अक्टूबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता/प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दायर शिकायत में कथित अपराधों के लिए उत्तरदाताओं/अभियुक्तों को आरोपमुक्त कर दिया गया था।

केस टाइटलः प्रवर्तन निदेशालय बनाम अखिलेश सिंह

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दूसरी शादी करना मुस्लिम पुरुष के लिए वैध हो सकता है, लेकिन यह पहली पत्नी के साथ बहुत बड़ी क्रूरता का कारण बनता है: पटना हाइकोर्ट

पटना हाइकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पुरुष के लिए दूसरी शादी करना वैध हो सकता है, लेकिन यह पहली पत्नी के साथ बहुत बड़ी क्रूरता का कारण बनता है। जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की बेंच ने आगे कहा कि यह सर्वविदित है कि महिलाएं, चाहे उनका धर्म और सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, अपने पति द्वारा दूसरी शादी करने से घृणा करती हैं।

ये टिप्पणियां सिंगल जज ने धारा 323, 498ए और 406/34 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दर्ज शिकायत मामले के संबंध में इरशाद कुरैशी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कीं है।

केस टाइटल - मोहम्मद इरशाद कुरैशी बनाम बिहार राज्य

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आरोपी के मोबाइल में केवल 'ओसामा बिन लादेन' या 'जिहाद प्रचार' सामग्री की तस्वीरें, उसे आईएसआईएस सदस्य के रूप में ब्रांड करने के लिए पर्याप्त नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यूएपीए मामले में एक आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि आरोपी के मोबाइल में "आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की तस्वीरें, जिहाद प्रचार और आईएसआईएस झंडे" जैसी आपत्तिजनक सामग्री पाई गई थी और वह कट्टरपंथी या मुस्लिम उपदेशक के भाषणों को सुन रहा था, उसे आईएसआईएस जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के सदस्य के रूप में ब्रांड करने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में इस प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री इंटरनेट पर स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और केवल इसे एक्सेस करना और डाउनलोड करना यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि आरोपी आईएसआईएस से जुड़ा था।

केस टाइटल: अम्मार अब्दुल रहीमन बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी

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रिटर्निंग अधिकारी द्वारा नामांकन खारिज करने के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं, चुनाव याचिका ही एकमात्र उपाय: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी उम्मीदवार के नामांकन को रिटर्निंग ऑफिसर ने अस्वीकार किया हो तो उसके खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं होगी और ऐसे उम्मीदवार के लिए उपाय चुनाव याचिका दायर करना है।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने वीएस मंजूनाथ की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया, जो एक कॉलेज में अतिथि व्याख्याता के रूप में पढ़ाते हैं। उन्होंने इलेक्‍शन रिटर्निंग ऑफिसर और चित्रदुर्ग (एससी), लोकायुक्त की ओर से 05.04.2024 को दायर आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनका नमांकन खारिज़ कर दिया गया था।

केस टाइटल: वी एस मंजूनाथ और मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य

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स्थायी लोक अदालत बीमा जैसे सार्वजनिक उपयोगिता सेवा विवादों का फैसला कर सकती है, जो किसी अपराध से संबंधित नहीं: झारखंड हाइकोर्ट

झारखंड हाइकोर्ट ने दोहराया कि स्थायी लोक अदालतों के पास बीमा दावों से संबंधित विवादों का निपटारा करने का अधिकार है।

इस मामले की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस नवनीत कुमार ने जोर देकर कहा, "स्थायी लोक अदालत को ऐसे विवाद का फैसला करने का अधिकार है, जो पक्षों के बीच सुलह समझौते से नहीं सुलझाया जा सका और विवाद किसी अपराध से संबंधित नहीं है। ऐसा अधिकार स्थायी लोक अदालत को सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे हवाई, सड़क या जलमार्ग से यात्री या माल की ढुलाई के लिए परिवहन सेवा, डाक, टेलीग्राफ या टेलीफोन सेवाएं, किसी प्रतिष्ठान द्वारा जनता को बिजली, प्रकाश या पानी की आपूर्ति, सार्वजनिक सफाई या स्वच्छता की व्यवस्था, अस्पताल या डिस्पेंसरी में सेवा, या बीमा सेवा आदि को तत्काल निपटाने की आवश्यकता है, जिससे लोगों को बिना देरी के न्याय मिल सके।''

केस टाइटल- अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी और अन्य बनाम किशा देवी और अन्य

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नाबालिगों को सिर्फ़ अच्छे और बुरे स्पर्श की पारंपरिक अवधारणाओं के बजाय 'वर्चुअल टच' के बारे में भी पढ़ाया जाना चाहिए: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि नाबालिगों को सिर्फ़ अच्छे और बुरे स्पर्श की पारंपरिक अवधारणाओं के बजाय 'वर्चुअल टच' के बारे में भी पढ़ाया जाना चाहिए। साथ ही कहा कि उभरती अवधारणा को उनके कोर्स में शामिल किया जाना चाहिए।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि नाबालिगों को ऑनलाइन बातचीत को सुरक्षित तरीके से करने और साइबरस्पेस में छिपे संभावित जोखिमों को पहचानने के लिए ज्ञान और उपकरणों से लैस किया जाना चाहिए।

