आईपीसी की धारा 109 | पुरुष और महिला दोनों दुष्कर्म के लिए उकसाने पर जिम्मेदार, अगर उकसावे के परिणामस्वरूप अपराध हुआ हो: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-03-27 06:41 GMT
आईपीसी की धारा 109 | पुरुष और महिला दोनों दुष्कर्म के लिए उकसाने पर जिम्मेदार, अगर उकसावे के परिणामस्वरूप अपराध हुआ हो: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

आपराधिक पुनर्विचार पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 109 के तहत बलात्कार के लिए उकसाने के लिए पुरुष और महिला दोनों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

ऐसा करते हुए न्यायालय ने रेखांकित किया कि उकसाना बलात्कार से अलग और विशिष्ट अपराध है और यदि उकसाने के परिणामस्वरूप उकसाया गया कार्य किया जाता है तो ऐसे अपराध को उकसाने वाले व्यक्ति यानी पुरुष या महिला को IPC की धारा 109 के तहत दंडित किया जा सकता है।

संदर्भ के लिए IPC की धारा 109 में उकसाने की सजा का प्रावधान है, यदि उकसाया गया कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है और जहां इसकी सजा के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।

ओमप्रकाश बनाम हरियाणा राज्य (2015) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए जस्टिस प्रमोद कुमार अग्रवाल ने कहा,

"यह स्पष्ट है कि महिला बलात्कार नहीं कर सकती है लेकिन फिर भी उसे IPC की धारा 109 के तहत उकसाने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। उकसाना बलात्कार से अलग और विशिष्ट अपराध है। यदि उकसाने के परिणामस्वरूप उकसाने वाला कार्य किया जाता है तो ऐसे अपराध को उकसाने वाले व्यक्ति यानी पुरुष या महिला को IPC की धारा 109 के तहत दंडित किया जा सकता है। इस प्रकार महिला और पुरुष दोनों को निश्चित रूप से IPC की धारा 109 के तहत बलात्कार के लिए उकसाने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। तदनुसार दंडित किया जा सकता है।”

मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके पड़ोसी (सह-आरोपी) जिससे वह परिचित थी, ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा, जिस पर वह सहमत हो गई।

कुछ समय बाद वह उस व्यक्ति की मां (आवेदक नंबर 2) और उसके भाई (आवेदक नंबर 1) से शादी के बारे में अपनी सहमति देने के लिए उसके घर गई। हालांकि मां और भाई ने उसे जबरन सह-आरोपी के साथ भेज दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया जहां सह-आरोपी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। इसके बाद उसकी और उसके पति की सगाई हो गई और सह-आरोपी ने उसे शादी का आश्वासन दिया और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।

अगले दिन पीड़िता आवेदक के घर गई और उन्हें उक्त घटना के बारे में बताया, जिस पर आवेदक ने टिप्पणी की कि आजकल शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाना आम बात है। उन्होंने फिर से सह-आरोपी और पीड़िता को एक कमरे में भेज दिया। दरवाजा बंद कर दिया, जहां सह-आरोपी ने फिर से पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए।

इसके बाद जब पीड़िता की मां कैंसर से मर गई तो आवेदक ने सह-आरोपी की पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया। इसलिए पीड़िता ने आवेदकों और सह-आरोपी व्यक्ति के खिलाफ धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा), 376 (2) (एन) (एक ही महिला से बार-बार बलात्कार), 190 (लोक सेवक से सुरक्षा के लिए आवेदन करने से रोकने के लिए व्यक्ति को चोट पहुंचाने की धमकी), 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और आईपीसी की 34 (सामान्य इरादा) के तहत रिपोर्ट दर्ज की।

मामले के कमिट होने के बाद आवेदकों द्वारा मामले से उन्हें मुक्त करने के लिए CrPC की धारा 227 के तहत एक आवेदन दायर किया गया लेकिन इसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

आवेदकों के वकील ने दलील दी कि पीड़िता द्वारा दायर शिकायत में आवेदकों के नाम का उल्लेख नहीं किया गया। इसके अलावा यह भी दलील दी गई कि सह-आरोपी और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध थे और उन्होंने दोनों परिवारों की सहमति से सगाई की थी। इसलिए उनके खिलाफ IPC की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। यह भी दलील दी गई कि आवेदकों का नाम केवल CrPC की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज अभियोक्ता के बयानों में उल्लेखित था। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदकों के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप बाद में सोचे गए हैं।

इसके विपरीत राज्य के वकील ने दलील दी कि आरोप तय करने के चरण में केवल प्रथम दृष्टया मामला देखा जाना चाहिए और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से उस अपराध का पता चलता है जिसके लिए आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया है। यह भी दलील दी गई कि बलात्कार के लिए उकसाने के संबंध में आवेदकों के खिलाफ विशिष्ट आरोप थे, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से आदेश पारित किया था।

पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने IPC की धारा 376 का हवाला दिया और कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि केवल एक पुरुष ही बलात्कार का अपराध कर सकता है। धारा 376 के तहत महिला द्वारा बलात्कार किए जाने को शामिल करने की कोई गुंजाइश नहीं है।

इसके बाद न्यायालय ने ओमप्रकाश बनाम हरियाणा राज्य (2015) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और निष्कर्ष निकाला कि महिला बलात्कार नहीं कर सकती है लेकिन फिर भी उसे IPC की धारा 109 के तहत उकसाने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

CrPC की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों के अवलोकन पर न्यायालय ने कहा कि यह प्रथम दृष्टया स्थापित करता है कि आवेदकों के खिलाफ अपराध बनता है। इस प्रकार न्यायालय ने आवेदकों के खिलाफ विशिष्ट आरोपों को देखते हुए माना कि ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से आदेश पारित किया था।

न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को आवेदकों के विरुद्ध धारा 376 R/W 109 IPC के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिय न कि धारा 376 R/W 34 IPC के तहत।

केस टाइटल: प्रशांत गुप्ता एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य, आपराधिक पुनर्विचार संख्या 4796 वर्ष 2023

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