मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत न करने के आधार पर प्रवासी उम्मीदवार का नामांकन पत्र खारिज करने का आदेश बरकरार रखा

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें राजस्थान से प्रवास करने वाली महापौर उम्मीदवार की चुनाव याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई कि उसके नामांकन पत्र को निर्वाचन अधिकारी द्वारा सही तरीके से खारिज कर दिया गया, क्योंकि उसने राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया था।
ऐसा करते हुए न्यायालय ने राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी सर्कुलर पर भरोसा किया, जिसके अनुसार राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश राज्य द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र के अभाव में आरक्षण की सुविधा मध्य प्रदेश में उपलब्ध नहीं होगी।
जस्टिस विवेक रूसिया ने कहा,
"मध्य प्रदेश राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने जाति प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में सभी उपमंडल अधिकारियों, कलेक्टर और संभागीय आयुक्त को दिनांक 13.01.2014 को सर्कुलर जारी किया था। धारा 8.11(iii) जाति प्रमाण पत्र जारी करने से संबंधित है, जिसके अनुसार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेश नंबर BC16014/1/82-SC&BCD-1 दिनांक 06.08.1994 के अनुसार आरक्षण की सुविधा उसी राज्य में उपलब्ध होगी, जहां से जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश राज्य द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र के अभाव में आरक्षण की सुविधा मध्य प्रदेश राज्य में उपलब्ध नहीं होगी।"
न्यायालय ने कहा कि एक्शन कमेटी बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अन्य राज्यों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के प्रवासियों के मामले में जाति का लाभ उन लोगों को मिलेगा जो 1950 से पहले दूसरे राज्य में चले गए।
न्यायालय ने कहा,
"बेशक, याचिकाकर्ता वर्ष 1998 में विवाह के बाद राजस्थान राज्य से मध्य प्रदेश में चली गई, इसलिए वह राजस्थान राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव लड़ने की हकदार नहीं है। इसलिए प्रतिवादी नंबर 2 ने उसका नामांकन पत्र खारिज कर दिया और जिला जज ने चुनाव याचिका खारिज करने में कोई गलती नहीं की, इसलिए कोई हस्तक्षेप नहीं कहा जा सकता।"
मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार, उज्जैन नगर निगम में महापौर पद के लिए चुनाव अगस्त 2015 में हुआ और परिणाम घोषित किए गए। याचिकाकर्ता 'बैरवा' जाति से है, जो राजस्थान में अनुसूचित जनजाति है। उनके पास राजस्थान में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र है। हालांकि, 1998 में उनकी शादी हो गई और तब से वह उज्जैन में रह रही हैं। इस प्रकार, वह उज्जैन की स्थायी निवासी और मतदाता बन गईं। याचिकाकर्ता ने चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत किया।
हालांकि, प्रतिवादी नंबर 2/चुनाव अधिकारी ने याचिकाकर्ता का नामांकन पत्र यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसका फॉर्म मध्य प्रदेश राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र द्वारा समर्थित नहीं है।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने चुनाव याचिका दायर की। हालांकि, जिला जज ने यह कहते हुए चुनाव याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता का नामांकन पत्र सही तरीके से खारिज किया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बैरवा जाति मध्यप्रदेश के साथ-साथ राजस्थान में भी अनुसूचित जनजाति है, इसलिए निर्वाचन अधिकारी ने अवैध रूप से उनका नामांकन पत्र खारिज कर दिया, जिससे वह महापौर पद पर चुनाव लड़ने से वंचित हो गईं। वकील ने मध्यप्रदेश नगरपालिका निर्वाचन नियम, 1994 की धारा 24-ए (2) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्र खारिज करने के लिए अधिकृत नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता का नामांकन खारिज करना अवैध है।
म.प्र. राज्य निर्वाचन आयोग के वकील ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 2015 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्र की जांच करने के लिए सक्षम है। यदि कोई त्रुटि पाई जाती है तो नामांकन पत्र खारिज करने के लिए अधिकृत है। चूंकि याचिकाकर्ता ने मध्यप्रदेश के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए उसका नामांकन खारिज करना सही है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने मध्य प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1956 के प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि याचिकाकर्ता के पास मध्य प्रदेश के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र नहीं है, जो उसे चुनाव लड़ने से रोकता है। निर्वाचन अधिकारी द्वारा नामांकन पत्र खारिज किए जाने की वैधता के संबंध में न्यायालय ने नियम 28 के उपनियम (6) का हवाला दिया, जो रिटर्निंग अधिकारी को कारण दर्ज करके नामांकन पत्र खारिज करने का अधिकार देता है।
इसलिए न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि रिटर्निंग अधिकारी नामांकन पत्र खारिज करने के लिए सक्षम नहीं है। इसके बाद न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी परिपत्र का हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि आरक्षण की सुविधा उसी राज्य में उपलब्ध होगी, जहां से जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
इस प्रकार न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: प्रीति गेहलोद बनाम म.प्र. राज्य निर्वाचन आयोग एवं अन्य, सिविल पुनर्विचार नंबर 574 ऑफ 2019