38 साल के बेदाग रिकॉर्ड वाले कांस्टेबल को जाली मार्कशीट जमा करने के लिए सेवा से हटाया जाना अनुपातहीन: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-11-21 06:48 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने कांस्टेबल के खिलाफ सेवा से हटाने की सजा खारिज की, जिस पर सेवा में प्रवेश के समय जाली मार्कशीट जमा करने का आरोप लगाया गया यह फैसला देते हुए कि याचिकाकर्ता के 38 साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड और कदाचार की प्रकृति को देखते हुए सजा अनुपातहीन और अत्यधिक थी।

जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ पुलिस अधीक्षक भ्रष्टाचार निरोधक बोर्ड (ACB) के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही, जिसमें याचिकाकर्ता को सेवा से हटाने और रिटायरमेंट की वास्तविक तिथि के बाद उसे दिए गए वेतन और भत्ते की वसूली का दंड लगाया गया था।

याचिकाकर्ता को 1982 में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किया गया और 2013 में उसे सेवा में प्रवेश करते समय जाली मार्कशीट प्रस्तुत करने के आरोप के साथ आरोप पत्र दिया गया। बाद में 2020 में चुनौती दी गई सजा दी गई थी।

याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को दी गई सजा उसके द्वारा किए गए कदाचार के अनुपात में नहीं थी। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता विभाग में सबसे निचले पद पर कार्यरत था और पूरे सेवाकाल में उसे कोई सजा नहीं दी गई। यह प्रार्थना की गई कि बेदाग सेवा रिकॉर्ड के कारण उसकी सजा को उचित रूप से कम किया जाए।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत तर्कों से सहमति जताते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता ने इतने लंबे समय तक विभाग में अत्यंत उत्साह के साथ काम किया। इसलिए यह माना गया कि उसे दी गई सजा अनुपातहीन, अत्यधिक और उसके द्वारा किए गए कदाचार के अनुरूप नहीं थी।

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सेवा से हटाने की सीमा तक सजा का आदेश खारिज कर दिया, जबकि सजा के दूसरे हिस्से को बरकरार रखा, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता को रिटायरमेंट की वास्तविक तिथि के बाद वेतन और भत्ते की पूरी राशि सरकारी खजाने में जमा करने का निर्देश दिया गया।

इसके अनुसार याचिकाकर्ता को अन्य सभी सेवा लाभों का हकदार माना गया और रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया।

केस टाइटल: पृथ्वी राज बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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