केस टाइटल- कमलेश देवी बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी और अन्य।

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घरेलू जांच की वैधता पर न्यायाधिकरण के आदेश को अंतिम आदेश की प्रतीक्षा किए बिना चुनौती दी जा सकती है: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच के जस्टिस अरिंदम मुखर्जी शामिल ने CSB बैंक लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में एक रिट याचिका का फैसला करते हुए कहा है कि ट्रिब्यूनल के आदेश को अधिकार क्षेत्र से अधिक होने के आधार पर अंतिम आदेश की प्रतीक्षा किए बिना एक रिट याचिका में चुनौती दी जा सकती है।

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S.138 NI Act | यहां नकदीकरण के लिए जमा किए गए विदेशी चेक पर भारतीय न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जहां विदेशी चेक भारत में भुनाने के लिए जमा किया जाता है, उस न्यायालय को, जिसके अधिकार क्षेत्र में यह जमा किया गया, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत इसके अनादरण की शिकायत पर फैसला देने का अधिकार होगा।

मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस नवीन चावला ने कहा, “यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि NI Act की धारा 138 को देश के बढ़ते व्यवसाय, व्यापार, वाणिज्य और औद्योगिक गतिविधियों में वित्तीय वादों को विनियमित करने और वित्तीय में अधिक सतर्कता को बढ़ावा देने के लिए सख्त दायित्व के उद्देश्य से जोड़ा गया। मायने रखता है। इसका उद्देश्य देनदारियों के निपटान में चेक की स्वीकार्यता को बढ़ाना है। इस संबंध में भारतीय चेक या विदेशी चेक के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता है।

केस टाइटल: राइट चॉइस मार्केटिंग सॉल्यूशंस जेएलटी और अन्य बनाम राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य।

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यदि कर्मचारी औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा के बाद भी निरंतर सेवा साबित करता है तो उसे ग्रेच्युटी का भुगतान पाने का अधिकार: कलकत्ता हाइकोर्ट

कलकत्ता हाइकोर्ट के जस्टिस अरिंदम मुखर्जी की सिंगल बेंच ने माना कि औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा के बाद भी वह अपनी निरंतर सेवा के लिए ग्रेच्युटी का हकदार है। पीठ ने कहा कि ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए निरंतर सेवा की अवधि की स्थापना शर्त है और सबूत का भार कर्मचारी पर है।

केस टाइटल: एस.के. एकबाल @ एकबाल एस.के. बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद आवश्यक योग्यता में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाइकोर्ट

कलकत्ता हाइकोर्ट की जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी की सिंगल जज बेंच ने अनिमेष सिंह महापात्रा एवं अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि एक बार भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद भर्ती प्रक्रिया के दौरान आवश्यक योग्यता में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। विशेष रूप से जब तक कि विज्ञापन में या भर्ती को नियंत्रित करने वाले किसी नियम के तहत ऐसी शक्ति आरक्षित न हो।

केस टाइटल- अनिमेष सिंह महापात्रा और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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तृतीय श्रेणी पद पर कार्यरत कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभों से अतिरिक्त भुगतान के आधार पर कोई वसूली नहीं की जा सकती: मणिपुर हाइकोर्ट

मणिपुर हाइकोर्ट की जस्टिस अहंथम बिमोल सिंह की सिंगल जज बेंच ने डब्ल्यू मनीलीमा देवी बनाम मणिपुर राज्य एवं अन्य के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए माना कि तृतीय श्रेणी पद पर कार्यरत कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभों से अतिरिक्त भुगतान के आधार पर कोई वसूली नहीं की जा सकती।

केस टाइटल- डब्ल्यू. मनीलीमा देवी बनाम मणिपुर राज्य एवं अन्य

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कर्मचारी को उसकी पिछली सेवाओं के आधार पर पेंशन लाभ मिलना संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार: झारखंड हाइकोर्ट

झारखंड हाइकोर्ट की जस्टिस चंद्रशेखर ए.सी.जे. और जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने बिरसा कृषि यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील पर निर्णय देते हुए कहा कि किसी कर्मचारी को पेंशन लाभ देने से मना करना संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत उसके संवैधानिक अधिकार को छीनना है, क्योंकि कर्मचारी को पेंशन उसकी पिछली सेवाओं के आधार पर मिलती है।

केस टाइटल- बिरसा कृषि यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य

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ID Act जब गंभीर प्रकृति के आरोप साबित नहीं होते और सजा अनुपातहीन है तो श्रम न्यायालय को धारा 11ए लागू करने का अधिकार: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस मौना एम. भट्ट की एकल पीठ ने कहा कि जब गंभीर प्रकृति के आरोप साबित नहीं होते और प्रबंधन द्वारा दी गई सजा को अनुपातहीन माना जाता है तो श्रम न्यायालय को सजा में हस्तक्षेप करने के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 11ए लागू करने का अधिकार है।

केस टाइटल: एग्जीक्यूटिव इंजीनियर- उत्तर गुजरात विज कंपनी लिमिटेड बनाम पटेल रसिकभाई रंगाभाई और अन्य।

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