मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एडवोकेट जनरल पर अत्यधिक पेशेवर फीस लेने के आरोप वाली याचिका खारिज की

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में याचिका खारिज की, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि राज्य के एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने कुछ मामलों में पेश होने के लिए अत्यधिक पेशेवर फीस ली और उन्हें भुगतान किया गया, जिनमें एक ऐसा मामला भी शामिल था, जिसमें एडवोकेट जनरल ने राज्य नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल की ओर से पेशी दी।
इस याचिका में यह दावा किया गया कि यह भुगतान सरकार के उस निर्देश के बावजूद किया गया जिसमें कहा गया कि सरकारी विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले लॉ अधिकारियों को अलग से कोई फीस देने की आवश्यकता नहीं है।
इन आरोपों को तुच्छ बताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपों की जांच करने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि एडवोकेट जनरल को अत्यधिक पेशेवर फीस देने का कोई प्रमाण न होने के कारण इस प्रकार के आरोपों पर विचार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
"स्थिति पर विचार करते हुए हमारा स्पष्ट मत है कि इस प्रकार के आरोपों की जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है, न ही ये आरोप इस न्यायालय के मस्तिष्क को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पहले से चल रही कार्यवाही बाधित हो। ऐसे आरोप बिना किसी आधार या एडवोकेट जनरल को अत्यधिक शुल्क देने के प्रमाण के इस न्यायालय द्वारा नहीं देखे जा सकते। हम इस प्रकरण के दायरे को बढ़ाना नहीं चाहते और वैसे भी हमें किसी स्वायत्त संस्था अर्थात् MPNRC द्वारा वकीलों की नियुक्ति व निर्धारित मानदंडों के अनुसार भुगतान करने में कोई प्रथम दृष्टया गैरकानूनी बात नहीं दिखती। इस प्रकार की तुच्छ याचिकाओं में उलझने से बचते हुए हम याचिका को खारिज करते हैं।”
मामला
याचिका में आरोप लगाया गया कि नर्सिंग कॉलेज घोटाले के कारण सरकारी कोष पर भारी खर्च डाला गया। अतः यह मांग की गई कि इस खर्च को उन अधिकारियों और लोक सेवकों से वसूला जाए, जो इस घोटाले के लिए जिम्मेदार हैं।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के विधि एवं विधायी कार्य विभाग द्वारा स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को संबोधित एक पत्र के अनुसार विधानसभा में यह प्रश्न उठाया गया कि एडवोकेट जनरल ने अत्यधिक फीस वसूला और उन्हें वह भुगतान किया गया।
सार्वजनिक हित याचिका (PIL) के संबंध में यह भी आरोप लगाया गया कि एडवोकेट जनरल व अन्य वकीलों को जो MPNRC की ओर से पेश हुए सरकार की उस नीति के विपरीत भुगतान किया गया, जिसमें कहा गया था कि सरकारी विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधि अधिकारियों को अलग से कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि यह कार्यवाही PIL की सुनवाई को भटकाने और न्यायालय का ध्यान भंग करने का प्रयास है, क्योंकि यह PIL निष्कर्ष की ओर अग्रसर है। न्यायालय ने उत्तरदायी अधिकारियों को रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
इसके विपरीत राज्य सरकार ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ये खबरें और आरोप बिना किसी आधार के हैं और मात्र अंधाधुंध आरोप लगाने का प्रयास है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलीलें अप्रासंगिक प्रतीत होती हैं, क्योंकि यह सरकार द्वारा मुकदमे की प्रक्रिया में किया गया खर्च है।
कोर्ट ने कहा,
“कई याचिकाओं में MPNRC एक पक्ष है, जो एक स्वायत्त संस्था है और उसका सरकारी विभागों से कोई लेना-देना नहीं है। अतः वह स्वतंत्र रूप से किसी भी वकील की नियुक्ति और शुल्क भुगतान करने के लिए स्वतंत्र है जो उसके और वकील के बीच निर्धारित हो। यह उनकी आंतरिक वित्तीय नीति का विषय है और न्यायालय का उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है।”
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में कोई गैरकानूनी या सरकारी नीति का उल्लंघन नहीं हुआ है।
कोर्ट ने कहा,
"न तो हमारे सामने कोई प्रमाण प्रस्तुत किया गया कि एडवोकेट जनरल या अन्य लॉ अधिकारियों को वास्तव में कितना भुगतान किया गया और न ही कोई ऐसा परिपत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह कहा गया हो कि कोई स्वायत्त संस्था राज्य के पैनल में शामिल वकीलों को छोड़कर किसी अन्य को नियुक्त नहीं कर सकती या स्वतंत्र शुल्क भुगतान नहीं कर सकती। अतः जिन पत्रों का उल्लेख किया गया। वे केवल सरकारी विभागों पर लागू हैं, न कि स्वायत्त निकायों, निगमों, विधिक संस्थाओं या राज्य की कंपनियों पर। ये संस्थाएं अपने स्वयं के फंड से वकील नियुक्त करने और उन्हें भुगतान करने के लिए स्वतंत्र हैं चाहे वह एडवोकेट जनरल हों या अन्य राज्य के विधि अधिकारी।”
अनुच्छेद 165 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि उसमें कहीं यह नहीं कहा गया कि एडवोकेट जनरल राज्य की किसी स्वायत्त संस्था या निगम का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते या वे स्वतंत्र पेशेवर शुल्क नहीं ले सकते।
अतः, न्यायालय ने पाया कि MPNRC द्वारा वकीलों की नियुक्ति और भुगतान में कोई प्रथम दृष्टया गैरकानूनी बात नहीं है।
नतीजतन याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: Law Students Association बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, WP No. 1080 of 2022