मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने धन की हेराफेरी के आरोप में बर्खास्त किए गए बैंक कर्मचारी की विधवा को ग्रेच्युटी जारी करने का आदेश दिया, कहा- दोषसिद्धि के बिना राशि जब्त नहीं
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (6 अक्टूबर) को बैंक कर्मचारी की विधवा को ग्रेच्युटी जारी करने का आदेश दिया, जिसे शाखा के कैश चेस्ट से ₹1 लाख की हेराफेरी के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। अदालत ने कहा कि चूँकि कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चल रहा है, इसलिए बैंक ग्रेच्युटी जब्त नहीं कर सकता।
मामले के तथ्यों के अनुसार, कर्मचारी ने बर्खास्तगी के बाद विभागीय अपील दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके तुरंत बाद कर्मचारी की मृत्यु हो गई और उसकी विधवा ने ग्रेच्युटी जारी करने के लिए आवेदन किया।
हालांकि, बैंक ने यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (1972 का अधिनियम) की धारा 4(6)(बी) के साथ बैंक के सेवा विनियम (विनियम) के खंड 72(ई) के तहत बर्खास्तगी के मामलों में यह देय नहीं है।
बता दें, ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम की धारा 4(6) में कहा गया कि नियोक्ता किसी कर्मचारी की ग्रेच्युटी को विशिष्ट परिस्थितियों में हुई क्षति की सीमा तक जब्त कर सकता है, जिसमें किसी भी कार्य, जानबूझकर की गई चूक या लापरवाही के कारण सेवा समाप्ति, जिससे संपत्ति को कोई नुकसान या हानि हुई हो या उसका विनाश हुआ हो, शामिल है। उपधारा (ख) में निर्दिष्ट किया गया कि यदि दंगा या अव्यवस्थित आचरण या हिंसा के किसी कृत्य या नैतिक अधमता से जुड़े किसी अपराध के लिए सेवा समाप्ति की गई हो तो ग्रेच्युटी आंशिक रूप से या पूरी तरह से जब्त की जा सकती है, बशर्ते कि ऐसा अपराध उसके द्वारा अपने रोजगार के दौरान किया गया हो।
इसके अतिरिक्त, सेवा विनियमों की धारा 72 के प्रावधान में कहा गया कि नियोक्ता द्वारा हुई वित्तीय हानि के मामलों को छोड़कर कदाचार के कारण बर्खास्त किए गए किसी भी कर्मचारी की ग्रेच्युटी जब्त नहीं की जा सकती, वह भी केवल हुई हानि की सीमा तक।
विधवा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि ग्रेच्युटी केवल बैंक को हुए नुकसान की सीमा तक ही जब्त की जा सकती है। हालांकि, चूंकि गबन की गई राशि वापस कर दी गई, इसलिए कोई नुकसान नहीं हुआ।
बैंक के वकील ने ग्रेच्युटी अधिनियम की धारा 4(1) और धारा 4(6)(बी)(ii) का हवाला देते हुए दावा किया कि ग्रेच्युटी आंशिक रूप से या पूरी तरह से जब्त की जा सकती है, क्योंकि कर्मचारी के कार्य में नैतिक अधमता शामिल थी, जो उसने रोजगार के दौरान की थी।
अदालत ने कहा कि बैंक द्वारा बनाए गए कार्यकारी निर्देश/विनियम ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 पर लागू नहीं होंगे, क्योंकि जिस अधिनियम के तहत ये नियम बनाए गए- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976, में कोई विरोधाभासी या प्रतिकूल प्रावधान नहीं हैं।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया बनाम सी.जी. अजय बाबू की पीठ ने दोहराया कि एक बार कर्मचारी के विरुद्ध सेवा नियमों के तहत बिना किसी आपराधिक मुकदमे के कार्रवाई कर दी गई हो तो नैतिक अधमता से जुड़े किसी आपराधिक अपराध की कोई धारणा नहीं बनाई जा सकती। ऐसी स्थिति में धारा 4(6)(बी)(ii) के तहत ग्रेच्युटी जब्त नहीं की जा सकती।
अतः, उपरोक्त के मद्देनजर, जस्टिस विवेक जैन की पीठ ने आदेश दिया,
"चूंकि कर्मचारी के विरुद्ध कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया गया, इसलिए बैंक ग्रेच्युटी के भुगतान से इनकार करने के लिए अधिनियम की धारा 4(6) का सहारा नहीं ले सकता। वह अधिक से अधिक बैंक को हुए नुकसान की सीमा तक ग्रेच्युटी जब्त कर सकता है। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि कथित गबन की राशि कर्मचारी द्वारा बैंक को वापस कर दी गई। इसलिए याचिकाकर्ता के मृत पति को देय ग्रेच्युटी से कोई वसूली भी नहीं की जा सकती।"
चूंकि गबन की गई राशि बैंक को वापस कर दी गई, इसलिए अदालत ने बैंक को निर्देश दिया कि वह कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से वास्तविक भुगतान तक 6% प्रति वर्ष ब्याज के साथ 60 दिनों के भीतर विधवा को ग्रेच्युटी का भुगतान करे।
Case Title: Babita Mor v Central Madhya Pradesh Gramin Bank (WP 21393 of 2021)