अनुचित, दागी जांच: राजस्थान हाईकोर्ट ने 22 वर्षीय युवक की हत्या का मामला CBI को सौंपा

Update: 2024-08-16 08:44 GMT

बाजरी (रेत) माफिया से जुड़े हत्या के मामले की सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने यह देखते हुए मामला CBI को सौंप दिया कि राज्य पुलिस और CID ​​द्वारा की गई जांच इतनी "अनुचित, दागी और अधूरी" थी कि इसने न्यायालय की "न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया।"

जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ आईपीसी और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में दो व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह मामला "हाशिये पर पड़े एससी/एसटी समुदाय" से ताल्लुक रखने वाले 22 वर्षीय युवक की हत्या से जुड़ा था। कथित तौर पर रेत माफिया ने अपने हितों की रक्षा करने और बजरी को गुप्त रूप से हटाने से रोकने के लिए "समाज में एक उदाहरण स्थापित करने" के लिए उसकी हत्या की थी।

दोनों पक्षकारों की दलीलें सुनने के दौरान न्यायालय ने मामले की जांच में कई विसंगतियों के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों के आचरण पर भी गौर किया। न्यायालय ने कहा कि मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर पर 14 चोटें पाई गई, जिनमें से गर्दन पर लगी चोट को सबसे गंभीर और उसकी मौत का मुख्य कारण माना गया। इनमें से कुछ चोटें न केवल भयानक थीं, बल्कि मृतक के गुप्तांग और जीभ काटने सहित कई जख्म बेहद क्रूर भी थे। इसके बावजूद राज्य के अधिकारियों की चिकित्सा राय में मौत के कारण के बारे में काफी विरोधाभास था, जिसमें मृतक के अत्यधिक नशे में होने के कारण उसकी खुद की उल्टी के कारण उसकी सांस की नली बंद हो गई। इसके अलावा, राज्य के मेडिकल एक्सपर्ट्स ने सभी चोटों को साधारण बताया।

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि राज्य/पुलिस अधिकारियों ने पीड़ित के अधिकारों पर SC/ST Act के तहत किसी भी प्रावधान का पालन नहीं किया, जिसके तहत तत्काल एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। इसके विपरीत एफआईआर 3 दिन की देरी से दर्ज की गई, वह भी केवल एमपी/एमएलए के दबाव के कारण; इस तरह की देरी से महत्वपूर्ण साक्ष्यों और गवाहों के साथ गंभीर बाधा उत्पन्न हुई।

अदालत ने कहा,

इसके अलावा, एफआईआर में पट्टाधारकों और/या बजरी माफिया के खिलाफ विशिष्ट आरोप होने के बावजूद, इन व्यक्तियों के खिलाफ कोई आरोप-पत्र दायर नहीं किया गया, जिससे उन्हें संरक्षण मिला।

मृतक के परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि अपराध के दिन से ही उन पर धमकी या मौद्रिक रिश्वत के माध्यम से समझौता करने के लिए दबाव डाला जा रहा था।

इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में अदालत ने राय दी कि मामले को नए सिरे से जांच के लिए CBI को सौंप दिया जाना चाहिए और कहा,

"इसलिए वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में और ऊपर उल्लिखित पूर्वगामी शर्तों और/या विचारों पर ध्यान देने के बाद यह अदालत इस तथ्य पर ध्यान देने से नहीं बच सकती है कि कथित अपराध में की गई जांच अनुचित, दूषित और अधूरी रही है, जिसने इस अदालत की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया। इसलिए वर्तमान मामले को जांच के लिए CBI को भेजते हुए यह न्यायालय यह दोहराना उचित समझता है कि पुलिस अधिकारियों और सीआईडी ​​(सीबी) द्वारा अब तक की गई जांच पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि यह निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।”

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के संवेदनशील मामले में जहां कथित तौर पर हाशिए पर पड़े समुदायों के खिलाफ अपराध किए गए, जांच अधिकारी सीआरपीसी और SC/ST Act के अनुसार "निष्पक्ष जांच के सिद्धांतों को बनाए रखने में अपने कार्य में बुरी तरह विफल रहे हैं", जिसमें संज्ञेय अपराध की जानकारी होने के बावजूद, समय पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई, लॉग-बुक नहीं रखी गई और रोजनामचा तैयार नहीं किया गया।

अभियुक्तों की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि मामले को CBI को सौंपने के लिए न्यायालय को दी गई असाधारण शक्ति का प्रयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। इसे यांत्रिक या नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता।

वकील की दलीलों को खारिज करते हुए न्यायालय ने विनय त्यागी बनाम इरशाद अली के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि न्यायालय नए सिरे से और आगे की जांच का निर्देश दे सकता है, जहां ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अपने आप में अनुचित, दागी, दुर्भावनापूर्ण है। इसमें गड़बड़ी की बू आ रही है। ऐसी स्थिति में जांच को अलग रखा जाना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो किसी अन्य स्वतंत्र जांच एजेंसी द्वारा भी नई या नए सिरे से जांच का निर्देश दिया जाना चाहिए।

केस टाइटल: अभिषेक एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

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