COVID-19 की इंटर्नशिप के आधार पर बोनस अंकों की मांग वाली याचिका राजस्थान हाईकोर्ट ने की खारिज

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Update: 2025-04-07 11:17 GMT
COVID-19 की इंटर्नशिप के आधार पर बोनस अंकों की मांग वाली याचिका राजस्थान हाईकोर्ट ने की खारिज

राजस्थान हाईकोर्ट ने जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (GNM) डिप्लोमा कोर्स कर रहे विभिन्न छात्रों द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान की गई इंटर्नशिप के आधार पर नर्सिंग ऑफिसर पद पर नियुक्ति के लिए कोविड हेल्थ असिस्टेंट (CHA) को दिए गए बोनस अंकों का लाभ मांगा था।

जस्टिस अरुण मोंगा ने अपने निर्णय में कहा कि इंटर्नशिप, जिस बिना पर डिप्लोमा प्रदान नहीं किया जा सकता, शैक्षणिक पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए इसे रोजगार नहीं माना जा सकता, बल्कि यह छात्रावस्था की निरंतरता का हिस्सा है। इस आधार पर याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकते कि वे रोजगार में थे और उन्हें बोनस अंकों का लाभ मिलना चाहिए।

कोर्ट ने कहा, "जब याचिकाकर्ताओं के वकील से यह स्पष्ट रूप से पूछा गया कि क्या बिना इंटर्नशिप पूरी किए डिप्लोमा प्रदान किया जा सकता है, तो उत्तर नकारात्मक था। इससे यह स्पष्ट होता है कि इंटर्नशिप डिप्लोमा पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा है और इसे रोजगार नहीं कहा जा सकता। इसी आधार पर याचिकाकर्ता बोनस अंकों के पात्र नहीं हैं और यह याचिका खारिज की जाती है।"

अदालत ने आगे उल्लेख किया कि इस मामले से संबंधित एक समान विवाद को लेकर प्रमिला एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2023) में इसी न्यायालय की एक समन्वय पीठ पहले ही निर्णय दे चुकी है, जिसमें याचिकाकर्ताओं की ही तरह की स्थिति वाले व्यक्तियों के दावे को खारिज कर दिया गया था।

कोविड-19 महामारी के दौरान चिकित्सा स्टाफ की कमी के चलते जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (GNM) कोर्स कर रहे याचिकाकर्ताओं की सेवाएं राज्य सरकार द्वारा ली गई थीं। इसी दौरान राज्य ने सर्वेक्षण कराने और दवाएं वितरित करने के लिए कोविड हेल्थ असिस्टेंट्स (CHA) की भी नियुक्ति की थी।

जब नर्सिंग ऑफिसर पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया, तब एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि महामारी के दौरान सेवाएं देने वाले CHAs को बोनस अंक प्रदान किए जाएं, जिसे राज्य सरकार ने मान लिया। इसी प्रकार के बोनस अंक याचिकाकर्ताओं द्वारा भी मांगे गए, लेकिन उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया गया, जिससे यह याचिका दायर की गई।

राज्य की ओर से यह दलील दी गई कि CHA पद, जिससे याचिकाकर्ता कार्य और कर्तव्यों के आधार पर समानता का दावा कर रहे हैं, के लिए GNM डिग्री और राजस्थान नर्सिंग काउंसिल में पंजीकरण आवश्यक था। जबकि याचिकाकर्ता उस समय तक केवल GNM कोर्स कर रहे थे और उनके पास आवश्यक व्यावसायिक योग्यता नहीं थी।

"कार्यालय आदेश दिनांक 25.04.2023 के अनुसार, जो बोनस अंक देने की पात्रता की शर्तें बताता है, याचिकाकर्ता इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते। न तो उन्हें अनुबंध पर नियुक्त किया गया था, न ही अस्थायी आधार पर, इसलिए वे 'कार्मिक' की परिभाषा में नहीं आते, जिन्हें बोनस अंक दिए जाने हैं।"

नतीजतन, न्यायालय ने याचिका खाअदालत ने आगे उल्लेख किया कि इस मामले से संबंधित एक समान विवाद को लेकर प्रमिला एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2023) में इसी न्यायालय की एक समन्वय पीठ पहले ही निर्णय दे चुकी है, जिसमें याचिकाकर्ताओं की ही तरह की स्थिति वाले व्यक्तियों के दावे को खारिज कर दिया गया था।

कोविड-19 महामारी के दौरान चिकित्सा स्टाफ की कमी के चलते जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (GNM) कोर्स कर रहे याचिकाकर्ताओं की सेवाएं राज्य सरकार द्वारा ली गई थीं। इसी दौरान राज्य ने सर्वेक्षण कराने और दवाएं वितरित करने के लिए कोविड हेल्थ असिस्टेंट्स (CHA) की भी नियुक्ति की थी।

जब नर्सिंग ऑफिसर पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया, तब एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि महामारी के दौरान सेवाएं देने वाले CHAs को बोनस अंक प्रदान किए जाएं, जिसे राज्य सरकार ने मान लिया। इसी प्रकार के बोनस अंक याचिकाकर्ताओं द्वारा भी मांगे गए, लेकिन उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया गया, जिससे यह याचिका दायर की गई।

राज्य की ओर से यह दलील दी गई कि CHA पद, जिससे याचिकाकर्ता कार्य और कर्तव्यों के आधार पर समानता का दावा कर रहे हैं, के लिए GNM डिग्री और राजस्थान नर्सिंग काउंसिल में पंजीकरण आवश्यक था। जबकि याचिकाकर्ता उस समय तक केवल GNM कोर्स कर रहे थे और उनके पास आवश्यक व्यावसायिक योग्यता नहीं थी।

"कार्यालय आदेश दिनांक 25.04.2023 के अनुसार, जो बोनस अंक देने की पात्रता की शर्तें बताता है, याचिकाकर्ता इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते। न तो उन्हें अनुबंध पर नियुक्त किया गया था, न ही अस्थायी आधार पर, इसलिए वे 'कार्मिक' की परिभाषा में नहीं आते, जिन्हें बोनस अंक दिए जाने हैं।"

नतीजतन, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। 

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