मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षिका पर हमला और जातिवादी टिप्पणी करने के आरोपी 'पत्रकारों' को अग्रिम ज़मानत देने से किया इनकार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का वह आदेश बरकरार रखा, जिसमें अनुसूचित जाति की स्कूल शिक्षिका पर हमला करने और जातिवादी टिप्पणी करने के आरोप में पत्रकार बताए जा रहे दो लोगों को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया था।
अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षिका के संबंध में प्रकाशित समाचार लेख में उन्हें 'चिंदी चोर' यानी छोटी चोर बताया गया था। इस प्रकार, FIR से शिकायतकर्ता का अपमान करने के इरादे का अनुमान लगाया जा सकता है।
जस्टिस गजेंद्र सिंह ने अपने आदेश में कहा कि FIR की विषयवस्तु अपीलकर्ताओं के खिलाफ "प्रथम दृष्टया मामला" दर्शाती है।
कोर्ट ने कहा,
"परिस्थितियों से इरादे का अनुमान लगाया जा सकता है। अपीलकर्ताओं का दावा है कि वे पत्रकार हैं (हालांकि पुलिस स्टेशन सरदारपुर, धार ने रिपोर्ट दी कि वह मध्य प्रदेश में मान्यता प्राप्त नहीं हैं) और वह जोधपुर से प्रकाशित दैनिक 'सच' मीडिया समाचार पत्र में दिनांक 26.03.2025 को समाचार प्रकाशित करते हैं। यह समाचार लेख अपीलकर्ता महेश कुमावत के संदर्भ में प्रकाशित किया गया था जिसमें प्रतिवादी नंबर 2 (शिक्षक) को "चिंदी चोर" बताया गया। "चिंदी चोर" शब्द का अर्थ "छोटा चोर" या "छिपा हुआ चोर" है। तदनुसार, प्रतिवादी नंबर 2 को अपमानित करने या अपमानित करने के इरादे का अनुमान लगाया जाता है। FIR की सामग्री ऐसी नहीं है, जिससे प्रथम दृष्टया मामला संतुष्ट न हो।"
अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित नहीं हैं, जबकि शिक्षिका ने अपनी जाति का खुलासा करते हुए शिकायत दर्ज कराई, जो अनुसूचित जाति वर्ग में आती है और "अपीलकर्ताओं की जाति निश्चित रूप से अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग के दायरे में नहीं आती है"।
अदालत ने आगे कहा,
"तदनुसार, निचली अदालत ने यह निष्कर्ष उचित रूप से दर्ज किया कि यह एक ऐसा मामला है, जहां अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 18 के तहत प्रतिबंध लागू होता है। यह निष्कर्ष उचित है तथा अपीलकर्ता सफल नहीं होते...।"
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST Act) की धारा 18 में कहा गया कि CrPC की धारा 438 (अग्रिम ज़मानत) का कोई भी प्रावधान इस अधिनियम के तहत अपराध करने के आरोप में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से संबंधित किसी भी मामले पर लागू नहीं होगा।
अदालत अप्रैल में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली दो आपराधिक अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 126(2) (गलत तरीके से रोकना), 115(2) (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 119 (संपत्ति हड़पने या किसी गैरकानूनी कार्य के लिए विवश करने हेतु स्वेच्छा से चोट पहुंचाना या गंभीर चोट पहुंचाना), 351(3) (मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने की धमकी देकर आपराधिक धमकी देना), 3(5) (सामान्य इरादा) के तहत दर्ज FIR में दो व्यक्तियों की अग्रिम ज़मानत याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं।
उन पर SC/ST Act की विभिन्न धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया गया, जिनमें धारा 3(आर) (जो कोई भी सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपमानित करने के इरादे से जानबूझकर अपमानित या डराता है) और धारा 3(एस) (जो कोई भी सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जाति के नाम से गाली देता है) शामिल हैं।
प्रतिवादी नंबर 2 अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित एक महिला है और स्कूल शिक्षिका के रूप में कार्यरत है। उसकी शिकायत पर उन अपीलकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित नहीं हैं।
महिला ने आरोप लगाया कि 6 मार्च को जब वह स्कूल में परीक्षा आयोजित करने का अपना कार्य कर रही थी तो अपीलकर्ता वहां पहुंचे, "खुद को पत्रकार बताया" और पूछा कि उसने एक स्टूडेंट को निजी क्यों वर्गीकृत किया।
उसने जवाब दिया कि न्यूनतम 75% उपस्थिति पूरी नहीं हुई थी, इसलिए नीति के अनुसार सूची पोर्टल पर अपडेट कर दी गई। अपीलकर्ताओं ने स्कूल और शिक्षक का वीडियो बनाना शुरू कर दिया, जब शिकायतकर्ता सहित स्कूल के अन्य शिक्षकों ने कहा कि चूंकि परीक्षा चल रही है, इसलिए वीडियो नहीं बनाया जा सकता, जिसके बाद अपीलकर्ता चले गए।
इसके बाद दोपहर 1 बजे जब शिकायतकर्ता घर जा रही थी तो अपीलकर्ता अचानक एक बाइक पर आए और उसका रास्ता रोककर एक लाख रुपये की मांग की। उन्होंने धमकी दी कि अगर मांग पूरी नहीं की गई तो वे स्टूडेंट्स से पैसे लेने का वीडियो वायरल कर देंगे।
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि अपीलकर्ता मोहित जाट ने उसे थप्पड़ मारा और पीटा। इसके बाद उसने दावा किया कि अपीलकर्ता महेश कुमावत ने उसके पेट पर हमला किया। उसने दावा किया कि उन्होंने "जातिवादी टिप्पणियां भी कीं और उसका अपमान किया"।
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्हें स्टूडेंट्स से अवैध रूप से पैसे वसूलने की सूचना मिली थी, जिसके बाद उन्होंने स्कूल का दौरा किया और पूरी कहानी को कवर किया। इसके चलते शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ताओं को धमकी दी कि वह उनके खिलाफ झूठी और तुच्छ शिकायत दर्ज कराएगी। अपीलकर्ताओं ने मीडिया के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया, जिसके बाद उन्होंने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने दुर्भावना, गुप्त उद्देश्य और गुप्त इरादों से अपीलकर्ताओं के खिलाफ झूठी और तुच्छ शिकायत दर्ज कराई।
राज्य ने अपीलों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि स्पेशल जज ने सभी पहलुओं पर विचार किया और सही पाया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 की धारा 18 के तहत प्रतिबंध लागू होता है। इसके अलावा, अपीलकर्ताओं के आवेदन पर की गई जांच से पता चला कि शिक्षक ने कोई अपराध नहीं किया और अपीलकर्ता मोहित जाट की शिकायत प्रथम दृष्टया भविष्य में अपना बचाव करने के उद्देश्य से की गई।
अपीलें खारिज कर दी गईं।
Case title: MUKESH KUMAWAT v/s THE STATE OF MADHYA PRADESH AND OTHERS AND Another