सेंथिल बालाजी ने PMLA कार्यवाही से उन्हें मुक्त करने से ट्रायल कोर्ट के इनकार के खिलाफ पुनर्विचार याचिका वापस ली
तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी जो नौकरी के लिए पैसे लेने के मामले में जून 2023 से ईडी की हिरासत में हैं। उन्होंने कार्यवाही से उन्हें मुक्त करने से इनकार करने वाले स्पेशल जज के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी पुनर्विचार याचिका वापस ले ली।
बालाजी के वकील ने जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगनम की पीठ से कहा कि PMLA मामले में मुकदमा पहले ही शुरू हो चुका है और गवाहों की जांच भी शुरू हो चुकी है, इसलिए वह पुनर्विचार याचिका वापस लेना चाहते हैं। अदालत ने दलील पर गौर किया और मामले को वापस लिया हुआ मानते हुए खारिज कर दिया।
अदालत ने कहा,
"अदालत के संज्ञान में लाया गया कि आरोप 8/8/24 को तय किए गए और पीडब्लू 1 की 16/8/24 को जांच की गई। क्रॉस एग्जामिनेशन जारी है। वकील ने कहा कि मुकदमा शुरू हो चुका है, इसलिए वे याचिका को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने इस आशय का समर्थन भी किया है। समर्थन और प्रस्तुतिकरण के मद्देनजर मामले को वापस ले लिया गया।"
बालाजी ने चेन्नई में प्रधान सेशन कोर्ट जो PMLA मामलों के लिए स्पेशल कोर्ट है, द्वारा कैलेंडर मामले से उन्हें बरी करने से इनकार करने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बालाजी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि ED द्वारा दर्ज ECIR तुच्छ और योग्यता से रहित थी। उन्होंने कहा कि शिकायत में वास्तविक तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया और बालाजी के खिलाफ अपराध के लिए कोई आधार नहीं था। उन्होंने बताया कि भले ही जांच के दौरान दिए गए सभी बयानों को एक साथ पढ़ा जाए लेकिन बालाजी के खिलाफ कोई भी आरोप लगाने वाला नहीं था और न ही वह कथित अपराध में सीधे तौर पर शामिल था।
बालाजी ने ED पर PMLA के तहत दोष तय करने के लिए उनके खिलाफ दस्तावेज बनाने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया। इस प्रकार उन्होंने तर्क दिया कि ED द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य दूषित, हेरफेर किए गए, लगाए गए और PMLA के साथ आगे बढ़ने के लिए उनका कोई प्रथम दृष्टया मूल्य नहीं था। ED ने हालांकि इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि बालाजी के खिलाफ सबूतों की भरमार है। ED ने यह भी तर्क दिया कि बालाजी द्वारा उठाए गए तर्कों को उस स्तर पर नहीं उठाया जा सकता, उन पर विचार नहीं किया जा सकता और उन्हें खारिज किया जाना चाहिए।
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि CPC की धारा 227 के तहत किसी व्यक्ति को बरी करने के लिए अदालत को यह संतुष्ट होना चाहिए कि शिकायत में अपर्याप्त तथ्य और सबूत हैं, कि मामले के भौतिक तथ्यों को निर्धारित करना संभव नहीं है कि आरोपी के खिलाफ आरोप गलत और निराधार हैं शिकायतकर्ता कोई गवाह पेश करने में विफल रहा है। हालांकि बालाजी के मामले में अदालत ने कहा कि इनमें से कोई भी आधार मौजूद नहीं था।
न्यायालय ने कहा कि आरोप तय करने के समय न्यायालय को साक्ष्यों को गहराई से देखने की आवश्यकता नहीं थी बल्कि केवल प्रथम दृष्टया साक्ष्यों से संतुष्ट होना था। साक्ष्यों को देखते हुए न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
अपनी पुनर्विचार याचिका में बालाजी ने तर्क दिया कि ट्रायल जज ने यह मान कर गलती की है कि आरोप तय करने के चरण में आधार नहीं उठाए जा सकते। उन्होंने बताया कि आरोप तय करने के चरण में ट्रायल कोर्ट को मामले की व्यापक संभावनाओं पर विचार करना था। इसलिए उन्होंने ट्रायल कोर्ट के आदेश में संशोधन की मांग की। हालांकि, अब यह याचिका वापस ली गई।
केस टाइटल- वी सेंथिल बालाजी बनाम उप निदेशक