मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की जांच में की गई 'गंभीर चूक' को चिन्हित किया, प्रदेश के सभी जिले में गंभीर अपराध जांच पर्यवेक्षण दल के गठन का आदेश दिया

Update: 2024-09-18 09:35 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गंभीर आपराधिक मामलों में जांच की गुणवत्ता पर चिंता जताई है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने 2020 के डकैती और हत्या के मामले में आरोपी सुमित सिंह की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐसी टिप्पणी की है। मामले में आवेदक ने नई लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 और सीआरपीसी की धारा 439 के तहत छठी जमानत याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने मुकदमे की कार्यवाही में देरी और ठोस सबूतों की कमी के कारण मंजूर कर ली।

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने आदेश में कहा कि "केवल जांच अधिकारी और फोरेंसिक विशेषज्ञों की ओर से विफलता के कारण, आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया और उसे एक जघन्य अपराध के लिए बरी कर दिया गया.. वर्तमान मामले में भी, जैसा कि पहले ही बताया गया है, जांच अधिकारी ने उस घर से फिंगरप्रिंट लेने का कोई प्रयास नहीं किया, जहां हत्या हुई थी"।

अदालत ने जांच में विफलताओं के संबंध में अभिषेक डे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और हबू @ सुनील बनाम मध्य प्रदेश राज्य जैसे मामलों का हवाला दिया। इन मामलों में, डीएनए नमूने और फोरेंसिक साक्ष्य या तो एकत्र नहीं किए गए थे या देरी से किए गए थे, जिससे जांच की ईमानदारी से समझौता हुआ।

जस्टिस अभ्यंकर ने जोर देकर कहा, “इस अदालत की ओर से बार-बार यह इंगित करने के बावजूद कि जांच अधिकारियों ने गंभीर चूक की है, जांच के तरीकों और दृष्टिकोण में कोई स्पष्ट प्रगति नहीं हुई है, और आरोपी व्यक्तियों को बेखौफ जाने दिया जाता है, और ऐसा प्रतीत होता है कि इस संबंध में इस अदालत या अन्य अदालतों की ओर से की गई जो भी टिप्पणियां हैं, वे केवल उनकी अपनी अंतरात्मा की संतुष्टि के लिए हैं। यह समझना होगा कि जब कोई आपराधिक मुकदमा शुरू से ही केवल लापरवाह जांच के कारण विफल हो जाता है, तो यह सरासर एक गलती है।"

जांच प्रक्रिया में इस तरह के मुद्दों के कारण, अदालत ने मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को प्रत्येक जिले में एक गंभीर अपराध जांच पर्यवेक्षण दल स्थापित करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा, “मध्य प्रदेश, भोपाल के पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि राज्य के प्रत्येक जिले में गंभीर अपराधों की प्रत्येक जांच की निगरानी दो सदस्यों वाली एक टीम द्वारा की जाए, जिसका नेतृत्व एक वरिष्ठ स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा, जो किसी अनुभवी आईपीएस अधिकारी के पद से नीचे का न हो।”

आदेश में यह भी निर्धारित किया गया है कि जांच अधिकारियों को नियमित रूप से पर्यवेक्षण टीम को रिपोर्ट करना चाहिए, जिसे आगे की जांच विफलताओं के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा।

अदालत ने आदेश की प्रति महाधिवक्ता कार्यालय को भेजने का आदेश दिया ताकि उसका उचित अनुपालन हो सके और इस आदेश की अनुपालन रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर न्यायालय की रजिस्ट्री को भेजी जानी है।

केस टाइटलः सुनीत @ सुमित सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य

केस नंबर: विविध आपराधिक मामला संख्या 28712/2024

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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