[BSF Rules 1969] नियम 22(2) का सहारा लेकर बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

9 May 2024 6:54 AM GMT

  • [BSF Rules 1969] नियम 22(2) का सहारा लेकर बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करने के सर्वोपरि महत्व पर जोर देते हुए विशेष रूप से सीमा सुरक्षा बल (BSF) से कर्मियों की बर्खास्तगी से संबंधित मामलों में जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने नियम 22(2) का सहारा लेने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करने की आवश्यकता को दोहराया।

    BSF नियम का नियम 22(2) कदाचार के आधार पर अधिकारियों के अलावा अन्य कर्मियों की बर्खास्तगी या हटाने से संबंधित है। इस नियम के अनुसार सक्षम प्राधिकारी किसी व्यक्ति को सेवा से बर्खास्त या हटा सकता है, यदि वे संतुष्ट हैं कि सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा सुनवाई अनुचित या अव्यवहारिक है।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह की संतुष्टि और कथित कदाचार की निष्पक्ष जांच के अभाव में उपरोक्त नियम का सहारा लेकर बर्खास्तगी आदेश BSF Act और प्राकृतिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों दोनों का उल्लंघन है।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    अदालत ने ये टिप्पणियां नसीर अहमद की बर्खास्तगी से निकले मामले में की है, जिन्होंने 4 फरवरी 2008 के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में उचित प्रक्रिया के बिना उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।

    वहीं वकील सोफी मंजूर द्वारा विशेष रूप से उचित कारण बताओ नोटिस प्राप्त न होने और निष्पक्ष सुनवाई के अभाव का हवाला देते हुए नसीर अहमद ने प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि प्रतिवादियों को 1968 के अधिनियम की धारा 19 के तहत शक्ति का प्रयोग करना चाहिए था। विशेष रूप से 1969 के अधिनियम की धारा 19 (b) के संदर्भ में, जो पर्याप्त कारण के बिना छुट्टी से अधिक समय तक रहने के विषय से संबंधित है।

    उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 19 का सहारा लिए बिना प्रतिवादी 1969 के नियम 22 के तहत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते, जो कदाचार के कारण अधिकारी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को बर्खास्त या हटाने से संबंधित है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व करते हुए हकीम अमन अली वकील ने तर्क दिया कि अहमद को अर्जित अवकाश दिया गया, लेकिन इसकी समाप्ति के बाद वह ड्यूटी पर वापस नहीं आया, जिसके कारण उसे बर्खास्त कर दिया गया। प्रतिवादियों ने कहा कि कारण बताओ नोटिस जारी करने और कोर्ट ऑफ इंक्वायरी शुरू करने सहित सभी अपेक्षित प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया गया।

    न्यायालय की टिप्पणियां:

    वर्तमान मामले के रिकॉर्ड की जांच करते हुए जस्टिस नरगल ने पाया कि नसीर अहमद को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में आवश्यक दस्तावेजों का अभाव है और बचाव के लिए उचित अवसर प्रदान करने में विफल रहा इस प्रकार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।

    पीठ ने दर्ज किया,

    "कारण बताओ नोटिस और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के अवलोकन से पता चलता है कि कारण बताओ नोटिस के साथ कोई अन्य दस्तावेज (कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की कार्यवाही की प्रतियां और अन्य संबंधित दस्तावेज) संलग्न नहीं किए गए, जिन्हें याचिकाकर्ता को सौंपा गया, यह वास्तव में याचिकाकर्ता के नुकसान के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।"

    ऐसे मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे की जांच करते हुए अदालत ने बीएसएफ नियमों के नियम 22(2) के प्रावधानों पर प्रकाश डाला जो कदाचार के आधार पर बर्खास्तगी की अनुमति देता है बशर्ते सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट हो कि सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा परीक्षण अव्यवहारिक या अनुचित है।

    जस्टिस नरगल ने जोर देकर कहा कि सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा मानक जांच के बजाय प्रशासनिक कार्रवाई का सहारा लेना असाधारण उपाय है। इसलिए यह अधिकारियों पर अपने फैसले को सावधानीपूर्वक लागू करने और नियमों द्वारा अनिवार्य रूप से अपनी संतुष्टि को उचित रूप से दस्तावेज करने का दायित्व डालता है।

    अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि मामले पर गहन विचार-विमर्श के बाद ऐसी संतुष्टि दर्ज करने की प्रक्रिया न केवल स्पष्ट होनी चाहिए, बल्कि रिकॉर्ड में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होनी चाहिए। अजायब सिंह बनाम भारत संघ और जितेन्द्र सिंह बनाम भारत संघ जैसे उदाहरणों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, जिसमें नियम 22(2) का सहारा लेने से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा संतुष्टि दर्ज करने की आवश्यकता दोहराई गई।

    बेंच ने कहा,

    “वर्तमान मामले में उक्त नियम के तहत अपेक्षित ऐसी कोई संतुष्टि प्रतिवादियों द्वारा या तो विवादित आदेश या कारण बताओ नोटिस में दर्ज नहीं की गई। यह केवल संतुष्टि है, जिस पर प्रतिवादियों को उक्त नियम के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय पहुंचना है।”

    इसके अलावा अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के कथित कदाचार को प्रमाणित करने के लिए जांच की जानी चाहिए, जिसके दौरान याचिकाकर्ता सभी प्रासंगिक सामग्री और दस्तावेज प्राप्त करने और सुनवाई का अवसर पाने का हकदार है।

    पीठ ने तर्क देते हुए कहा,

    "रिकॉर्ड के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के कथित कदाचार के बारे में प्रतिवादियों द्वारा कोई जांच नहीं की गई, जो कि नियमों के नियम 22(2) के तहत अनिवार्य है। इसलिए प्रतिवादी किसी भी तरह से याचिकाकर्ता के छुट्टी के दौरान अधिक समय तक रहने को धारा 19 के तहत मुकदमा चलाए बिना या नियम 22(2) के तहत जांच किए बिना कदाचार नहीं मान सकते।"

    ऐसी संतुष्टि और कथित कदाचार की निष्पक्ष जांच के अभाव में अदालत ने बर्खास्तगी के आदेश को सीमा सुरक्षा बल अधिनियम और प्राकृतिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों दोनों का उल्लंघन माना।

    इन टिप्पणियों के मद्देनजर अदालत ने बर्खास्तगी के विवादित आदेश रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता को सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।

    हालांकि अदालत ने प्रतिवादियों को उचित जांच करने की स्वतंत्रता भी दी, यदि वे इसे आवश्यक समझते हैं, जबकि याचिकाकर्ता के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को सुनिश्चित किया।

    केस टाइटल- नसीर अहमद बनाम भारत संघ

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