विभागीय मामलों को लापरवाही से संभालने वाले प्रभारी अधिकारी: राजस्थान हाईकोर्ट ने सुधारात्मक उपाय सुझाए, दोषी अधिकारियों पर लागत थोपने की चेतावनी दी

राजस्थान हाईकोर्ट ने विभिन्न विभागों के प्रभारी अधिकारियों द्वारा सरकारी वकीलों को मूल केस फाइल उपलब्ध न कराने की निंदनीय लापरवाही और ढिलाईपूर्ण रवैये पर पीड़ा व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और वादियों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता।
इस पर कोर्ट ने महत्वपूर्ण सुधारात्मक निर्देश जारी किए, यह देखते हुए कि प्रभारी अधिकारियों द्वारा मामलों को गंभीरता और तात्कालिकता के साथ नहीं लिया जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि विभागों के बीच बेहतर समन्वय, सतत प्रशिक्षण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी तकनीकों के उपयोग से इसमें सुधार संभव है।
इसलिए राज्य सरकार के विभिन्न अधिकारियों को नोटिस जारी कर यह निर्देश दिया गया कि प्रभारी अधिकारी समय-समय पर सौंपे गए कार्यों को गंभीरता से निभाएं ताकि अनावश्यक देरी न हो। यदि विभाग न्यायालय को पर्याप्त सहायता प्रदान नहीं करते हैं तो ऐसे मामलों में लागत आरोपित की जाएगी जो दोषी अधिकारी की जेब से वसूली जाएगी, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन हो।
जस्टिस अनुप कुमार ढ़ांड ने आदेश में कहा कि 20 वर्ष पहले शुरू किए गए लाइट्स (LITES) पोर्टल के बावजूद अब तक सरकारी वकीलों को कोर्ट में पेशी के दौरान सहयोग देने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए।
उन्होंने कहा,
"मामलों की निगरानी का कार्य संभाल रहे अधिकारियों की जिम्मेदारी को बेहतर रोल डिफिनिशन, विभागों के बीच समन्वय, सतत प्रशिक्षण और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। AI, डेटा एनालिटिक्स और ऑटोमेटेड सिस्टम के उपयोग से मामलों की प्रगति की निगरानी आसान होगी और देरी कम होगी। साथ ही जो अधिकारी कार्य कुशलता से संभालते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करना जवाबदेही की भावना और केस मैनेजमेंट को गति देगा।"
यह टिप्पणियां न्यायालय ने एक 2016 के मामले की सुनवाई के दौरान कीं, जिसमें संबंधित अधिकारी ने केस फाइल विभागीय वकील को नहीं सौंपी थी।
न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कई प्रभारी अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से अनजान हैं। इसलिए मामलों को लापरवाहीपूर्वक संभाल रहे हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा,
"सरकारी परिवर्तन के चलते विभागीय वकील बार-बार बदले जाते है यह हैरानी की बात है कि विभागवार लंबित मामलों की कोई सूची संबंधित वकीलों को नहीं दी जाती, जिससे वे यह भी नहीं जान पाते कि उनके विभाग के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं।"
कोर्ट ने यह भी बताया कि राज्य सरकार ने हालात सुधारने के लिए कई प्रयास किए, जैसे 2005 में न्याय विभाग की स्थापना LITES पोर्टल नियमित समीक्षा बैठकें इत्यादि।
इस संदर्भ में कोर्ट ने निम्नलिखित सुधारात्मक उपाय सुझाए:
1. मामलों को संभाल रहे अधिकारियों के लिए नियमित परफॉर्मेंस मूल्यांकन प्रणाली लागू करना।
2. देरी और लापरवाही के लिए स्पष्ट जवाबदेही तय करना और दंड का प्रावधान।
3. विभागों और कानूनी मामलों से संबंधित विभागों के बीच नियमित समन्वय बैठकें।
4. कानूनी प्रक्रिया की बेहतर समझ के लिए विभागीय अधिकारियों का प्रशिक्षण।
5. केस मैनेजमेंट रणनीतियों और तकनीकी उपयोग के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण।
6. कानून के विशेष क्षेत्रों में कार्यशालाओं का आयोजन।
7. केस ट्रैकिंग के लिए रियल-टाइम सॉफ्टवेयर का विकास।
8. AI आधारित केस सॉर्टिंग प्रणाली, प्राथमिकता निर्धारण हेतु।
9. दस्तावेजों का ऑटोमेटेड फाइलिंग और साझा करना।
10. विशिष्ट मामलों में विशेषज्ञ वकीलों/लॉ फर्मों की नियुक्ति।
11. केस डिले का डेटा एनालिसिस और वर्कलोड प्रेडिक्शन।
12. एक रीयल टाइम मॉनिटरिंग डैशबोर्ड की स्थापना।
13. कार्यकुशल अधिकारियों को पुरस्कार, पदोन्नति या अन्य सम्मान देना।
14. एक केंद्रीय केस ओवरसाइट यूनिट की स्थापना।
अंततः कोर्ट ने सभी विभागों और प्रभारी अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एक माह के भीतर अपने वकीलों को लंबित मामलों की सूची सौंपें।
कोर्ट ने चेतावनी दी कि आदेश की अनदेखी या अनुपालन न करना गंभीरता से लिया जाएगा। अगली सुनवाई 15 अप्रैल को तय की गई है ताकि अनुपालन की जांच की जा सके।
केस टाइटल: बद्री नारायण शर्मा बनाम राज्य राजस्थान व अन्य