NDPS Act की धारा 52ए का पालन न करना प्रथम दृष्टया तलाशी और जब्ती को गलत साबित करता है: राजस्थान हाईकोर्ट ने कथित तौर पर आधा किलो हेरोइन के साथ पाए गए व्यक्ति को जमानत दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) की धारा 52ए अनिवार्य प्रकृति की है और प्रावधान का पालन न करना अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करता है और पूरी तलाशी और जब्ती कार्यवाही को गलत साबित करता है।
जस्टिस राजेंद्र प्रकाश सोनी की पीठ ने कथित तौर पर 510 ग्राम हेरोइन के कब्जे में पाए गए व्यक्ति को जमानत दे दी।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में धारा 37 के तहत जमानत देने पर कठोरता लागू नहीं होती है, क्योंकि आरोपी-आवेदक के पास अभियोजन पक्ष से सवाल करने के लिए पर्याप्त आधार उपलब्ध हैं।
आगे कहा गया,
"चालान के कागजात और प्रस्तुत साक्ष्यों से प्रथम दृष्टया अधिनियम की धारा 52ए का अनुपालन तथा सक्षम और प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जब्ती को उसकी वास्तविक भावना के अनुरूप नहीं दर्शाया गया। ऐसी स्थिति में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभियोजन पक्ष की ओर से उचित स्पष्टीकरण के अभाव में यह प्रथम दृष्टया अभियोजन पक्ष के मामले को काफी कमजोर करता है और इस प्रकार, संपूर्ण तलाशी और जब्ती कार्यवाही प्रथम दृष्टया दोषपूर्ण है।"
कोर्ट ने कहा कि धारा 52ए जब्ती के बाद मादक पदार्थों के सुरक्षित निपटान का प्रावधान करती है। जब्त की गई मात्रा का निपटान करने से पहले, प्रभारी अधिकारी को इसकी सूची तैयार करनी होती है। इसके बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष निम्नलिखित के लिए आवेदन करना होता है: i) सूची की सत्यता प्रमाणित करना; ii) मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पदार्थों की तस्वीरें लेना; iii) मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पदार्थों के प्रतिनिधि नमूने लेना। इसके बाद, तैयार की गई सूची, तस्वीरें और नमूनों की सूची को अधिनियम के तहत विचाराधीन किसी भी अपराध के संबंध में प्राथमिक साक्ष्य माना जाता है।
मामले के अभिलेखों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने धारा 52ए के तहत प्रक्रिया का अनुपालन करने में जब्ती अधिकारी की ओर से विफलता को उजागर किया। इसने मांगी लाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि धारा 52ए अनिवार्य है और गैर-अनुपालन की स्थिति में सूची, सैंपल और तस्वीरें प्राथमिक साक्ष्य के रूप में नहीं मानी जाएंगी।
न्यायालय ने मोहम्मद खालिद बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का भी उल्लेख किया, जहां यह देखा गया कि चूंकि सूची तैयार करने और सैंपल लेने में धारा 52ए का पालन नहीं किया गया, इसलिए एफएसएल रिपोर्ट को साक्ष्य में नहीं पढ़ा जा सकता।
इस विश्लेषण के आधार पर न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि चूंकि धारा 52ए का अनुपालन नहीं किया गया, इसलिए इसने अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया और तलाशी और जब्ती की कार्यवाही को प्रभावित किया। न्यायालय ने यह भी देखा कि चूंकि आवेदक अधिनियम के तहत किसी अन्य मुकदमे में शामिल नहीं था और वर्तमान मामले में मुकदमे में काफी समय लगेगा, इसलिए उसे अनिश्चित काल के लिए हिरासत में रखने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
तदनुसार, जमानत आवेदन स्वीकार कर लिया गया।
केस टाइटल: अमजद खान बनाम राजस्थान राज्य