मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल द्वारा अलग मान्यता देने से इनकार करने के खिलाफ हाइकोर्ट एडवोकेट बार एसोसिएशन की याचिका खारिज की
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने हाइकोर्ट एडवोकेट बार एसोसिएशन द्वारा राज्य बार काउंसिल द्वारा अलग बार एसोसिएशन के रूप में मान्यता देने से इनकार करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की।
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि वकील कल्याण निधि अधिनियम 1982 का उद्देश्य, जो वकीलों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का प्रशासन करता है, मौजूदा मान्यता प्राप्त बार एसोसिएशनों के माध्यम से पूरा किया जा रहा है।
जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि वकील कल्याण निधि अधिनियम 1982 का उद्देश्य वकीलों की सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिए कल्याणकारी योजनाओं का संचालन करना है, जिसे केवल बार काउंसिल द्वारा मान्यता प्राप्त बार एसोसिएशन के माध्यम से ही संचालित किया जा सकता है तो यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सभी 330 सदस्य हाइकोर्ट बार एसोसिएशन या जिला न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्य भी है, जिन्हें मध्य प्रदेश बार काउंसिल द्वारा धारा 16 के तहत विधिवत मान्यता प्राप्त है। उन्हें कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जो कि अधिनियम 1982 का उद्देश्य और लक्ष्य है।"
पीठ ने कहा,
"इसलिए समानांतर निकाय के रजिस्ट्रेशन का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता है, जब अधिनियम 1982 का उद्देश्य और लक्ष्य तथा एडवोकेट एक्ट 1961 का उद्देश्य और लक्ष्य पहले से ही पूरा हो रहा है। इस प्रकार, प्रथम दृष्टया समानांतर निकाय को मान्यता देने का कोई औचित्य नहीं है, बिना इस बात के कि उनके सदस्यों को एडवोकेट एक्ट 1961 या अधिनियम 1982 के सामाजिक रूप से लाभकारी प्रावधानों का लाभ नहीं मिल रहा है।”
हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन द्वारा अपने सचिव के माध्यम से रिट याचिका दायर की गई, जिसमें मध्य प्रदेश बार काउंसिल (मान्यता समिति) के एक आदेश को चुनौती दी गई। यह आदेश हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन जबलपुर (आवेदक), मध्य प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, जबलपुर (प्रतिवादी नंबर 2, आपत्तिकर्ता) और डेमोक्रेटिक लॉयर्स फोरम, जबलपुर (हस्तक्षेपकर्ता) से जुड़े मान्यता मामले से संबंधित था, जिनका प्रतिनिधित्व उनके संबंधित वकीलों द्वारा किया गया। संबंधित आदेश में हाई कोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन, जबलपुर को अलग से मान्यता देने से इनकार कर दिया गया।
हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन की मान्यता का आवेदन खारिज करते हुए मान्यता समिति ने उन परिस्थितियों पर चिंता व्यक्त की, जिसके कारण कुछ सीनियर एडवोकेट आपत्तिकर्ता एसोसिएशन से खुद को अलग कर रहे थे और अलग सुविधाएं मांग रहे हैं। इसके अतिरिक्त समिति ने राज्य बार काउंसिल को असहिष्णुता के कृत्यों को संबोधित करने और ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए उचित नियम बनाने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता हाईकोर्ट एडवोकेट्स बार एसोसिएशन द्वारा दायर न्यायालय के दिनांक 01.03.2016 के आदेश के अनुपालन में 01.11.2023 को किए गए संशोधन द्वारा यह जोड़ा गया कि मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल के समक्ष मान्यता प्राप्त करने का उद्देश्य बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाना है।
मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विपिन यादव ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के संघ में 330 सदस्य शामिल हैं, जबकि प्रतिवादी संख्या 3, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में 1600 व्यक्तियों की सदस्यता है। यादव ने बताया कि याचिकाकर्ता के संघ के सभी 330 सदस्य पहले से ही प्रतिवादी नंबर 3 संघ या जिला न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्य थे। इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि पंजीकृत बार एसोसिएशन के सदस्यों को उपलब्ध सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाएगा।
इसके अलावा, यादव ने याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता संघ की आम सभा की ओर से याचिका दायर करने को अधिकृत करने वाला कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि सभी 330 सदस्य पहले से ही हाईकोर्ट बार एसोसिएशन या जिला न्यायालय बार एसोसिएशन में अपनी सदस्यता के माध्यम से सुविधाएं प्राप्त कर रहे थे, इसलिए याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
जवाब में वकील अधिनियम 1961 के पीछे ऐतिहासिक संदर्भ और विधायी मंशा पर विचार करते हुए अदालत ने कहा,
"अभिलेखों, उद्देश्यों के बयानों और अधिवक्ता अधिनियम 1961 को लागू करने के कारणों को देखते हुए 1953 में बनाई गई अखिल भारतीय बार समितियों की सिफारिशों को लागू करना है, न्यायिक प्रशासन के सुधार के विषय पर विधि आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, जहां तक सिफारिशें बार और कानूनी शिक्षा से संबंधित हैं।"
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अधिनियम, विशेष रूप से 1993 का संशोधन अधिनियम, 70 वकीलों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के लिए बार एसोसिएशनों के विकास को बढ़ावा देने की दिशा में तैयार किया गया। इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि बार एसोसिएशन का प्राथमिक उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की वकालत करना है, जैसा कि एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 2(एम) में उल्लिखित है, जो धारा 3 के तहत गठित बार काउंसिल के रूप में राज्य बार काउंसिल को परिभाषित करता है।
न्यायालय ने कहा,
"यदि याचिकाकर्ता एसोसिएशन खुद को मान्यता प्राप्त एसोसिएशन से अलग होने का दावा करता है तो उन्हें यह दलील देने और साबित करने की आवश्यकता है कि मूल एसोसिएशन से अलग होने का वैचारिक आधार क्या है। जब इस पृष्ठभूमि में जांच की जाती है तो यह दिखाने के लिए किसी भी दलील के अभाव में कि किसी अन्य एसोसिएशन यानी याचिकाकर्ता एसोसिएशन के गठन के लिए कोई वैचारिक आधार था, मद्रास हाइकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के मामले में निर्धारित कानून भी लागू नहीं होगा।"
न्यायालय ने कहा,
"इस प्रकार यह स्पष्ट है कि राज्य बार काउंसिल के निर्णय में कोई अवैधता, तर्कहीनता या प्रक्रियात्मक अनुचितता नहीं है। इसलिए इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।"
न्यायालय ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल द्वारा लिए गए निर्णय के मामले में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। खासकर तब जब याचिकाकर्ता भेदभाव, अवैधता, तर्कहीनता और प्रक्रियात्मक अनुचितता का मामला बनाने में विफल रहे।
याचिका खारिज करते हुए कहा गया कि जब यह तर्क नहीं दिया जाता है कि मान्यता से इनकार करके राज्य बार काउंसिल के कार्य ने याचिकाकर्ता संघ की मौलिक स्वतंत्रता को कोई नुकसान पहुंचाया है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं को बिना किसी उद्देश्य के अलग से मान्यता मांगने का कोई अधिकार है। खासकर तब जब वह यह मामला बनाने में विफल रहा है कि उसके सदस्यों को कल्याणकारी योजना के लाभों से वंचित किया जा रहा है, जो उन्हें उनकी दोहरी सदस्यत हाइकोर्ट बार एसोसिएशन या जिला बार एसोसिएशन के आधार पर मिल रहे हैं, जो मान्यता प्राप्त बार एसोसिएशन हैं
केस टाइटल- हाइकोर्ट अधिवक्ता बार एसोसिएशन बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य