सिंहस्थ टेरर अलार्म: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खुद को मुस्लिम बताने और छात्रावास में विस्फोटक रखने के दोषी व्यक्ति को राहत देने से इनकार किया

Update: 2024-04-29 10:53 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2016 में उज्जैन ‌में एक हॉस्टल के कमरे में विस्फोटक रखने के दोषी सुशील मिश्रा की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने तर्क दिया कि दोषी की संलिप्तता स्थापित करने के लिए परीक्षण पहचान परेड पर्याप्त थी।

अदालत के कहा, चूंकि अपीलकर्ता ने छात्रावास में कमरा फर्जी मुस्लिम पहचान पत्र का उपयोग करके लिया था। ताकि सिंहस्थ मेले में मुस्लिम संगठन की भागीदारी दिखाकर उज्‍जैन में सांप्रदायिक अशांति पैदा की जा सके। जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की सिंगल जज बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा अपराध को उस छात्रावास के केयर टेकर और मैनेजर द्वारा की गई पहचान के माध्यम से स्थापित किया गया था, जहां विस्फोटक पाए गए थे।

इंदौर स्थित पीठ ने आपराधिक अपील में सजा के निलंबन की मांग को खारिज करते हुए कहा, “…उज्जैन में सिंहस्थ के अवसर पर एक मुस्लिम व्यक्ति की फर्जी पहचान बनाकर और उर्दू कागजातों के जर‌िए मुस्लिम संगठन की संलिप्तता दिखाने के लिए सांप्रदायिक अशांति पैदा करने के अपराध की गंभीर प्रकृति को देखते हुए, इस न्यायालय को जेल की सज़ा को निलंबित करने कोई मामला नहीं दिखता।”

अदालत ने यह भी कहा कि नायब तहसीलदार की मौजूदगी में पहचान परेड सही ढंग से आयोजित की गई थी। अपीलकर्ता को पहले आईपीसी की धारा 419, 467, 471, और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 5 के तहत दोषी ठहराया गया था और जुर्माने के साथ क्रमशः 1,5,5,5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

अभियोजन पक्ष के बयान के अनुसार, 18.03.2016 को जाली आधार कार्ड, जिस पर 'सजिश खान' नाम लिखा गया था, को दिखाकर एक व्यक्ति ने उज्जैन में अतिशय शिवलेख छात्रावास में प्रवेश किया और चेक-इन किया। उस समय उसके पास एक काला बैग था। अगले दिन भी वह परिसर में नजर नहीं आया। हॉस्टल के मैनेजर की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक पुलिस बम डिटेक्शन एंड डिस्पोजल स्क्वॉड के साथ कमरे में दाखिल हुई। उन्होंने बैग खोला तो उसमें इलेक्ट्रॉनिक सर्किट और उर्दू नोट्स के साथ कई विस्फोटक मिले।

जब्त विस्फोटक पदार्थ को एफएसएल भेजा गया और एफएसएल रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई। साइबर सेल की मदद से सुशील (पहला आरोपी) और आशीष सिंह (सह-आरोपी) के बीच कॉल डिटेल भी उपलब्ध कराई गई। अभियोजन पक्ष ने कहा था कि आशीष, जो उस समय लोकायुक्त कार्यालय में कार्यरत था, ने सुशील के साथ मिलकर छात्रावास में विस्फोटकों का बैग रखने की साजिश रची।

जांच टीम को यह भी पता चला कि आशीष ने आधार कार्ड को अपने मोबाइल से ही एडिट किया था. संपादित संस्करण बाद में कथित अपराध को अंजाम देने के लिए पहले आरोपी को भेजा गया था। इस जाली आधार कार्ड का इस्तेमाल कथित तौर पर पहले आरोपी द्वारा नया सिम कार्ड खरीदने के लिए भी किया गया था।

जांच के दरमियान ही पहले आरोपी सुशील को गिरफ्तार किया गया, जिसने हॉस्टल में चेक-इन करने से पहले खुद को एक मुस्लिम व्यक्ति होने का नाटक किया था। इसके बाद सह-आरोपी आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी हुई। मुकदमे के समय, अभियुक्त ने बचाव में कहा कि कोई सीसीटीवी फुटेज पेश नहीं किया गया, जो अभियोजन मामले के खिलाफ आशंका पैदा करता है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट साथ ही हाईकोर्ट, इस तरह के रुख से असहमत थे।

कोर्ट ने सुशील की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए कहा, “...पीडब्ल्यू नंबर 1 राधेश्याम के बयान में कहा गया कि ...सीसीटीवी स्थापित है। हालांकि, उक्त गवाह ने यह नहीं बताया कि सीसीटीवी चालू हालत में था या नहीं। पीडब्ल्यू नंबर 9 विवेक गुप्ता ने साफ कहा था कि हॉस्टल में सीसीटीवी पर उनकी नजर नहीं पड़ी। इस प्रकार, साक्ष्य प्रासंगिक समय पर छात्रावास में सीसीटीवी की स्थापना और कामकाज को स्थापित नहीं करता है।”

केस टाइटलः सुशील बनाम मध्य प्रदेश राज्य

केस नंबर: CRA No. 10852 of 2023

साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एमपी) 70

ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News