मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'रिश्वत लेने' के लिए आपराधिक मामला दर्ज होने के कारण बर्खास्त किए गए संविदा सरकारी कर्मचारी को बहाल किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने एक मामले में मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम में संविदा के आधार पर कार्यरत एक कनिष्ठ सहायक की सेवा समाप्ति के आदेश को पलट दिया।
ऐसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति का कठोर कदम उठाया है, क्योंकि उसके खिलाफ कथित रूप से रिश्वत लेने के आरोप में आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। यह तब है, जब मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम (सेवा भारती तथा सेवा शर्तें) नियम, 2016 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें कहा गया हो कि केवल अपराध दर्ज होने पर ही सेवा समाप्ति की जा सकती है।
जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा, "नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि केवल अपराध दर्ज होने पर ही सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त करने के लिए दिए गए आदेश में निहित कारण स्पष्ट रूप से कलंकपूर्ण है और भविष्य में रोजगार के रास्ते में आएगा। इसलिए याचिकाकर्ता को उचित अवसर प्रदान करने के बाद जांच की जानी चाहिए।"
याचिकाकर्ता को 2011 से अनुबंध के आधार पर जूनियर असिस्टेंट ग्रेड III के रूप में नियुक्त किया गया था। अप्रैल 2022 में उनकी सेवाएं इस कारण समाप्त कर दी गईं कि कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त स्थापना द्वारा "उन्हें फंसाया गया" और उसी के परिणामस्वरूप सक्षम न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक मामला लंबित था।
न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता और निगम के बीच हुए समझौते के अनुसार - नियुक्ति की शर्तों पर, एक महीने का नोटिस या उसके बदले में एक महीने का वेतन देकर उनकी सेवाएं समाप्त की जा सकती थीं। हालांकि न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की सेवाएं मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के प्रावधानों के तहत संचालित होती हैं, जैसा कि 2016 के नियमों से स्पष्ट है और यदि बर्खास्तगी जैसे बड़े दंड का कोई निर्णय लिया जाना आवश्यक है, तो इसे 2016 के नियमों के प्रावधानों का पालन करके लिया जाएगा।
कोर्ट ने कहा, "मेरी राय में, याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त करना प्राधिकरण द्वारा उठाया गया एक कठोर कदम है, क्योंकि उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। नियम, 1966 के प्रावधान इस संबंध में बहुत विशिष्ट हैं, जो यह प्रावधान करते हैं कि बर्खास्तगी/सेवा समाप्ति जैसी बड़ी सजा आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के बाद ही दी जा सकती है, लेकिन आपराधिक मामला दर्ज होना इस तरह के कठोर कदम उठाने का कोई आधार नहीं है।"
हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में वह इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि राज्य और अन्य प्राधिकरणों में अधिकतम नियुक्तियां अनुबंध के आधार पर की जा रही हैं।
कोर्ट ने कहा, "न केवल राज्य बल्कि राज्य के अन्य संगठन भी नियमित नियुक्तियों से बच रहे हैं और कर्मचारी तथा नियोक्ता के बीच निष्पादित प्रत्येक अनुबंध में यह शर्त लगाई जाती है कि एक माह का नोटिस या उसके बदले वेतन देकर सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं, लेकिन उस शर्त को लगाने का यह अर्थ नहीं है कि उसका मनमाना उपयोग किया जा सकता है। पर्याप्त अवधि तक सेवा प्रदान करने के पश्चात, केवल इसलिए कि नियोक्ता को कोई कर्मचारी पसंद नहीं है और उस खंड/शर्त का सहारा लेकर कर्मचारी की सेवाएं समाप्त कर दी जाती हैं और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती, कर्मचारी के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि अनुबंध में ऐसी शर्त है। उक्त शर्त की इस प्रकार व्याख्या नहीं की जा सकती।"
न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि बिना कारण के किसी कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने का अर्थ यह नहीं है कि नियोक्ता द्वारा स्थिति का फायदा उठाया जा सकता है और इसके लिए कोई कारण दिया जाना चाहिए जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा शासित हो।
हाईकोर्ट ने कहा, "इसी प्रकार, वर्तमान मामले में सेवा समाप्ति का आदेश नियम, 2016 के प्रावधानों के विपरीत है, क्योंकि उक्त नियमों के अनुसार, याचिकाकर्ता प्रतिवादी-निगम का कर्मचारी था और उसकी सेवाएं अनुशासनात्मक नियमों अर्थात नियम, 1966 के अंतर्गत आती हैं और ऐसे में केवल इसलिए सेवा समाप्ति नहीं की जा सकती क्योंकि उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।"
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सेवा समाप्ति मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम (सेवा भारती तथा शर्तें) नियम, 2016 के विरुद्ध थी। सेवा मानकों के अनुसार निगम को सेवा समाप्ति से पहले जांच सहित उचित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक था। याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी सेवा समाप्ति के कारण सेवा से बाहर रहने की अवधि के लिए वेतन पाने का भी हकदार होगा।
केस टाइटलः विनीत कुमार त्रिपाठी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
केस नंबर: रिट याचिका संख्या 9544/2022
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